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    Ayodhya Ram Mandir: भगवान श्रीराम के सिंहासन को मलबे में दबने से बचाया... पढ़िए बिहार के कारसेवक की संघर्ष की कहानी

    Bihar News14 अक्टूबर 1988 को सरयू तट पर एक विराट सभा हुई। 6 दिसंबर 1992 का वह पल उन्हें अच्छी तरह याद हैजब ट्रेन अयोध्या स्टेशन पर ना रुकते हुए आगे निकल गई थी। कुछ देर बाद सीटी बजी थी। देखते ही देखते पूरी ट्रेन खाली हो गई। ट्रेन के रुकते ही सभी लोग कूद गए और छिपते– छिपाते अयोध्या पहुंचकर कर कार सेवा में जुट गए।

    By Kumod Pd Giri Edited By: Sanjeev KumarUpdated: Wed, 10 Jan 2024 02:36 PM (IST)
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    अयोध्या में बिहार के कारसेवकों ने भी दिखाई थी हिम्मत (जागरण)

    कुमोद प्रसाद गिरि,सरायरंजन (समस्तीपुर)। Ayodhya Ram Mandir: प्रखंड के बिरजेश्वर धाम लाटबसेपुरा के पीठाधीश्वर सह श्रीरामचरित मानस प्रचार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य सत्यनारायण मिश्र सत्य एक समर्पित कार सेवक होने के नाते श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में आगामी 22 जनवरी को मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर काफी उत्साहित हैं। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य, दिव्य मंदिर का निर्माण उनके जीवन का सपना था, जो अब सच होने जा रहा है।

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    मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए आगामी 19 जनवरी को अयोध्या के लिए वे रवाना होंगे। वे बताते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि का मुद्दा सर्वप्रथम 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने उठाया था। तब वह विश्व हिंदू परिषद के जिला अध्यक्ष थे। उन्होंने गांव-गांव में श्रीराम जानकी रथ को घुमाकर जन जागरण अभियान चलाया।

    ट्रेन से कूदकर, छिपते-छिपते पहुंचे थे अयोध्या

    14 अक्टूबर 1988 को सरयू तट पर एक विराट सभा हुई। 6 दिसंबर 1992 का वह पल उन्हें अच्छी तरह याद है,जब ट्रेन अयोध्या स्टेशन पर ना रुकते हुए आगे निकल गई थी। कुछ देर बाद सीटी बजी थी। देखते ही देखते पूरी ट्रेन खाली हो गई। ट्रेन के रुकते ही सभी लोग कूद गए और छिपते– छिपाते अयोध्या पहुंचकर कर कार सेवा में जुट गए।

    लाल कृष्ण आडवाणी दे रहे थे भाषण, उसी दौरान कारसेवकों ने बैरिकेट्स को उड़ा दिया

    आचार्य बताते हैं कि बाबरी मस्जिद के इर्द-गिर्द बड़ी संख्या में पुलिस तैनात थी और लोहे के बैरिकेटस लगाए गए थे। लालकृष्ण आडवाणी भाषण दे रहे थे। पर युवाओं का ध्यान उस ओर नहीं था। उसी वक्त एक साधु ने बस से बैरिकेट्स को उड़ा दिया और सीधे मंदिर स्थल पर पहुंच गया।

    आगे बस और पीछे युवाओं का हुजूम। मंजर बदल चुका था। हर कोई अपने स्तर से ढांचे को तोड़ने लगा। इसी दौरान उन्होंने श्रीराम के सिंहासन को उठाकर बाहर निकाला तथा मलबे में दबने से उन्हें बचाया। मात्र 40 मिनट में ही ढांचा ध्वस्त हो चुका था। कल होकर रात में जब वहां कर्फ्यू लग गया तो वे लोग वहां से हट गए। बताया कि श्रीराम मंदिर के निर्माण को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर 2010 को अपना निर्णय सुनाया।

    वहीं सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 9 नवंबर 2019 को आया। इसके बाद उन लोगों की मौजूदगी में श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। आगामी 22 जनवरी 2024 को श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। उन्हें अपार खुशी है कि उन लोगों ने जो संकल्प लिया था– सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे, वह संकल्प आज पूरा होने जा रहा है।

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