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    राष्‍ट्रपति चुनाव में विपक्ष से अलग JDU की राह, पर बिहार में चलता रहेगा महागठबंधन

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Thu, 22 Jun 2017 10:16 PM (IST)

    राष्‍ट्रपति चुनाव में विपक्ष से अलग जदयू ने भाजपा प्रत्‍याशी रामनाथ कोविंद को समर्थन दिया है। इससे महागठबंधन में दरार के कयास लगाए जा रहे हैं। पर बिहार में महागठबंधन चलता रहेगा।

    राष्‍ट्रपति चुनाव में विपक्ष से अलग JDU की राह, पर बिहार में चलता रहेगा महागठबंधन

    पटना [अरविंद शर्मा]। नोटबंदी, यूपी चुनाव और अब राष्ट्रपति प्रत्याशी का नाम। नीतीश कुमार महागठबंधन के अपने सबसे मजबूत साथी लालू प्रसाद से अलग राह चलते दिखाई देते रहे हैं। लेकिन, यह भी सच है कि बिहार में महागठबंधन की सेहत पर इसका खास असर नहीं दिखेगा। निकट भविष्य में तो ऐसी कोई संभावना या आशंका नहीं है। बिहार में माहौल कुछ अलग है। राजनीतिक मजबूरियां हैं। लिहाजा लालू-नीतीश की दोस्ती जारी रहेगी।

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    अपनी सोच और अपनी स्टाइल की वजह से नीतीश हमेशा स्वतंत्र फैसले करते हैं। दूसरी ओर सत्ता में बने रहने के लिए लालू प्रसाद के लिए भी यह जरूरी है कि वे नीतीश का साथ न छोड़ें।

    यहां की बात कुछ और है...
    विधानसभा चुनाव के पहले जिन मुद्दों पर राजद, जदयू और कांग्रेस एक हुए थे, उनकी प्रासंगिकता अभी बरकरार है। राजद और जदयू ने आज इसकी मुनादी भी की। राजद ने खुद को संयुक्त विपक्ष की राय के मुताबिक चलने की मंशा स्पष्ट करने के बावजूद महागठबंधन सरकार पर किसी तरह के खतरे से साफ इन्कार किया है।

    पुराने संदर्भों की याद दिलाते हुए राजद के मुख्य प्रवक्ता मनोज झा ने जदयू की अलग सोच और राय को मीडिया की काल्पनिक कयामत बताया है। सरकार के भविष्य की चिंता करने वालों को राजद ने द्वंद्व से बाहर निकलने की सलाह देते हुए स्मरण दिलाया है कि ऐसा पहले भी हो चुका है, लेकिन तब कयामत की भविष्यवाणी नहीं की गई थी।

    जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने भी राजद की लाइन को आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि महागठबंधन जब बना था तब उसमें राष्ट्रपति चुनाव का मुद्दा शामिल नहीं था। महागठबंधन के मुद्दे अलग हैं। बिहार की राजनीति अलग है।

    सवाल उठना तो जायज है लेकिन...
    राष्ट्रपति चुनाव पर दोनों दलों की अलग राहें हैं, तो जाहिर है लोग सवाल करेंगे। वैसे भी आलोचक लालू और नीतीश की दोस्ती को सामान्य नहीं मानते। लिहाजा जब भी मतभेद जैसी स्थिति बनती है, अलगाव, खटास, बिखराव जैसे शब्द प्रयोग में आने लगते हैं।

    सियासी गलियारे में लंबे समय से जदयू-राजद के रिश्तों को टटोलकर देखा जा रहा है। नोटबंदी के समय भी ऐसा दिखा। नीतीश ने नोटबंदी का समर्थन किया था, जबकि राजद और कांग्रेस ने विरोध। फिर पाकिस्तान में घुसकर भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक किए जाने के मुद्दे पर महागठबंधन के घटक दलों की राय अलग-अलग थी। लालू ने इसे 'फर्जीकल स्ट्राइक' बताया तो नीतीश केंद्र के फैसले के साथ खड़े हो गए।

    दोनों पार्टियों में थोड़ी तल्खी उस समय दिखी थी, जब भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने लालू परिवार पर बेनामी संपत्ति के आरोपों की झड़ी लगा दी और जदयू ने इन आरोपों से खुद को किनारा कर लिया। इसी दौरान आयकर विभाग के छापों के दौरान लालू के एक ट्वीट ने कुछ मिनटों के लिए सनसनी फैला दी, जिसमें कहा गया था कि भाजपा को नए दोस्त मुबारक हों। हालांकि, आधे घंटे बाद ही लालू की ओर से सफाई दी गई कि पार्टनर्स से मतलब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और दूसरी सरकारी एजेंसियों से है।

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    दरअसल, दोनों ओर से ऐसी सफाई अक्सर सुनने को मिल जाती है कि हमारी दोस्ती को तोडऩे की कोशिश सफल नहीं होगी। राष्ट्रपति चुनाव बीतने के बाद भी शायद ऐसा ही कुछ कहा जाएगा।

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