पटना को क्यों कहा जाता था कुसुमपुर व पुष्पपुर? ज्ञान भवन में लगी पुष्प प्रदर्शनी शांत कर देगी जिज्ञासा
पटना के गांधी मैदान के पास बने ज्ञान भवन में पुष्प प्रदर्शनी की शुरुआत हो चुकी है। यहां राजधानी के अतीत की जानकारी मिल सकती है। तो एक बार जरूर आएं।
पटना, जेएनएन। फूलों को पसंद करने वाले राजधानी में गांधी मैदान के पास ज्ञान भवन तक जरूर जाएं। वहां दो दिन तक फूलों के प्रकार और खुशबू की भरमार होगी। यह भी अहसास होगा कि बिहार की राजधानी का नाम पाटलिपुत्र से पहले कुसुमपुर और पुष्पपुर क्यों पड़ा था? अब पटना को फिर पुरानी पहचान से जोडऩे की तैयारी है। इसे फ्लावर हब के रूप में विकसित करने की योजना है। कुछ हद तक कामयाबी भी मिल रही है। किंतु सच्चाई यह है कि अभी भी पटना में कोलकाता से ही फूलों की खेप आती है।
पाटलिपुत्र का मतलब है गुलाब
पटना का अतीत कई नामों से जुड़ा है। कभी यह पाटलिग्राम के नाम से भी जाना जाता था। पाटलिपुत्र का मतलब गुलाब है। माना जाता है कि गंगा और सोन नदी के दोयाब पर बसे इस नगर के आसपास पहले गुलाब के फूलों की खेती खूब होती थी। यहां के लोग फूलों के कारोबार और व्यापार से जुड़े थे। बागवानी मिशन के तहत सरकार ने पटना की पुरानी प्रसिद्धि के अनुरूप ही फूलों की खेती की योजना बनाई है। अभी तीन लाख सात हजार 439 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष फूलों का उत्पादन हो रहा है। किंतु बिहार में फूलों की जितनी खपत होती है, उसकी तुलना में बहुत कम उत्पादन होता। जरूरत के लिए बिहार को पश्चिम बंगाल पर निर्भर रहना पड़ता है। इसी को ध्यान में रखते हुए पटना एवं जहानाबाद जिले को फ्लावर हब के रूप में विकसित करने का काम शुरू कर दिया गया है। राज्य सरकार ने इसके लिए एक सर्वे भी कराया है।
फूलों की खेती पर 50 फीसद अनुदान
फूलों की खेती की संभावनाओं को देखते हुए राज्य सरकार ने प्रोत्साहन योजना चलाई है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं मुख्यमंत्री बागवानी मिशन के तहत फिलहाल राज्य में एक हजार हेक्टेयर में फूलों की खेती हो रही है। तीसरे कृषि रोडमैप में भी फूलों की खेती पर खास तौर पर फोकस किया गया है। प्रत्येक साल पांच-पांच सौ हेक्टेयर उत्पादन क्षेत्र बढ़ाने की योजना पर काम किया जा रहा है। वर्ष 2022 तक ढाई हजार हेक्टेयर में फूलों की खेती का अतिरिक्त विस्तार देना है। अधिकतम दो हेक्टेयर में फूलों की खेती पर लागत मूल्य पर किसानों को 50 फीसद अनुदान की व्यवस्था है।
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