प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : शिवहर के राजदेवी मंदिर में पहुंचते हैं श्रद्धालु, मिट्टी की तीन पिंडी से जुड़ी है आस्था की डोर
Bihar Tourism बिहार के शिवहर जिले में दोस्तियां राजदेवी मंदिर भारत ही नहीं नेपाल के लोगों के लिए भी आस्था का केंद्र है। यहां श्रद्धालु माता की मिट्टी की तीन पिंडियों के दर्शन करने के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे माता की मिट्टी के तीन पिंडियां स्वयं प्रकट हुई थीं।
अरुण कुमार, पिपराही (शिवहर)। शिवहर के कण-कण में शिव के साथ शक्ति भी रची-बसी हैं। भले ही यहां की धरती पर भगवान शिव का वास है, लेकिन मां दुर्गा के दर्जनों मंदिर यह बताने को काफी हैं कि शक्ति की आराधना के बिना शिव की भक्ति भी अधूरी है।
यहां स्थापित देवी मंदिरों में से एक दोस्तियां राजदेवी मंदिर भी अपने भीतर कई ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व समेटे है। यहां स्थापित माता दुर्गा की प्रतिमा और मंदिर ज्यादा पुरानी तो नहीं, लेकिन यहां मिट्टी के तीन पिंड हैं, जो प्राचीन हैं।
यहां दर्शन के लिए शिवहर के अलावा सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर व पश्चिम चंपारण के अलावा नेपाल से भी भक्त आते हैं। शिवहर जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर शिवहर-पिपराही-बेलवा-ढाका स्टेट हाईवे के ठीक किनारे दोस्तियां के पास राजदेवी माता का मंदिर है।
पहले यहां माता की पूजा लोक देवता के रूप में होती थी। वर्ष 1977 में स्थानीय लोगों ने मिलकर मंदिर का निर्माण कराया और उसमें माता की भव्य प्रतिमा स्थापित की। 75 वर्षीय ग्रामीण राम संजीवन भगत कहते हैं कि हमारे पूर्वज बताया करते थे कि पहले यह इलाका घना जंगल हुआ करता था।
दोपहर बाद लोग यहां आने से डरते थे। इसी जंगल में एक विशाल पीपल का पेड़ था। जिसकी जड़ में तीन मिट्टी की पिंडी स्वयं प्रकट हुई थी। इधर से गुजर रहे राहगीर पर जब कोई जंगली पशु या डकैत हमला करता था तो एक वृद्ध महिला उसे बचाने आ जाती थी। धीरे-धीरे यह लोककथा चारों तरफ फैल गई।
उसके बाद जंगल की ओर लोग आने लगे और पिंडी के दर्शन कर पूजा-अर्चना करने लगे। लोगों ने इस स्थल को जंगली राजदेवी माता नाम दिया। राजदेवी माता की कृपा लोगों पर बरसने लगी।
इसके बाद शिवहर ही नहीं आसपास के जिलों के अलावा नेपाल से भी लोग यहां पूजा करने पहुंचने लगे। उस समय आवागमन का कोई साधन नहीं होने के कारण लोग हाथी, घोड़ा, बैलगाड़ी के अलावा पैदल भी आते थे।
शिवहर से 15 किमी दूर हाईवे के किनारे स्थित राजदेवी मंदिर।
मंदिर निर्माण के बाद से गांव में नहीं आई बाढ़, माता करतीं रक्षा
1977 में बागमती नदी पर तटबंध बनाने के बाद लोग विस्थापित हो गए। सरकार ने दोस्तियां दक्षिणी गांव को तटबंध के बाहर पुनर्वासित कर दिया। गांव के पुनर्वासित होने के बाद ग्रामीणों ने पिंडी के पास भव्य मंदिर बनाकर माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की। आज यह स्थल लोगों की आस्था का केंद्र बन गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता सुनील कुमार गुप्ता बताते हैं कि राजदेवी माता काफी दयालु हैं। बाढ़ के दौरान यह लोगों की रक्षा करती हैं। जब से मंदिर का निर्माण हुआ है, गांव में कभी बाढ़ नहीं आई। स्टेट हाईवे गुजरने से होकर गुजरने वाले श्रद्धालु यहां आकर मत्था टेकते हैं।
मंदिर की वजह से क्षेत्र की आर्थिकी में भी बड़ा बदलाव आया है। चार दशक पूर्व तक यहां आसपास खेत-खलिहान था। आज पूरा इलाका बाजार में तब्दील हो गया है। आसपास के दुकानदार पहले माता के दरबार में मत्था टेकते हैं, फिर दुकान खोलते हैं।
नवरात्र के दौरान यहां मेला लगता है। आसपास खाने-पीने की बहुत सी दुकानें है, जहां आप पारंपरिक के साथ हर तरह के भोजन का स्वाद ले सकते हैं। पुजारी राम अयोध्या पांडेय बताते हैं कि यह सिद्ध स्थल है। यहां मत्था टेकने मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है।
नवरात्र में लोग संतान प्राप्ति व सुख-शांति की कामना ले माता के दर्शन को आते हैं। मनोकामना पूरी होने पर माता को नारियल व चुनरी चढ़ाते हैं। मंदिर के किनारे स्टेट हाईवे बन जाने के कारण अब रोजाना श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। इस मंदिर के आसपास तथा राजदेवी चौक पर बड़ा मार्केट भी बन गया है।
मंदिर में स्थापित माता दुर्गा की प्रतिमा।
ऐसे पहुंचें
राजदेवी माता के दर्शन के लिए शिवहर-पिपराही ढाका स्टेट हाईवे एक मात्र सड़क मार्ग है। शिवहर से आटो या निजी सवारी के जरिए यहां आ सकते हैं। शिवहर जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 15 किमी है। मंदिर के आसपास ठहरने की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु शिवहर के होटलों में ठहरते हैं।
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