नीतीश, चिराग और मांझी क्यों मौन हैं सीजेआई हमले पर? पुनिया ने उठाए सवाल
कांग्रेस सांसद तनुज पुनिया ने सीजेआई पर हुए हमले की निंदा करते हुए नीतीश कुमार चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की चुप्पी पर सवाल उठाए। पुनिया ने बिहार सरकार की कास्टवाइज सोशल-इकोनॉमिक रिपोर्ट पर भी बात की जिसमें दलितों और गरीबों की दयनीय स्थिति उजागर हुई है। उन्होंने दलितों के लिए संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया।

राज्य ब्यूरो, पटना। कांग्रेस सांसद तनुज पूनिया ने कहा है कि संविधान निर्माता बाबा साहब ने हमें कलम की ताकत दी थी,आज जब एक दलित उस ताकत का इस्तेमाल कर के देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी पर बैठा है तो ये हमें जूते से डरा रहे है। आरएसएस–भाजपा मानसिकता से प्रेरित लोग लगातार मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। हम इसकी कठोर निंदा करते हैं। पुनिया बुधवार को सदाकत आश्रम में प्रेस से बात कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि यह जूता भारत की संवैधानिक अस्मिता पर फेंका गया है,बाबा साहेब के आदर्शों पर मारा गया है, और देश के दलितों के आत्मसम्मान पर मारा गया है।
शर्मनाक है कि नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी और चिराग पासवान जैसे नेता,जो दलितों के वोट से राजनीति कर यहां तक पहुंचे,आज जब एक दलित और वंचित समाज के सर्वोच्च प्रतिनिधि का अपमान हो रहा है,तब ये सब चुप हैं। उनकी यह चुप्पी राजनीतिक नहीं, नैतिक दिवालियापन की निशानी है।
तनुज पुनिया का सवाल था कि क्या दलितों के वोट सिर्फ़ सत्ता की सीढ़ी हैं?
जब दलितों पर हमला होता है, तब आपकी ज़ुबान क्यों सिल जाती है?
कांग्रेस पार्टी देश के संविधान, सामाजिक न्याय और समान अवसर के लिए संघर्ष जारी रखेगी। हम संकल्प लेते है राहुल गांधी के स्वप्न को साकार करेंगे और दलितों पिछड़ों अति पिछड़ों आदिवासियों शोषितों को उनका अधिकार देंगे।
पुनिया ने कहा कि जेडीयू सरकार द्वार जारी कास्टवाइज़ सोशल-इकोनॉमिक रिपोर्ट ने बिहार की सच्चाई उजागर की। इस रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार के 94.42 लाख परिवार , यानी हर तीसरा परिवार 200 रुपये प्रतिदिन या उससे भी कम पर गुजर-बसर कर रहा है। 2.76 करोड़ परिवारों में से 64 प्रतिशत आबादी गरीबी और अभाव की गहरी खाई में धकेल दी गई है।
अनुसूचित जातियों में मुसहर (54.5%), भुइयां (53.5%), और डोम (53.1%) जातियां सबसे अधिक गरीब हैं। अनुसूचित जनजातियों में बिरहोर (78%), चेरो (59.6%), सौरिया पहाड़िया (56.5%), और बंजारा (55.6%) गरीबी में हैं।
इसका सीधा अर्थ यह है कि बिहार के संसाधन दलितों गरीबों तक नहीं पहुंचे। बल्कि भ्रष्टाचार और सत्ता की लूट में गायब हो गए। प्रेस वार्ता में मीडिया कॉर्डिनेटर अभय दुबे,राजेश राठौड़ भी उपस्थित रहे।
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