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    जमीन अधिग्रहण में फंस गया दनियावां-शेखपुरा रेलवे लाइन के पूर्ण होने का सपना

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 23 Jan 2021 11:14 PM (IST)

    शेखपुरा। दो दशक पूर्व 2002 में जब तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार ने शेखपुरा बरबीघा बिहारशरीफ दनियावां रेल लाइन परियोजना की घोषणा संसद भवन में की तो बरबीघा निवासियों के चेहरे खिल उठे। प्रमुख शहर बरबीघा में रेल लाइन नहीं होने से यहां के लोगों को उम्मीद जगी परंतु दो दशक बीत जाने के बाद भी रेलवे का यह परियोजना अधर में है।

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    जमीन अधिग्रहण में फंस गया दनियावां-शेखपुरा रेलवे लाइन के पूर्ण होने का सपना

    शेखपुरा। दो दशक पूर्व 2002 में जब तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार ने शेखपुरा, बरबीघा, बिहारशरीफ, दनियावां रेल लाइन परियोजना की घोषणा संसद भवन में की तो बरबीघा निवासियों के चेहरे खिल उठे। प्रमुख शहर बरबीघा में रेल लाइन नहीं होने से यहां के लोगों को उम्मीद जगी परंतु दो दशक बीत जाने के बाद भी रेलवे का यह परियोजना अधर में है। परियोजना के अटकने का मूल कारण भूमि अधिग्रहण को लेकर विवाद का है। किसान की माने तो सरकारी अधिकारी और रेलवे विभाग के लोगों ने पौने दाम पर बेशकीमती जमीन का अधिग्रहण करना चाहते हैं इसी को लेकर पेच फंसा हुआ है ।

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    क्या है पूरा मामला

    दरअसल नारायणपुर सहित बरबीघा का इलाका जिस जमीन पर रेलवे को अधिग्रहण करना था वह बेशकीमती जमीन है। रेलवे के द्वारा 2010 में उसकी कीमत मात्र ढाई हजार रुपये प्रति डिसमिल निर्धारित की गई। किसानों ने आपत्ति की और मामला अटकता चला गया। फिर किसान इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट से इसमें निर्णय भी आ गया। जिसमें 1 जनवरी 2014 को मानक को मानते हुए सर्वोत्तम कीमत पर जमीन के अधिग्रहण का आदेश निर्गत किया गया। 2014 में सरकारी कीमत आवासीय डेढ़ लाख रुपए प्रति डिसमिल के आसपास बताई जा रही है। सरकारी विभाग के द्वारा नौ हजार रूपये प्रति डिसमिल कीमत देने की बात कही गई। इसको लेकर किसान फिर से हाईकोर्ट में अवमानना का मामला दर्ज कर दिया। इस बीच कोरोना में मामला अटक गया। ---

    क्या कहते हैं लोग

    रंजीत कुमार, परसोबीघा, याचिका कर्ता

    हाईकोर्ट के आदेश को भी अधिकारी नहीं मान रहे। जबकि अधिकारी मौखिक रूप से कहते हैं कि किसानों के साथ गलत हो रहा है। किसानों की मांग जायज है। 2014 में डेढ़ लाख रुपए डिसमिल की कीमत है। किसानों की मांग भी वही है। अधिकारी डर रहे है। वे सरकारी दबाब में है। जांच टीम ने कम कीमत तय की।

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    मिथिलेश कुमार, शेरपर

    हाईकोर्ट के आदेश के बाद रेल विभाग और सरकारी विभाग को वही कीमत देना चाहिए। शेरपर गांव के किसानों के साथ ठगी की गई और नौ हजार डिसमिल के दर से अधिग्रहण कर लिया गया।

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    धर्मराज कुमार, शेरपरर

    नौ हजार डिसमिल जमीन का अधिग्रहण हुआ है। हम लोग हाईकोर्ट में फिर से मामला दायर कर दिए है। 2014 में अधिकतम कीमत की मांग की गई है। उसके बिना किसान मानने वाले नहीं है।

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    संजय कुमार, भू अर्जन पदाधिकारी

    किसानों की मांग आवासीय भूमि के कीमत की है जबकि कीमत निर्धारण के लिए टीम गठित कर कृषि भूमि के कीमत को तय किया है। सरकारी नियमानुसार कीमत तय किए गए हैं। इसके लिए 6 सदस्य टीम बनाई गई और टीम के निर्देश पर कीमत तय किया गया है। हाईवे के जमीन के अधिग्रहण की जो कीमत दी गई है वहीं कीमत रेलवे की जमीन को भी दिए जा रहा है।