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    बेटे वैभव सूर्यवंशी का सपना, पिता संजीव की तपस्या ने बदला नसीब, बिहार के लाल की रोचक कहानी

    By Dharmendra SinghEdited By: Dharmendra Singh
    Updated: Sun, 28 Dec 2025 01:24 PM (IST)

    समस्तीपुर के वैभव सूर्यवंशी कीउपलब्धि उनके पिता संजीव सूर्यवंशी के अथक त्याग और संघर्ष का परिणाम है। संजीव ने घर पर पिच बनाई, आर्थिक तंगी झेली और बेटे ...और पढ़ें

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    बिहार के समस्तीपुर निवासी वैभव सूर्यवंशी की तस्वीर।

    डिजिटल डेस्क, समस्तीपुर । बिहार के समस्तीपुर की मिट्टी ने एक ऐसा सपना पाला, जिसे पूरा करने के लिए एक पिता ने अपनी पूरी जिंदगी होम कर दी। 13 साल की उम्र में आईपीएल का हिस्सा बनकर वैभव सूर्यवंशी ने इतिहास तो रच दिया, लेकिन इस इतिहास के हर पन्ने पर उसके पिता संजीव सूर्यवंशी का त्याग, संघर्ष और मौन तपस्या दर्ज है।

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    जब पिता ने बेटे में भविष्य देख लिया

    वैभव जब पहली बार बल्ला थामकर मैदान में उतरा, तभी संजीव सूर्यवंशी की आंखों ने कुछ अलग देख लिया था। खेल में एक ठहराव, शॉट्स में समझ और आंखों में जुनून संजीव समझ गए थे कि यह बच्चा भीड़ का हिस्सा बनने नहीं, इतिहास बनाने आया है। उसी दिन एक किसान पिता ने मन ही मन तय कर लिया कि चाहे खेत सूखे रहें, बेटे का सपना कभी सूखने नहीं देंगे।

    घर आंगन में बहा पसीना, बना भविष्य

    गांव में न कोच थे, न सुविधाएं। लेकिन संजीव ने हालात से हार मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने घर के पीछे मिट्टी की पिच बनवाई। वही आंगन वैभव का मैदान बना, वही उसकी पाठशाला। सुबह की ठंड हो या दोपहर की तपती धूप, संजीव बेटे के साथ खड़े रहे—कभी गेंद डालते हुए, कभी गलतियों पर टोकते हुए। उस आंगन में सिर्फ पसीना नहीं बहा, वहां एक भविष्य गढ़ा गया।

    जब हालातों ने परीक्षा ली

    खेती व कुछ छोटे कार्य से घर चलाने वाले पिता के लिए महंगे बैट और किट खरीदना किसी चुनौती से कम नहीं था। कई बार पैसों की तंगी ने दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन संजीव ने वैभव के सपनों को कभी अंदर झांकने नहीं दिया। अपनी जरूरतें घटाईं, इच्छाओं को दबाया, ताकि बेटे के हाथ में कभी साधनों की कमी न हो। बेहतर ट्रेनिंग के लिए वैभव को घर से दूर भेजना संजीव के दिल के सबसे मुश्किल फैसलों में से एक था—लेकिन उन्होंने आंसुओं को भी लक्ष्य के आगे झुका दिया।

    मेहनत रंग लाई, सपना साकार हुआ

    पिता की दी हुई सीख और सालों की साधना का असर मैदान पर दिखा। वैभव ने कम उम्र में रणजी ट्रॉफी में कदम रखा और फिर वो दिन आया, जब राजस्थान रॉयल्स ने उसे 1.10 करोड़ रुपये में खरीद लिया। 13 साल का वह बच्चा आईपीएल का सबसे युवा खिलाड़ी बना, और समस्तीपुर का एक साधारण सा घर खुशी के आंसुओं से भर उठा।

    हर बाउंड्री में पिता की कहानी

    आज जब वैभव का बल्ला बाउंड्री पार करता है, तो सिर्फ रन नहीं बनते—एक पिता के सालों के त्याग की गूंज सुनाई देती है। संजीव सूर्यवंशी आज हर उस अभिभावक की प्रेरणा हैं, जो अपने बच्चों के सपनों पर भरोसा करता है। उन्होंने साबित कर दिया कि जब पिता ढाल बनकर खड़ा हो, तो बेटा आसमान छू सकता है।

    पिता के अटूट विश्वास की विजय

    संजीव के घर के आसपास आज एक ही चर्चा है कि वैभव की सफलता महज इत्तेफाक नहीं, उनके पिता के अटूट विश्वास की विजय है। जब वैभव नन्हे कदमों से मैदान पर उतरते थे, तभी संजीव की आंखों ने वह सपना देख लिया था जिसे आज दुनिया देख रही है।

    पड़ोसियों के अनुसार, संजीव ने अपनी खुशियों को किनारे रखकर बेटे के खेल को ही अपना 'धर्म' बना लिया था। आज जब वैभव दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं, तो यह उस पिता के वर्षों के मौन संघर्ष और तपस्या का प्रतिफल है, जिन्होंने एक पत्थर को हीरा बनाने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया।