सत्य और सुंदर का संदेश दे गया शिव रूपी उगना
भक्त और भगवान का मिलन हो रहा था।
भक्त और भगवान का मिलन हो रहा था। भगवान शिव स्वयं उगना बनकर भक्त के घर में मौजूद रहे। भक्त और भक्ति की पराकाष्ठा आदि सभी दृश्य एक-एक कर मंच पर जीवंत हो रहे थे। एक ओर जहां चौदहवीं शताब्दी के मिथिला के राजा की कहानी प्रस्तुत हो रही थी दूसरी ओर सभागार में बैठे लोग स्मृतियों में डूबते नजर आ रहे थे। कुछ ऐसा ही नजारा प्रेमचंद रंगशाला में मंगलवार को देखने को मिला। मौका था रंग-ए-विभूति कार्यक्रम के अंतर्गत निर्माण कला मंच की ओर से डॉ. ऊषा किरण खान लिखित नाटक 'कहां गए मेरे उगना' की प्रस्तुति का।
ये थी कहानी - चौदहवीं शताब्दी में मिथिला में ओइनवार वंश का राज था। जो दिल्ली और जौनपुर के सुल्तान के अधीन था। राजा शिव सिंह उसी वंश के राजा थे। कवि विद्यापति पांच राजाओं के राज पंडित होते हुए भी राजा शिव शिव सिंह के दोस्त थे। सुल्तान को कर नहीं देने पर शिव सिंह कैद हुए तो लोक कवि विद्यापति ने उन्हें मुक्त कराया, लेकिन क्रोधित शिव सिंह ने विद्रोह कर दिया जिस पर सुल्तान ने चढ़ाई कर दी। शिव सिंह भाग निकले। विद्यापति और रानी लखिमा जो शिव सिंह की पत्नी थी नेपाल नरेश की शरण में चले गए। उसी दौरान उनकी मदद के लिए भगवान शिव स्वयं उगना ग्रामीण का वेश धारण कर उनकी सेवा करने लगे। कुछ दिनों के बाद विद्यापति की पत्नी की प्रताड़ना और ईश्वर होने की कवि की घोषणा से शिव विद्यापति के घर भाग खड़े हुए। कवि विद्यापति ताउम्र वंचित, पीड़ित, दलितों में शिवरूप उगना को खोजते रहे। रानी लखिमा दिवंगत हो गई जिसके बाद कवि अपने राज्य की ओर लौट गए। इन पूरी कहानी को कवि नागार्जुन, राजकमल एवं रेणु ने नाटक के कथासूत्र को आगे बढ़ाते रहे। कहानी शिव रूपी उगना को सत्य, सुंदर का संदेश देता है। मंच पर अभिषेक आनंद, सुमन कुमार, शारदा सिंह, आदिल रशिद, रूबी खातून आदि कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों का खूब मनोरंजन करवाया।
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