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    Bihar Politics: छपरा विधानसभा में 63 साल से महिलाएं हाशिये पर, सुंदरी देवी के बाद किसी को नहीं मिला मौका

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 11:38 AM (IST)

    सारण के छपरा विधानसभा में महिलाओं को नेतृत्व का मौका कम मिला है। 1962 में सुंदरी देवी की जीत के बाद कोई महिला प्रतिनिधि नहीं चुनी गई। पार्टियां महिला कार्यकर्ताओं का उपयोग तो करती हैं पर टिकट पुरुषों को ही देती हैं। इस वजह से महिलाओं से जुड़े मुद्दे दब जाते हैं। अब महिला सशक्तिकरण को केवल नारों तक सीमित न रखकर महिलाओं को टिकट देने की जरूरत है।

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    छपरा विधानसभा में 63 साल से महिलाएं हाशिये पर

    अमृतेश, छपरा। सारण के छपरा विधानसभा की राजनीति का यह बड़ा सच है कि यहां महिलाएं कभी नेतृत्व की पहली पंक्ति में जगह नहीं बना सकीं। दलों ने महिला कार्यकर्ताओं से लेकर बूथ प्रबंधन तक हर मोर्चे पर उन्हें आगे रखा, लेकिन टिकट देने के वक्त हमेशा किनारा कर लिया।

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    कांग्रेस से 1962 में सुंदरी देवी की जीत ही इस सीट की पहली एवं आखिरी महिला प्रतिनिधि रही। उसके बाद 63 साल गुजर गए, लेकिन छपरा की सियासत अब भी पुरुषों के इर्द-गिर्द ही घूम रही है।

    महिला कार्यकर्ताओं की मेहनत, टिकट से दूरी:

    छपरा में महिला कार्यकर्ताओं की मौजूदगी हर राजनीतिक दल में दिखती है। प्रचार से लेकर संगठनात्मक बैठकों तक उनकी भूमिका अहम रहती है।

    पंचायत चुनावों में 50 प्रतिशत आरक्षण ने कई महिलाओं को सत्ता एवं नेतृत्व तक पहुंचाया भी है, लेकिन विधानसभा की बारी आते ही समीकरण बदल जाते हैं और पुरुष नेताओं को ही टिकट थमाया जाता है। सभी पार्टियों ने महिला विंग बनाया है, लेकिन प्रत्याशी बनाने के नाम पर सभी पार्टियां उन्हे तरजीह नही देती।

    दलों की रणनीति एवं दोहरे मापदंड:

    हर चुनाव से पहले दल महिला सशक्तिकरण का नारा बुलंद करते हैं। कांग्रेस ने 1962 में सुंदरी देवी को उतारकर इतिहास रचा, मगर उसके बाद महिला प्रत्याशी की चर्चा तक नहीं की। राजद और जदयू ने संगठन में महिलाओं को जोड़ने की बात कही, लेकिन टिकट हमेशा पुरुषों को दिया।

    भाजपा ने भी अब तक छपरा सीट पर केवल पुरुष उम्मीदवारों पर ही दांव लगाया। यानी दलों को महिला कार्यकर्ताओं की मेहनत तो चाहिए,पर उनकी दावेदारी पर भरोसा करने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई।

    असर महिलाओं के मुद्दों पर:

    महिला प्रतिनिधित्व की कमी का असर विधानसभा तक पहुंचा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे चुनावी भाषणों में तो उठते हैं, मगर प्राथमिकता की सूची में नहीं दिखते। पंचायत स्तर पर महिलाएं संवेदनशीलता से फैसले लेती हैं, पर विधानसभा में उनकी आवाज़ गायब रहती है।

    राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि महिला प्रतिनिधियों की भागीदारी से कई स्थानीय समस्याओं का समाधान अलग दृष्टिकोण से निकल सकता था।

    वक्त की मांग-टिकट एवं भरोसा:

    अब वक्त है कि दल महिला सशक्तिकरण को केवल नारेबाजी और महिला मोर्चे तक सीमित न रखें। छपरा जैसी सीटों पर भी महिलाओं को टिकट देकर असली भरोसा जताएं। मतदाताओं को भी बदलाव की मांग करनी होगी और महिला प्रत्याशियों को समर्थन देना होगा। पंचायत की तरह विधानसभा में भी महिला आरक्षण लागू करना समय की मांग बन गया है।

    सुंदरी देवी तक सिमटी कहानी:

    छपरा विधानसभा का महिला प्रतिनिधित्व केवल एक नाम तक सीमित है सुंदरी देवी। छह दशक का इंतजार बताता है कि दल चुनाव जीतने की रणनीति में महिलाओं को केवल सहायक मानते हैं,नेतृत्व देने लायक नहीं। हालांकि इस बार मैदान में कई महिला कार्यकर्ता तैयारी में हैं। सवाल यही है कि दल उनकी दावेदारी को मौका देंगे या एक बार फिर उन्हें हाशिये पर धकेल दिया जाएगा।

    छपरा विधानसभा के विधायक (1957–2020):

    वर्ष विधायक का नाम पार्टी
    1957 प्रभुनाथ सिंह कांग्रेस
    1962 सुंदरी देवी कांग्रेस
    1967 उदय प्रताप नारायण सिंह जनसंघ
    1969 जनक यादव प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
    1977 मिथिलेश कुमार सिंह जनता पार्टी
    1980 जनक यादव जनता पार्टी (सेक्युलर)
    1985 जनक यादव निर्दलीय
    1990 उदित राय निर्दलीय
    1995 उदित राय जनता दल
    2000 उदित राय राजद
    2005 (फरवरी) राम प्रवेश राय जदयू
    2005 (अक्टूबर) राम प्रवेश राय जदयू
    2010 जनार्दन सिंह सिग्रीवाल भाजपा
    2014 (उपचुनाव) रंधीर कुमार सिंह राजद
    2015 डॉ. सीएन गुप्ता भाजपा
    2020 डॉ. सीएन गुप्ता भाजपा

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