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    नए साल में मियावाकी पद्धति से जिले में उगेंगे छोटे-छोटे वन, स्कूल से कस्बे तक हरियाली की तैयारी

    By Deepak Kumar Edited By: Ajit kumar
    Updated: Wed, 31 Dec 2025 07:34 PM (IST)

    नए साल में सीतामढ़ी जिले में मियावाकी पद्धति से छोटे-छोटे वन लगाए जाएंगे। यह जापानी तकनीक कम जगह में घने, तेजी से बढ़ने वाले जंगल बनाती है, जो 2-3 साल ...और पढ़ें

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    वन प्रक्षेत्र की अनुपलब्धता को देखते हुए मियावाकी पद्धति को अपनाया गया। i फाइल फोटो

    दीपक कुमार, सीतामढ़ी। नए साल 2026 में सीतामढ़ी जिला हरियाली की दिशा में बड़ी पहल करने जा रहा है। जिले में पहली बार मियावाकी पद्धति से छोटे-छोटे लघु वन विकसित किए जाएंगे। इसके तहत स्कूल परिसरों, पार्कों, सरकारी भवनों, कार्यालयों और कस्बाई इलाकों को हरियाली से आच्छादित किया जाएगा।

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    मियावाकी पद्धति जापान के प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित की गई तकनीक है, जिसमें कम स्थान में स्थानीय प्रजातियों के घने पौधे लगाए जाते हैं। ये पौधे सामान्य पौधरोपण की तुलना में लगभग 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं और दो से तीन वर्षों में आत्मनिर्भर वन का रूप ले लेते हैं।

    जिला वन पदाधिकारी अमिता राज के अनुसार, इस पद्धति से विकसित वन 20 से 30 वर्षों में प्राकृतिक पारिस्थितिकी संतुलन प्राप्त कर लेते हैं, जबकि पारंपरिक वनों को इसके लिए 100 से 200 वर्ष तक का समय लग जाता है। जिले में बड़े वन प्रक्षेत्र की अनुपलब्धता को देखते हुए मियावाकी पद्धति को अपनाया गया है।

    इसके तहत जिले के चयनित स्थलों पर 10×10 मीटर क्षेत्रफल में एक मियावाकी यूनिट विकसित की जाएगी। इनमें फलदार, औषधीय, काष्ठ प्रजाति, झाड़ीदार और सुगंधित पौधों को एक साथ लगाया जाएगा, जिससे जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा और पक्षियों व जीव-जंतुओं को प्राकृतिक आवास उपलब्ध हो सकेगा।

    एक ही स्थान पर लगेंगी कई प्रजातियां

    मियावाकी पद्धति के अंतर्गत पपीता, अमरूद, सीताफल जैसे फलदार पौधों के साथ महोगनी, सागवान, पॉपुलर जैसी काष्ठ प्रजातियां, औषधीय व झाड़ीदार पौधे लगाए जाएंगे। इससे पर्यावरण संतुलन मजबूत होगा और शहरी क्षेत्रों में हरियाली बढ़ेगी।

    बंजर और बेकार भूमि भी होगी हरी

    लघु वन तैयार करने के लिए जिले की बंजर, उसर और बेकार पड़ी जमीनों को भी चिन्हित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य खराब हो चुकी भूमि को पुनर्जीवित करना और शहर को हरा-भरा बनाना है। यह पद्धति घरों के आसपास भी अपनाई जा सकती है।

    आपदाओं से बचाव में भी सहायक

    मियावाकी वन कार्बन पृथक्करण के साथ-साथ बाढ़, तूफान और अतिवृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भू-क्षरण को रोकने में भी सहायक होंगे।

    पौधों की सुरक्षा के लिए बनेगी टीम

    जिले में इस वर्ष 9.27 लाख पौधरोपण का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें से लगभग 60 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है। नए साल में पौधरोपण का लक्ष्य और बढ़ाया जाएगा। साथ ही लगाए गए पौधों की सुरक्षा के लिए जिला से प्रखंड स्तर तक विशेष टीम का गठन किया जा रहा है।

    साल 2026 में जिले में पहली बार मियावाकी पद्धति से लघु वन विकसित किए जाएंगे। ये वन तेजी से बढ़ते हैं, जैव विविधता को बढ़ावा देते हैं और कार्बन पृथक्करण में अहम भूमिका निभाते हैं।


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     अमिता राज, जिला वन पदाधिकारी, सीतामढ़ी