पटना के बड़े होटल में परोसी गई शव को संरक्षित करने वाली फार्मेलिन युक्त पनीर, कहीं आपने तो नहीं खाई?
स्वाद के नाम पर सेहत से खिलवाड़ खाद्य संरक्षा विभाग ने प्रयोगशाला रिपोर्ट आने के बाद दो हाेटल व दो सास फैक्ट्री के खिलाफ किया केस एक हाेटल की पनीर में मिला फार्मेलिन राजधानी पटना के बड़े होटल हों या फास्ट फूड बेचने वाले ठेले स्वाद के नाम पर ऐसा भोजन बेच रहे हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

जागरण संवाददाता, पटना। राजधानी पटना के बड़े होटल हों या फास्ट फूड बेचने वाले ठेले, स्वाद के नाम पर ऐसा भोजन बेच रहे हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पूर्व खाद्य संरक्षा आयुक्त के निर्देश पर हाल के दिनों में बड़े होटलों व हाईरिस्क फूड आयटम के खिलाफ चले सघन अभियान में लिए गए नमूनों की जांच रिपोर्ट से इसकी पुष्टि हुई है।
एक बड़े होटल में परोसी जा रही पनीर में शव को संरक्षित करने वाली फार्मेलिन पाई गई है। वहीं दूसरे बड़े हाेटल में मुख शुद्धि को दी जाने वाली सौंप सिंथेटिक रंग से रंगी थी। सड़क किनारे ठेलों पर फास्टफूड के साथ जो टोमैटो व चिली सास पराेसा जा रहा है, उसमें भी प्राकृतिक कारमेल की जगह कपड़े-प्लास्टिक को रंगने वाले कार्मोसिन रंग पाया गया।
ऐसी दो फैक्ट्रियों के उत्पादों को अस्वास्थ्यकर करार दिया गया है। खाद्य संरक्षा पदाधिकारी अजय कुमार ने बताया कि दो होटल व दोनों फैक्ट्रियों को नोटिस जारी करने के बाद अब कोर्ट में आपराधिक मामला दर्ज कराया जा रहा है।
पनीर हो या देसी घी, सभी मिले सब स्टैंडर्ड
चार सदस्यीय टीम ने करीब 15 बड़े होटल व 20 छोटी-बड़ी डेयरी से नमूने लिए संग्रहित किए थे। पनीर में मानक से करीब आधी या तिहाई चिकनाई तो नमी की मात्रा 25 प्रतिशत तक अधिक मिली। इसके अलावा कई जगह पनीर में आरारोट मिलाने की पुष्टि हुई। ये तीनों मानक अस्वास्थ्य कर नहीं है लेकिन सब स्टैंडर्ड यानी जुर्माने की श्रेणी वाले अपराध हैं।
इसके प्रकार देसी घी में एसिड वैल्यू या वीआर वैल्यू में अंतर पाया गया। इसका कारण डेयरी संचालकों ने पुराने में नया घी मिलाने को बताया। टोमैटो या चिली सास में सिंथेटिक कलर के अलावा सालिड मात्रा बढ़ाने को टोमैटो प्यूरी की जगह कोम्हड़ा या आलू मिलाने की भी पुष्टि हुई।
तीखेपन के लिए आर्टिफिशियल फ्लेवरिंग एजेंट, प्रिजर्वेटिव व घटिया सिरका गैस्ट्रिक समस्याएं, अल्सर, एसिडिटी व बच्चों में एलर्जी जैसी समस्याओं का कारण बनता है। इन अस्वास्थ्यकर चीजों का सबसे बड़ा उपभोक्ता 10 से 25 आयु वर्ग के लोग हैं। बताते चलें कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी किशोरों में मोटापा, उच्च रक्तचाप और टाइप-2 डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़े हैं।
कार्माेसिन रंग
कार्मोसिन, कृत्रिम रंग है जिसका प्रयोग कपड़ों, प्लास्टिक व गैर-खाद्य उत्पादों में किया जाता है। सस्ता व चटक होने के कारण खाद्य विक्रेता अपने व्यंजनों को आकर्षक दिखाने के लिए इसका प्रयोग करते हैं। कार्मोसिन के अधिक सेवन से बच्चों में एलर्जी, अस्थमा, हाइपरएक्टिविटी से लेकर कैंसर तक का खतरा बढ़ जाता है।
धीरे-धीरे मारने वाला जहर है फार्मेलिन
फार्मेलिन की थोड़ी सी मात्रा शरीर में पहुंचने पर गैस्ट्रिक समस्याएं, लिवर को नुकसान, सिरदर्द, उल्टी तो लंबे समय तक इस्तेमाल पर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। दुकानदार पनीर को ताजा दिखाने व 2-3 दिन तक खराब नहीं होने देने के लिए इसे मिलाते हैं।
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