Bihar Politics: इस सीट पर सिर्फ एक बार खिला कमल, 2020 में ओवैसी की AIMIM ने मारी थी बाजी
पूर्णिया जिले का अमौर विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक रूप से अप्रत्याशित रहा है। कांग्रेस ने यहां सबसे अधिक आठ बार जीत दर्ज की है हालांकि एआईएमआईएम ने भी पि ...और पढ़ें

प्रकाश वत्स, पूर्णिया। किशनगंज लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा पूर्णिया जिला का अमौर विधानसभा क्षेत्र के मिजाज को पढ़ पाना राजनीतिक प्रेक्षकों के लिए मुश्किल होता है। सन 1951 में अस्तित्व आए इस विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक आठ जीत कांग्रेस के नाम है। लगभग 75 साल के इतिहास में यहां महज एक बार सन 2010 के चुनाव में कमल खिल पाया है।
लगभग 70 फीसद मुस्लिम मतदाता वाले इस विधानसभा क्षेत्र से महज एक बार गैर मुस्लिम प्रत्याशी की जीत हुई है। सन 1977 के चुनाव में यहां जनता पार्टी के चंद्रशेखर झा चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे।
गत विधानसभा चुनाव में यहां एआईएमआईएम ने पहली जीत दर्ज की और यह विधानसभा क्षेत्र काफी सूर्खियों में रहा। एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान यहां के विधायक चुने गए। उन्होंने जदयू के सबा जफर को 50 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था। कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर सरक गई थी। यद्यपि इस सीट से सर्वाधिक जीत का सेहरा कांग्रेस के सिर ही है।
कांग्रेस को यहां से कुल आठ बार जीत मिली है। चार बार यहां निर्दलीय प्रत्याशी को भी जीत मिली है। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने भी यहां दो बार जीत दर्ज की है। जनता पार्टी, भाजपा, समाजवादी पार्टी व एआईएमआईएम ने यहां से एक-एक बार जीत दर्ज की है। यहां सदा से राजनीति की अलग धारा बहती रही है।
मु. ताहिर बने थे पहले विधायक
अमौर विधानसभा क्षेत्र में सन 1952 में हुए प्रथम चुनाव में कांग्रेस के मु. ताहिर विजयी हुए थे। सन 1957 में निर्दलीय मु. इसमाइल के सिर सेहरा बंधा था। सन 1962 में निर्दलीय मु. अलीजान ने जीत दर्ज की थी। 1967 व 1969 के चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के हसीबुर रहमान यहां के विधायक चुने गए थे।
सन 1972 के चुनाव में हसीबुर रहमान निर्दलीय मैदान में उतरे थे और एक बार फिर विजयी हुए थे। सन 1977 में जनता पार्टी के चंद्रशेखर झा विजयी रहे थे। सन1980 के चुनाव में कांग्रेस के मोजीउद्दीन मिनशी विजयी हुए थे। सन 1985 के चुनाव में निर्दलीय अब्दुल जलील मस्तान को लोगों ने विधायक चुना था।
1990 के चुनाव में कांग्रेस ने जलील मस्तान को ही अपना उम्मीदवार बनाया और वे फिर विजयी रहे। सन 1995 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के मुजफ्फर हुसैन ने बाजी पलट दी और जलील मस्तान चुनाव हार गए। सन 1977 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मैदान में उतरे सबा जफर को लोगों ने सिर आंखों पर बिठाया।
इधर, सन 2000 के साथ-साथ 2005 के चुनाव व उप चुनाव में जलील मस्तान कांग्रेस की टिकट से मैदान में उतरे और विजयी भी रहे। सन 2010 में सबा जफर भाजपा से टिकट लेकर मैदान में उतरे और कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान को पटकनी देकर चुनाव जीत गए।
सन 2015 में फिर से कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान विजयी रहे। इधर, सन 2020 के चुनाव में एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान विजयी रहे।
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