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    अधवारा नदी : इलाके की छोटी गंगा के अस्तित्व पर ग्रहण

    By Edited By:
    Updated: Wed, 23 Jul 2014 06:46 PM (IST)

    नदी बचाओ अभियान : 23 एसएमटी 4 से 6 तक

    - उड़ाही के अभाव में संकट में नदी कावजूद

    - अतिक्रमण और गंदगी के बीच गुम हुई नदी की मुख्य धारा

    -नेपाल से निकल कर सोनबरसा, सुरसंड, परिहार, चोरौत, बाजपट्टी व पुपरी में बहती है अधवारा नदी

    - डेढ़ दर्जन छोटी-बड़ी नदियों का समूह है अधवारा

    नीरज/राकेश श्रीवास्तव, सीतामढ़ी / पुपरी

    मैं अधवारा नदी हूं। इलाके में मैं छोटी गंगा के नाम से जानी जाती हूं। मैं इलाके में बहने वाली डेढ़ दर्जन छोटी - बड़ी नदियों का समूह हूं। पड़ोसी देश नेपाल के हिमालय से निकलकर तराई इलाके का सफर करते हुए मैं सोनबरसा में भारतीय सीमा में प्रवेश करती हूं। मैं सोनबरसा, सुरसंड, परिहार, चोरौत, बाजपट्टी व पुपरी होते हुए मधुबनी के विशनपुर में अधवारा धार में मिल जाती हूं। मेरी लंबाई 90 किमी है। इस दौरान मैं झीम, रातो, मरहा, हरदी, कलावंती, आक्सी, सोरम, व जंघा आदि डेढ़ दर्जन नदियों को अपनी गोद में पनाह देती हूं। मेरी चर्चा वेद व पुराणों में भी है। मैं सीतामढ़ी के आधा दर्जन प्रखंडों की 90 किमी की दूरी को अपनी धाराओं से सिंचित करती रहीं हूं। लेकिन इस दूरी को तय करने में मैं हांफ जाती हूं। वजह जगह-जगह मेरी धाराओं को रोक मेरे हृदय को लोगों ने टुकड़ों में बांट दिया है। मैं कभी खेतों की हरियाली की वाहक थी। मेरा पानी सिंचाई का आधार था। लेकिन अपनी ही धरती पर आज मै खुद अपने वजूद की तलाश कर रहीं हूं। शासन - प्रशासन व जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा से आज मै नाला में तब्दील हूं।

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    ------------------------ नाले में तब्दील हुई अधवारा : अधवारा नदी समूह। इलाके की छोटी - बड़ी नदियों का एक बड़ा समूह। जिसकी धाराएं बागमती की वेग से भी प्रबल। कभी इस नदी का जल निर्मल था। इसकी धाराएं निश्छल थी। रातो का जल इलाके के पशु, पक्षी, खेत, पौधा व मानव के लिए जीवनदायिनी थी। हालत यह है कि अब न मानव के नहाने के लिए नदी में पानी है और नहीं इस नदी से पशु - पक्षियों की प्यास ही मिट रहीं है। दशकों से उड़ाही के अभाव में अधवारा नाला में तब्दील है। इस नदी पर न तो कभी बांध बनाया गया और न कभी उड़ाही ही की गई। लिहाजा नदी अपनी मर्जी से बहती रहीं। कभी इसने उपजाऊ खेत को अपनी धारा बनाया तो कभी मकान को। कभी रिहायसी इलाके बनी नदी की धार। जगह - जगह मिट्टी की कटाई की वजह से नदी की शक्ल नाला जैसी हो गई है। नदी में जलप्रवाह का अभाव है। अधवारा में उफान तब आता है जब नेपाल में बारिश होती है। नेपाल में बारिश के बाद जब नदियों में उफान आता है तो इसका पानी भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करता है। इसके बाद अधवारा समूह की नदियां कयामत बरपाती है और हजारों के जान माल के नुकसान का कारण बनती है।

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    अधवारा के वजूद संकट : नेपाल से निकल कर सीतामढ़ी जिले के उत्तर में सोनबरसा से लेकर पुपरी तक बहने वाली अधवारा समूह की नदी अब खुद वजूद तलाश रहीं है। पूर्व में अधवारा केवल जलधारा ही नहीं बल्कि जीवन शैली का हिस्सा रहीं है। लेकिन हालत यह है कि कभी आस्था से जुड़ी जीवनदायिनी रहीं यह नदी अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहीं है। पानी के साथ परम्परा की धारा प्रवाहित करने वाली इकलौती नदी का वजूद थमने लगी है। इस नदी में सालो भर पानी बहता रहता है। लेकिन नदी की धार में वेग व रफ्तार बरसात में ही दिखता है। बरसात में जब जलस्तर बढ़ता है, तब यही कचरा या व‌र्ज्य पदार्थ अधवारा नदी के पानी में घुलकर प्रदूषण फैलाते हैं।

    बोले शहर के गणमान्य :

    अधवारा नदी को बचाने के लिए जरूरी है नेपाल स्थित उद्गम स्थल से इसकी उड़ाही कराई जाए : - ओम प्रकाश कर्ण, पुपरी।

    अधवारा नदी को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने के साथ इसकी उड़ाही कराने की जरूरत है : - महेश कुमार।

    इस नदी के वजूद को बचाने के लिए जरूरी है कि पहले इसकी उड़ाही कराई जाए, वहीं नदी से अतिक्रमण हटाया जाए :- शत्रुध्न शर्मा ।

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    अधवारा नदी को स्वच्छ रखने का संकल्प

    'रातो ही नहीं जिले में बहने वाली बागमती व अधवारा समूह की तमाम नदियों को स्वच्छ, निर्मल व प्रदूषण से मुक्त बनाने के लिए पुपरी पीएचसी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. सुरेंद्र कुमार समर्पित है। दैनिक जागरण के नदी बचाओं अभियान के तहत डा. कुमार ने अधवारा नदी को स्वच्छ रखने का संकल्प लिया है, वहीं शासन - प्रशासन के अलावा आम अवाम से भी नदियों को बचाने की अपील की है'।

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    विशेषज्ञ की कलम से :-

    अधवारा नदी पुपरी व इसके आस - पास के इलाकों की संपदा रहीं है। यह नदी नेपाल से निकल कर भरतीय धरा को सिंचित करने वाली एक प्रमुख नदी है। इस नदी का संबंध इलाके के समाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व धार्मिक जीवन से रहा है। इलाके की एक बड़ी आबादी व कृषि का आधार रहीं नदी अब प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है। नदी में गाद भर गया है। संरक्षण के अभाव में नदी प्रदूषित हो गई है। इस नदी की कभी भी उड़ाही नहीं हुई है। अगर यहीं हाल रहा तो आने वाली पीढ़ी को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में इस नदी का वजूद बचाने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि भारत व नेपाल सरकार उच्च स्तरीय वार्ता करे। फिर नेपाल स्थित उद्गम स्थल से भारतीय क्षेत्र की ओर नदी की उड़ाही कराई जाए। ताकि नदी का पुराना स्वरूप लौट सके, और पर्यावरण की रक्षा हो सके :- प्रो. कामता प्रसाद मिश्र, पुपरी, सीतामढ़ी।