Vat Savitri Vrat: अखंड सुहाग के लिए शोभन योग में सुहागिन 26 मई को रखेंगी वट सावित्री व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त
सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के साथ 26 मई को वट सावित्री का व्रत रखेंगी। इस दिन शोभन योग रहेगा। वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है जो सौभाग्य संतान और धन-धान्य प्रदान करता है। महिलाएं सावित्री के त्याग और पति प्रेम का स्मरण करेंगी और वट वृक्ष की परिक्रमा कर अखंड सुहाग का वरदान पाएंगी।

जागरण संवाददाता, पटना। अखंड सौभाग्य की कामना को लेकर सुहागिन 26 मई सोमवार को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या में वट सावित्री का व्रत करेंगी। इस दिन भरणी व कृत्तिका नक्षत्र का युग्म संयोग के साथ शोभन योग विद्यमान रहेगा। 26 मई सोमवार को अमावस्या तिथि 11.02 बजे से आरंभ होकर पूरे दिन रहेगा।
सोमवार को अमावस्या होने से इस दिन सोमवती अमावस्या का पुण्यकारी संयोग बना रहेगा। ऐसे संयोग में वट सावित्री की पूजा फलदायी हाेगी। ज्योतिष आचार्य पंडित राकेश झा ने पंचांगों के हवाले से बताया कि अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11.20 बजे से 12.14 बजे तक रहेगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट वृक्ष को देव वृक्ष माना गया है। वट वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं। व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्य वर्धक, पाप हारक, दुख नाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है।
वृक्ष की शाखाएं नीचे की ओर लटकी होती है जिसे देवी सावित्री का रूप माना गया है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के साथ स्वयं सावित्री भी विराजमान रहती हैं।
सर्वकामना प्रदायक है वट की पूजा:
अग्नि पुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं व्रत को करती हैं। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण वृक्ष को अनश्वर माना गया है, इसलिए इस वृक्ष कई जड़ में पूजा करने से सर्व मनोकामना की पूर्ति एवं बच्चों की निरोग काया व विकास का वरदान मिलता है।
वट वृक्ष को अक्षत, पुष्प, चंदन, ऋतुफल, पान, सुपारी, वस्त्र, धुप-दीप आदि से पूजा कर पंखा भी झलेंगी। इसके बाद पौराणिक कथा का श्रवण कर पति परमेश्वर का आशीर्वाद पाएंगी।
मिलेगा अखंड सुहाग का वरदान
वट सावित्री का व्रत एवं इसकी पूजा व परिक्रमा करने से सुहागिनों को अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख-शांति तथा वैवाहिक जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं। पूजा के बाद भक्ति पूर्वक सत्यवान-सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए।
इससे परिवार पर आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं तथा घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस दिन गंगा या तीर्थ में स्नान करने से सहस्त्र गौदान, कोटि सुवर्ण दान के बराबर फल मिलता है। वट की पूजा और परिक्रमा के बाद अन्न, तिल, ऋतुफल आदि का दान करने से समृद्धि तथा गृहस्थ आश्रम ने शांति बनी रहती है।
नवविवाहिता करेंगी विस्तृत पूजन
वट सावित्री की पूजा में मिथिलांचल की नवविवाहिता पूरे विस्तार से वट की पूजा अर्चना करेंगी। शादी के बाद पहली बरसाईत में पूरे दिन उपवास कर सोलह शृंगार कर आंगन को अरिपन से लेप कर पति-पत्नी संग में वट की पूजा नियम-निष्ठा से करने के बाद चौदह बांस से निर्मित लाल-पीला रंग में रंगा हुआ हाथ पंखा से वट वृक्ष को हवा देंगी। इस पूजा में आम और लीची की प्रधानता रहती है।
गुड्डा-गुड़िया को सिंदूर दान भी होगा। अहिबातक पातिल यानि रंगा हुआ घड़ा में पूजन की दीपक प्रज्ज्वलित रहेगी। वर पूजा के बाद नव दंपति को बड़े-बुजर्ग महिलाएं धार्मिक व लोकाचार की कई कथाएं सुनती हैं।
इसके बाद पांच सुहागिन महिलाएं नवविवाहिता के साथ खीर, पूरी व ऋतुफल का प्रसाद ग्रहण करेंगी। आगंतुक महिला श्रद्धालु एवं कथावाचिका को अंकुरित चना, मुंग, फल, बांस का पंखा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त:
- अमावस्या तिथि: दोपहर 11:02 बजे से पुरे दिन
- अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:20 बजे से 12:14 बजे तक
- गुली काल मुहूर्त: दोपहर 01:28 बजे से शाम 03:10 बजे तक
- चर-लाभ-अमृत मुहूर्त: दोपहर 01:28 बजे से शाम 06:32 बजे तक
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