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    Chhapra News: सारण के इस मंदिर में हर मनोकामना होती है पूरी, यूपी से भी भारी संख्या में आते हैं श्रद्धालु

    Updated: Fri, 04 Apr 2025 10:12 AM (IST)

    Chhapra News सारण जिले के आमी गांव में स्थित मां अंबिका भवानी का प्राचीन मंदिर आस्था भक्ति और विश्वास का केंद्र है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के श्रद्धालुओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। मंदिर में चैत्र और आश्विन नवरात्रि पर विशेष पूजन-अर्चना होती है जिसमें नौ दिनों का मेला लगता है। मंदिर में सोमवार और शुक्रवार को भी भीड़ रहती है।

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    सारण के इस प्राचीन मंदिर में मनोकामना होती है पूरी (जागरण)

    संजय शर्मा, दिघवारा (सारण)। Chhapra News: अनादि काल से आस्था, भक्ति एवं विश्वास की असीमित सत्ता को अपने में समेटे हुए सारण जिला के आमी गांव में मां अंबिका भवानी का प्राचीन मंदिर है। मंदिर से कई परंपराए व किवदंतिया जुड़ी है। यह मंदिर क्षेत्र उत्तर प्रदेश के श्रद्धालुओं का भी आस्था का केंद्र बिंदु बना हुआ है। दक्षिणमार्गी वैष्णवी साधक हो या वाममार्गी कपालिनि के साधक, यहां सभी साधकों की सिद्धियां एवं आमजन श्रद्धालुओं की मुरादें पूरी होती है।

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    चैत्र व आश्विन नवरात्र पर यहां विशेष पूजन -अर्चना होने से नौ दिनो का मेला लगता है। सप्तमी व अष्टमी युक्त रात्रि में विशेष पूजा निशा पूजा मुख्य आकर्षण बनता है। तांत्रिक बाबा गंगा राम, अवधूत भगवान राम सहित अन्य सिद्ध साधकों की तपस्थली भी कहा जाता है। मंदिर में सभी पर्व उत्सवों समेत सोमवार व शुक्रवार को भी भीड़ लगी रहती है।

    यहां नये वाहनो की पूजा व नया व्यवसाय शुरू करने से पहले भक्त माता का आशीर्वाद लेने जरूर आते है। नव विवाहित दंपती संतान प्राप्ति, दीर्घ आयु व सुखमय जीवन के लिए माता को नारियल चुनरी व प्रसाद चढ़ाने जरूर पहुंचते हैं।

    मंदिर में जाने का रास्ता

    सारण जिला में मां अंबिका भवानी का प्राचीन मंदिर छपरा सोनपुर मार्ग के मध्य दिघवारा प्रखंड के आमी गांव में एक उंचे टीले पर अवस्थित है। पटना से 52 किलोमीटर और दिघवारा रेलवे स्टेशन व सड़क मार्ग से पांच किलोमीटर की दूरी पर छपरा मार्ग पर अवस्थित हैं।

    पूरब में बाबा हरिहरनाथ, पश्चिम में बाबा धर्मनाथ तथा उतर में शिल्हौड़ी नाथ तथा दक्षिण मे बिहटा स्थित बाबा बटुकेश्वर नाथ चतुष्कोण में समान दूरी पर हैं। त्रिभुजाकार में समान दूरी पर पशुपतिनाथ काठमांडू, बाबा बैद्यनाथ देवघर व बाबा विश्वनाथ वाराणसी स्थित है।

    पहलेजा घाट से आमी तक गंगा नदी धनुषाकार है तथा आमी में गंगा नदी उतरायण है। इसी गंगा नदी के किनारे अत्यंत उंचे टीले पर मां अंबिका भवानी का प्राचीन मंदिर है, इसमें देवी की पिण्डी जैसी मिट्टी की प्रतिमा स्थापित है।

    मंदिर का इतिहास

    विभिन्न पौराणिक कथाओं एवं सारण गजटीयर पृष्ठ-464 के अनुसार मां अंबिका का यह प्राचीन मंदिर प्रजापति राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ-स्थल के रूप में मान्य है। कल्याण पत्रिका प्रयागराज नामक पुस्तक व अन्य प्रभृति विद्वतजनों के अनुसार यहीं पर माता सती अपने पति भगवान शंकर के अपमान से आहत यज्ञ हवनकुंड में कूद पड़ी थी।

    भगवान शंकर को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वे अत्यंत क्रोधित हो उठे और सती के शव को यज्ञ कुंड से निकालकर कंधे पर रख कर तांडव नृत्य करने लगें, जिससे प्रलय की आशंका उत्पन्न हो गई। तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर को टुकड़े टुकड़े में काट दिया।

    जहां जहां सती के अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया। हवन कुंड में जलते समय मां सती के शरीर की भस्म यज्ञ-हवनकुंड में रह गई थी। यह स्थान शक्तिपीठ अंबिका स्थान आमी के नाम से जाना जाता है।

    मार्केण्डय पुराण तथा दुर्गासप्तशती में वर्णित है कि कालांतर में राजा सुरथ व समाधी वैश्य ने मिट्टी की भगाकार पिंड बनाकर इसी स्थान पर वर्षो तक मां दुर्गा की पूजा की थी, तब देवी ने प्रकट होकर उन्हें मनचाहा वरदान दिया।

    इस मंदिर में मिट्टी की भगाकार विशाल पिंडी हैं, जो आज भी विद्यमान है। मां की मिट्टी रुपी इस प्रतिमा का प्रतिदिन जल, शहद, घी व चमेली के तेल से अभिषेक किया जाता है लेकिन माता का चमत्कार ही है मिट्टीरूपी प्रतिमा का एक इंच भी नुकसान नही हुआ है।

    बाबा भैरवनाथ का भी मंदिर

    माता अंबिका भवानी मंदिर में बाबा भैरवनाथ का मंदिर भी स्थित है। मान्यता है कि माता के दर्शन के बाद श्रद्धालु भैरवनाथ का आशीर्वाद जरूर लेते हैं। इससे मनोकामना जल्द पूरी होती है।

    विशेषता

    हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा आदिशक्ति मां अंबिका भवानी का पांव पखारने दक्षिण से उत्तर वाहिनी हो जाती है। गंगा नदी तट पर मां अंबिका भवानी का उंचे टीले पर विशाल व आकर्षक भवन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

    मंदिर के गर्भगृह में स्थित कुंड में हाथ डाल कर मन्नत मांगी जाती है तथा कुंड से प्राप्त प्रसाद को मुट्ठी में बंद कर लाल वस्त्र में छुपा कर रखने से मन्नत पुरी हो जाती है। वहीं आदि शक्ति माता अंबिका के गर्भगृह से सटे बाबा भोलेनाथ का विशालकाय प्रतिमा स्थापित की गई है। वहां शक्तिस्वरूपा की आराधना के साथ बाबा भोलेनाथ की भी पूजा की जाती है।

    कला व वास्तुकला

    सारण गजेटियर एवं बिहार सरकार के पूर्व पुरातत्व निदेशक डा. प्रकाश चरण प्रसाद इसे दक्ष क्षेत्र एवं शिव शक्ति समन्वय स्थल मानते हैं। डा. प्रसाद इसे प्राचीन मातृ शक्ति रूप मानते हुए मां की मिट्टी की प्रतिमा की प्रागैतिहासिक काल की प्रतिमा स्वीकार करते हैं।

    उनके अनुसार ऐसी प्रतिमाओं के लिए प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक नहीं है। शिव एवं शक्ति क्षेत्र प्रमाणित करते हुए पुरातत्ववेता का कहना है कि यहां गंगा शिव रूप में लिंगाकार है। गंडक व सोन का संगम रहा आमी लिंगाकार शिव एवं अंडाकार शक्ति रूप में है। नौ दुर्गा की नौ पिण्डियों के साथ एकादश रूद्र यहां स्थापित हैं।

    यह संगम निर्णय भूमि है, जो साधना और सिद्धि के लिए उपयुक्त है। डा. देवेन्द्र नाथ शर्मा, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, डा. राजेश्वर सिंह राजेश, भू-वैज्ञानिक प्रो. विपिन प्रसाद उक्त पावन स्थल का सांस्कृतिक विकास कुषाण काल से स्वीकारते हैं।

    भू-वैज्ञानिक एवं एसडीडी कालेज रामपुर के भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो. विपिन प्रसाद के अनुसार सिद्धपीठ अम्बिका स्थल गंगा, सोन एवं नारायणी का संगम था। भौगोलिक परिवर्तन स्वरूप दो नदियों की धारा बदल गयी। बहरहाल शिव शक्ति स्थल बनाम सुरथ समाधि स्थल विवाद का हल श्रद्धालुगणों में नहीं है।

    जानकारों का मानना है कि सुरथ समाधि एवं दक्ष प्रजापति स्थल आमी ही है। यदि दक्ष क्षेत्र कनखल (उतराखंड) प्रमाणिक है तो औधेश्वर भगवान रूद्र देव के 108 मतुण्डमाल प्रमाणित करते है कि त्रेता के पूर्व सतयुग में सती दहन यही हुआ था।

    मंदिर का महत्व

    प्रयाग के कल्याण मंदिर द्वारा प्रकाशित बिहार में शक्ति साधना नामक पुस्तक के द्वितीय खंड में आये वर्णन के अनुसार बिहार की भूमि में शक्ति उपासना वैदिक काल से ही नहीं, अनादि और आदि काल से होती आ रही है। इस पावन भूमि में तीन शक्ति स्थान मूर्धन्य हैं।

    इनका पौराणिक आधार यह है अम्बिका भवानी, सर्वमंगल गया एवं छिन्न मस्तिका हजारीबाग, यद्यपि विद्वत जनों में मार्कण्डेय पुराण में वर्णित सुरथ समाधि की तपोभूमि एवं दक्ष प्रजापति की यज्ञ भूमि को लेकर मतभेद है।

    किन्तु श्रद्धालु एवं साधक भेद बुद्धि से ऊपर उठ अभेद एवं अघोर बनकर साधनारत रहते हैं। विशेषकर, शरद एवं चैत्र नवरात्र के अवसर पर। मार्कण्डेय पुराण में वर्णित सुरथ और समाधि वैश्य कथा को त्रिदण्डी स्वामी उनके शिष्य एवं गजेन्द्र मोक्ष धाम के पीठाधीश्वर स्वामी लक्ष्मणाचार्य, शिववचन सिंह शिवम प्रभृति विद्वान अम्बिका स्थान को प्रमाणित करते हुए स्वीकार करते हैं कि पूरे विश्व में मिट्टी की प्रतिमा यदि कहीं है तो वह आमी में।

    मेषध ऋषि का आश्रम भी गंगा सोन व घाघरा के संगम चिरांद में प्रमाणित है। यह वहीं स्थल है जहां राजा सुरथ और वैश्य समाधि को वैष्णवी शक्ति का साक्षाकार हुआ। मंदिर में अंकित अम्बे, अम्बिके अम्बालिके शब्द भी महालक्ष्मी के पर्याय है। उत्खनन से प्राप्त शंख, और उसपर अंकित चित्र आदि शक्ति वैष्णवी की अदृश्य उपस्थिति दर्शाते हैं।

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