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    Karpoori Thakur: जब कर्पूरी ठाकुर ने चुनाव लड़ने के लिए दिए थे 500 रुपये, राजद के दिग्गज नेता ने सुनाई दिलचस्प कहानी

    By Sunil Raj Edited By: Sanjeev Kumar
    Updated: Wed, 24 Jan 2024 10:07 AM (IST)

    Bihar News बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और बाद में नेता विरोधी दल रहे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने के बाद राजद के वरिष्ठ नेता और कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) के सहयोगी रहे अब्दुल बारी सिद्दीकी ने उस समय की दिलचस्प कहानी साझा किया। उन्होंने बताया कि कर्पूरी ठाकुर ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए केवल 500 रुपये दिए थे।

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    आरजेडी के दिग्गज नेता अब्दुल बारी सिद्दकी ने सुनाई कर्पूरी ठाकुर की दिलचस्प कहानी (जागरण)

     सुनील राज, पटना। Bihar News:  बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और बाद में नेता विरोधी दल रहे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के बाद राजद के वरिष्ठ नेता और कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) के सहयोगी रहे अब्दुल बारी सिद्दीकी ने जागरण से विशेष बातचीत की और पुरानी यादों को ताजा किया।

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    उन दिनों को याद करते हुए सिद्दीकी कहते हैं कि उन्होंने कर्पूरी जैसा नेता नहीं देखा। उनकी कथनी और करनी में एकरूपता थी। वे जो कहते उसे पूरा जरूर करते। बात 1977 की है। मैं बहेरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहा था। कर्पूरी जी ने सहयोग के रूप में मुझे दो सौ रुपये दिए। इसके बाद 1980 में जब चुनाव हो रहे थे तो उन्होंने मुझे पांच सौ रुपये दिए। हाथों में पांच सौ रुपये देखकर मैैंने सवाल किया, पांच सौ?

    कर्पूरी जी मुस्कुराए और बोले बाकियों को ढ़ाई सौ या तीन सौ रुपये दिए हैं, तुमको दो सौ रुपये बढ़ाकर दे रहा हूं। सिद्दीकी कुछ देर ठहरते हैं और उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि कर्पूरी जी के साथ मैं उनकी सरकारी कार से कहीं जा रहा था।

    जब कर्पूरी ठाकुर ने सिद्दीकी को दिया निजी सचिव बनने का ऑफर

    अचानक उन्होंने मुझसे पूछा कि बउ्उो (प्यार में कर्पूरी ठाकुर सिद्दीकी जी को बउ्उो ही कहते थे।) मेरे निजी सचिव बनोगे। एक सीट खाली है। मुझे कुछ जवाब नहीं सूझ रहा था। क्या बोलूं न बोलूं समझ में नहीं आ रहा था। उन्होंने मुझे उधेड़बुन में देखा तो कार रोकी और मुझे उतार कर कहा, तुम्हारे पास दो दिन है। सोच कर बताना।

    बहरहाल मैं घर आ गया। सूझ नहीं रहा था क्या करूं, क्या न करूं। बहरहाल फिर सोचा इतने बड़े व्यक्ति का प्राइवेट सेक्रेटरी बनने में नाम ही होगा। मैं दूसरे दिन उनसे मिलने पहुंचा। मुझे देखते हुए ठाकुर जी ने कहा, देखो

    तुम्हारा जो भी फैसला हो मुझे नहीं पता? लेकिन मैंने दो दिन पहले ही तुम्हारा नाम निजी सचिव के लिए भेज दिया है। तुम्हे ज्यादा कुछ करना नहीं है। जो आवेदन आएं उन्हें देखकर सही करके मेरे पास लाना है, बस यही करना है।

    मुझे भी अपना पुत्र मानते थे कर्पूरी ठाकुर: अब्दुल बारी सिद्दकी

    सिद्दीकी बताते हैं कि कर्पूरी जी की तीन संताने हैं। रामनाथ ठाकुर, वीरेंद्र ठाकुर और पुत्र रेणु। ये उनकी अपनी संतानें थी, लेकिन मुझे भी वे अपना पुत्र ही मानते थे। मैंने प्रेम विवाह किया। उन दिनों कर्पूरी जी दिल्ली गए। मैं उन्हीं के घर पर पत्नी के साथ रहता था।

    दिल्ली जाने के बाद भी वे प्रत्येक दिन अपने बच्चों को फोन कर यह याद दिलाना नहीं भूलते कि सिद्दीकी का ध्यान रखना। उसे और उसकी पत्नी को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए। अब्दुल बारी सिद्दीकी कहते हैं अनगिनत यादें हैं जो स्मृतियों के झरोखे से झांक रही हैं लेकिन वे बाते फिर कभी होगी।

    मगर मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि मैंने अपने जीवन काल में कर्पूरी ठाकुर जैसा ईमानदार, गरीबों का हितैषी नेता नहीं देखा। इसकी बड़ी वजह यह थी कि वे स्वयं बेहद गरीब परिवार से आते थे इसलिए वे उनका दुख दर्द समझते थे।

    यही वजह है कि आज भी उनकी प्रासंगिकता बरकरार है। वे कहते हैं कि हमारे नेता लालू प्रसाद, ने कई बार कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा था। केंद्र सरकार ने देर से ही सही उन्हें भारत दिया।

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