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    बिहार में जाति आधारित गणना का मामला पहुंचा हाईकोर्ट, सरकार के निर्णय को इस बिंदु पर दी गई चुनौती

    Caste Survey in Bihar बिहार में जातीय गणना कराने का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। लोकहित याचिका दायर कर याचिकाकर्ता ने आकस्मिकता निधि के पांच सौ करोड़ के उपयोग को चुनौती दी है। इसे संविधान के प्रविधानों का उल्‍लंघन बताया है।

    By Vyas ChandraEdited By: Updated: Wed, 22 Jun 2022 06:31 PM (IST)
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    जातीय गणना के मामले में पटना हाईकोर्ट में पीआइएल दाखिल। फाइल फोटो

    पटना, राज्य ब्यूरो। राज्य सरकार द्वारा बिहार में जाति आधारित गणना (Caste Based Survey) कराने के निर्णय को लेकर पटना हाईकोर्ट के समक्ष लोकहित याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता शशि आनंद ने सरकार द्वारा लिए गए उस निर्णय को चुनौती दी है, जिसके तहत बिहार सरकार द्वारा आकस्मिकता निधि (कंटीजेंसी फंड) से पांच सौ करोड़ रुपये खर्च करके जाति आधारित गणना करवाने का निर्णय लिया गया है।

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    संविधान के प्रव‍िधानों का दिया हवाला 

    याचिकाकर्ता के अधिवक्ता जगन्नाथ सिंह ने याचिका द्वारा कोर्ट का ध्यान आकृष्ट किया है कि ऐसा करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 267 (2) के प्रविधानों का उल्लंंघन है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि आकस्मिकता निधि का उपयोग केवल अप्रत्याशित स्थिति में किया जा सकता है। याचिका में राज्यपाल के आदेश से उक्त आशय को लेकर 06 जून 2022 को जारी मेमो नंबर-9077 और राज्य सरकार के उप सचिव के हस्ताक्षर से राज्य मंत्रिपरिषद में 2 जून 2022 को लिए गए निर्णय की अधिसूचना को चुनौती दी गई है।

    हाई कोर्ट ने मांगा एससी-एसटी व छात्राओं से स्नातकोत्तर तक फीस वसूली का ब्योरा

    पटना हाई कोर्ट ने राज्य में एससी-एसटी व लड़कियों से स्नातकोत्तर शिक्षा तक शिक्षण एवं अन्य फीस नहीं लेने के मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अगली सुनवाई में इसका पूरा ब्योरा देने का निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने रंजीत पंडित की लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त निर्देश दिया। 

    याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रितिका रानी ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने 24 जुलाई, 2015 को निर्णय लिया था कि एससी-एसटी एवं लड़कियों से स्नातकोत्तर शिक्षा तक शिक्षण शुल्क नहीं लिया जाएगा। उसके बाद भी राज्य सरकार के शिक्षण संस्थाओं द्वारा इन श्रेणियों के छात्र-छात्राओं से शिक्षण एवं अन्य शुल्क लेना जारी है। उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई कि वर्तमान सत्र में इन श्रेणी के छात्रों से शिक्षण व अन्य शुल्क नहीं लिया जाए। इसके साथ ही अनुरोध किया कि संस्थानों द्वारा लिए गए शिक्षण व अन्य शुल्क छात्राओं को वापस किया जाना चाहिए।