प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : रोमांच से भर देता है 'मगध का हिमालय', आकर्षित करती हैं वाणावर की गुफाएं
Bihar Tourism बिहार के जहानाबाद जिले में वाणावर पर्वत श्रृंखला पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यहां की नैसर्गिक प्राकृतिक सुंदरता मन को भाने वाली है। यहां ऐतिहासिक धरोहरों का संगम देखने को मिलता है। करीब 100 फीट ऊंचे पहाड़ की चोरी पर देश के सबसे पुराने शिव मंदिर में महादेव के दर्शन के लिए भी लोग यहां आते हैं।
धीरज कुमार, जहानाबाद। जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड में मगध के हिमालय के नाम से प्रसिद्ध वाणावर पहाड़ पर्यटन के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर विकसित होने की सभी संभावनाओं को अपने अंदर सहेजे हुए है। स्थानीय स्तर पर इसे बराबर पहाड़ भी कहा जाता है।
करीब 100 फीट ऊंचे पहाड़ की चोटी पर देश के सबसे पुराने शिव मंदिर में से एक सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर है। अति प्राचीन इस शिव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए सालों भर श्रद्धालु आते हैं। यहां मगध के महान सम्राट अशोक के समय के शिलालेख आज भी उस साम्राज्य की गाथा सुनाते हैं।
ब्राह्मी लिपि में लिखे यह अभिलेख हजारों साल के इतिहास का जीवंत प्रमाण हैं। इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए यह पसंदीदा जगह है। बराबर में न केवल पहाड़ और जंगल हैं, बल्कि औषधीय पौधे और लौह अयस्क के भी यहां भंडार हैं।
जहानाबाद जिला मुख्यालय से 25 किमी दक्षिण-पूरब में स्थित वाणावर पर्वत शृंखला न केवल स्वच्छंद और प्रदूषण रहित नैसर्गिक सौंदर्य को समेटे है, बल्कि भारत के अमूल्य पौराणिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों का संगम भी है। बराबर की पहाड़ी में राक पेंटिंग का अद्भुत नमूना भी है।
इधर के दिनों में बराबर के सुंदरीकरण को लेकर कई कार्य भी किए गए हैं। सुरक्षा के दृष्टिकोण से अब यहां पुलिस थाने की स्थापना कर दी गई है। बौद्ध सर्किट से जोड़े जाने के साथ-साथ हर वर्ष यहां बाणावर महोत्सव का भी आयोजन होता है।
पहाड़ की चोटी तक सुगमतापूर्वक पहुंचने के लिए 24 करोड़ की लागत से चार किमी लंबे रोपवे का निर्माण कार्य चल रहा है। यह देश के अति प्राचीन पहाड़ों में से एक है। बराबर की पहाड़ियों पर कुल सात गुफाएं हैं, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
इनमें चार बराबर पहाड़ियों पर और तीन पास में ही नागार्जुन की पहाड़ियों पर है। पहाड़ों को सावधानी से काट कर हजारों साल पहले बेहद सुंदर गुफाओं का निर्माण किया गया था। इनमें से कई गुफाओं की दीवारों को देखकर लोग दंग रह जाते हैं।
गुफा का मुख्य द्वार।
इसकी चिकनाई आज के समय में लगाई जाने वाली टाइल्स से कहीं अधिक है। मौर्य काल की यह स्थापत्य कला पर्यटकों को आश्चर्य से भर देती है। इनका निर्माण सम्राट अशोक के आदेश पर आजीवक संप्रदाय के बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए किया गया था।
इसमें कर्ण चौपर, सुदामा और लोमस ऋषि गुफा अपनी स्थापत्य कला के लिए दुनिया में प्रसिद्ध हैं। गुफाओं के प्रवेश द्वार पर ही सम्राट अशोक द्वारा अंकित अभिलेख हैं।
वाणावर पहाड़ पर अवस्थित बाबा सिद्धेश्वर नाथ का मंदिर।
जरासंध ने कराया था मंदिर का निर्माण
बाबा सिद्धनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में गुप्त काल के दौरान कराया गया था। दंतकथाओं में यह भी प्रचलित है कि राजगीर के महान राजा जरासंध द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था।
यहां से गुप्त मार्ग राजगीर किले तक पहुंचा था। जिस रास्ते से राजा पूजा अर्चना करने के लिए मंदिर में आते थे। पहाड़ी के नीचे विशाल जलाशय पातालगंगा में स्नान कर मंदिर में पूजा अर्चना की जाती थी।
वाणावर में रोपवे निर्माण में जुटे मजदूर।
ऐसे पहुंचें
वाणावर पटना से सड़क के जरिये यहां दो से तीन घंटे में पहुंच सकते हैं। पटना-गया राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 83 से होते हुए मखदुमपुर में जमुने नदी के पुल को पार करने पर पूरब की ओर सड़क जाती है।
जो सीधे पर्यटक स्थल वाणावर तक पहुंचती है। ट्रेन से आने वाले लोग बराबर हाल्ट पर उतर कर सवारी गाड़ी के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं।
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