Siwan Election Result: प्रशांत किशोर और मायावती को 0 नंबर, 76 में से 60 प्रत्याशियों की जमानत जब्त
सिवान जिले में विधानसभा चुनाव में 76 में से 60 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। जन सुराज पार्टी और बसपा के प्रत्याशियों समेत कई बड़े नाम भी अपनी जमानत बचाने में नाकाम रहे। नोटा को भी कई उम्मीदवारों से ज्यादा वोट मिले। बागियों का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा। मतदाताओं ने इस बार कई स्थापित चेहरों को नकार दिया।

प्रशांत किशोर और मायावती। PTI
प्रसन्न कुमार, दारौंदा (सिवान)। जिले की आठों विधानसभा सीटों पर इस बार चुनावी बयार ऐसी चली कि बड़ा-से-बड़ा दावा करने वाले भी मतदाताओं की कसौटी पर फेल हो गए। जिले की आठ विधानसभा से कुल 76 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें से सिर्फ 16 ही जमानत बचाने में सफल हुए शेष 60 प्रत्याशी जनता की अदालत में चारों खाने चित हो गए।
इतना ही नहीं, जन सुराज पार्टी और बसपा जैसे दलों की जिले की सभी सीटों पर जमानत जब्त हो गई। कई सीटों पर तो नोटा ने भी उम्मीदवारों को पछाड़ दिया।
विधानसभा वार जमानत जब्त के आंकड़े में 105 सिवान सदर विधानसभा 11, 106 जीरादेई विधानसभा में आठ, 107 दरौली विधानसभा में चार, 108 रघुनाथपुर विधानसभा में पांच, 109 दारौंदा विधानसभा में पांच, 110 बड़हरिया विधानसभा में नौ, 111 गोरेयाकोठी विधानसभा में आठ तथा 112 महाराजगंज विधानसभा में 10 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई है।
नोटा ने कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा उतारी:
आठों विधानसभा में कुल 25,489 नोटा को वोट मिले और 45 से अधिक उम्मीदवार ऐसे रहे, जिन्हें नोटा से भी कम वोट मिले। सबसे अधिक नोटा दारौंदा में दर्ज किया गया।
विधानसभा वार नोटा का मिले मत का विवरण
- सिवान सदर : 2704
- जीरादेई : 4707
- दरौली : 4546
- रघुनाथपुर : 3478
- दारौंदा : 5151
- बड़हरिया : 3932
- गोरेयाकोठी : 3655
- महाराजगंज : 3675
बागियों की 'बगावत' भी रही 'फुस्स'
चुनाव से पहले कई सीटों पर बागी उम्मीदवारों ने अपने दल को चुनौती देने का दम भरा था, लेकिन नतीजों ने दिखा दिया कि बागियों की हवा पहले ही निकल चुकी थी। वे वोट काटने में भी नाकाम रहे और खुद अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। जिन उम्मीदवारों पर शुरुआत में चर्चा ज्यादा थी, वे अंत में खुद भी अपनी साख नहीं बचा सके।
जमानत जब्त कराने वाले बड़े नामों में शामिल हैं, गुड़िया देवी, नीतीश द्विवेदी, सुनील राय, गणेश राम, मदन यादव, मुन्ना पांडेय आदि। इनमें से कोई भी 25 से 30 हजार वोट के करीब भी नहीं पहुंच पाया। कई तो 10-15 हजार का आंकड़ा भी पार नहीं कर सके।

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