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भाजपा-जदयू की दोस्ती के गारंटर थे अरुण जेटली, बिहार में लालू-राबड़ी युग का किया था अंत

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का शनिवार को निधन हो गया। अरुण जेटली बिहार में भाजपा और जदयू के बीच की दोस्ती के गारंटर थे। उन्होंने ही बिहार में लालू-राबड़ी के युग का अंत किया था।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sun, 25 Aug 2019 03:20 PM (IST)Updated: Sun, 25 Aug 2019 09:44 PM (IST)
भाजपा-जदयू की दोस्ती के गारंटर थे अरुण जेटली, बिहार में लालू-राबड़ी युग का किया था अंत
भाजपा-जदयू की दोस्ती के गारंटर थे अरुण जेटली, बिहार में लालू-राबड़ी युग का किया था अंत

राज्य ब्यूरो, पटना। अरुण जेटली बिहार के नहीं थे, लेकिन बीते 20 वर्षों में उनका राज्य की राजनीति से गहरा जुड़ाव रहा। राज्य में एनडीए की सरकार के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। भाजपा-जदयू की दोस्ती के बीच वे गारंटर की तरह रहे। जब कभी दोनों दलों के बीच किसी मुद्दे पर तकरार हुई, जेटली ने मध्यस्थ बनकर उसका समाधान किया। सच यह है कि जेटली और नीतीश कुमार के बीच की आपसी समझदारी को गौण कर दें तो भाजपा और जदयू के बीच दोस्ती का कोई सूत्र नहीं मिलेगा। 

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चारा घोटाला मामले की जांच में निभाई थी अहम भूमिका

शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि अगर अरुण जेटली ना होते तो ना चारा घोटाले की सीबीआई जांच हो पाती और ना लालू यादव जेल जाते। इसके अलावा उन्होंने नीतीश कुमार को भी मुख्यमंत्री बनाने में एक अहम भूमिका अदा की थी, जिसका ढिंढोरा उन्होंने कभी नहीं पीटा।

यूं तो भाजपा के पितृ पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुत पहले नीतीश कुमार में संभावना देख ली थी। 2000 में जब नीतीश सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे, उस समय विधानसभा में सदस्य संख्या के लिहाज से भाजपा बड़ी पार्टी थी। फिर भी नीतीश मुख्यमंत्री बने तो उसमें अरुण जेटली का बड़ा योगदान था। वह प्रयोग विफल रहा।

नीतीश 2005 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। इसके लिए जेटली ने कड़ी मेहनत की। भाजपा के कुछ नेताओं के अलावा जदयू के कुछ दिग्गज भी इस राय के थे कि मुख्यमंत्री की घोषणा चुनाव परिणाम के बाद होगी। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम ही थी। उस दौर में अरुण जेटली पहाड़ की तरह नीतीश कुमार के पक्ष में खड़े हुए।

जनता के बीच यह संदेश साफ-साफ चला गया कि एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। अंतत: नवम्बर 2005 में नीतीश कुमार की अगुआई में राज्य में सरकार बनी। जीतनराम मांझी के अल्पकाल को छोड़ दें तो अबतक चल रही है। उस विधानसभा चुनाव में अरुण जेटली पटना में कैंप कर गए थे। दोनों दलों के बीच सीटों को लेकर तकरार हुई तो उसे जेटली ने ही सुलझाया। 

भाजपा-जदयू की दोस्ती में बड़ी दरार जून 2010 में पड़ी थी। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभर रहे थे। पटना में भाजपा का राष्ट्रीय सम्मेलन था। विवाद के चलते नीतीश कुमार ने भोज रद कर दिया। एकबारगी लगा कि दोनों दलों का संबंध खत्म हो गया।

वे अरुण जेटली ही थे जिन्होंने उस कठिन दौर में गठबंधन को टूटने से बचा लिया। जेटली और पार्टी के वरिष्ठ नेता वैंकैया नायडू ने नीतीश को मनाया। जून में झगड़ा हुआ। तीन महीने बाद विधानसभा का चुनाव हुआ। उस चुनाव में गठबंधन को जबरदस्त कामयाबी मिली। राजद महज 22 सीट पर सिमट गया था। भोज रद होने की कटुता इतनी जल्दी खत्म हुई, यह भी अरुण जेटली का ही कमाल था। 

उसके बाद तीन साल बिना किसी विवाद के गुजर गए। 2013 में भाजपा-जदयू की दोस्ती खत्म हो गई। 2014 के चुनाव में दोनों अलग-अलग लड़े। भाजपा गठबंधन को 40 में से 31 सीटें मिली। जदयू दो पर सिमट आया। इसके बावजूद अरुण जेटली और नीतीश की दोस्ती खत्म नहीं हुई।

संयोग से अगले साल के विधानसभा चुनाव परिणाम ने अरुण जेटली को भाजपा नेतृत्व के समक्ष नीतीश के पक्ष को मजबूती से रखने का अवसर दिया। देश की बात अलग है। बिहार में एनडीए के लिए नीतीश अपरिहार्य हैं। राजद के साथ टकराव ने दोनों दलों को करीब ला दिया।

लोकसभा चुनाव में नीतीश की उपयोगिता एकबार फिर साबित हुई। एनडीए को 40 में से 39 सीटों पर सफलता मिली। यह राज्य में किसी दल की चुनावी सफलता का रिकार्ड है। 

कुछ वर्षो के लिए नीतीश कुमार भले ही भाजपा से अलग रहे हों, मगर वे अरुण जेटली से कभी अलग नहीं हुए। नोटबंदी का समर्थन करने वाले नीतीश विपक्ष के इकलौते मुख्यमंत्री थे। जेटली वित्त मंत्री थे। समझा जाता है कि नीतीश के नोटबंदी के समर्थन में भी जेटली की भूमिका थी।

23 जुलाई 2017 को निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोज दिया था। भोज में नीतीश कुमार भी शामिल हुए थे। उसमें भी वे विपक्ष के इकलौते मुख्यमंत्री थे। उसके सप्ताह भर के भीतर ही बिहार में सत्ता परिवर्तन हो गया। नीतीश कुमार राजद से अलग होकर भाजपा से जुड़ गए। भोज में जेटली भी शामिल थे। बेशक यह बदलाव जेटली के बिना संभव नहीं था। 


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