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    न्यायिक अधिकारी को महंगी पड़ी लापरवाही, आरोपी को बिना रिमांड छोड़ने पर कार्यक्षमता छीनी

    By Jagran NewsEdited By: Akshay Pandey
    Updated: Sat, 28 Jun 2025 05:00 PM (IST)

    पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-17 रोहतास सासाराम द्वारा पारित एक आदेश को पूरी तरह से अवैध त्रुटिपूर्ण और प्रक्रिया विरुद्ध मानते हुए निरस्त कर दिया है।अदालत से जाने की मौखिक अनुमति दे दी। हाईकोर्ट ने इसे सीआरपीसी की मूलभूत प्रक्रिया का घोर उल्लंघन माना।

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    हाई कोर्ट ने न्यायिक अधिकारी से कार्यक्षमता छीनी। सांकेतिक तस्वीर।

    विधि संवाददाता, जागरण, पटना। पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-17, रोहतास, सासाराम द्वारा पारित एक आदेश को पूरी तरह से अवैध, त्रुटिपूर्ण और प्रक्रिया विरुद्ध मानते हुए निरस्त कर दिया है। मामला करगहर थाना कांड संख्या 31/2023 से जुड़ा है, जिसमें अनुसूचित जाति की एक महिला की शिकायत पर आईपीसी की गंभीर धाराओं और एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज हुई थी।

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    इस मामले में आरोपी इकबाल मियां को पुलिस ने गिरफ्तार कर 25 फरवरी 2023 को विशेष न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया था। लेकिन न्यायाधीश ने न तो उसे न्यायिक हिरासत में भेजा, न ही कोई जमानत याचिका लंबित थी, फिर भी उसे अदालत से जाने की मौखिक अनुमति दे दी। हाईकोर्ट ने इसे सीआरपीसी की मूलभूत प्रक्रिया का घोर उल्लंघन माना।

    न्यायाधीश बिबेक चौधरी की एकलपीठ ने पुलिस अधिकारी सुन्देश्वर कुमार दास की क्रिमिनल रिवीजन याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह आदेश न्यायिक प्रक्रिया की पूरी तरह से उपेक्षा करता है। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि संबंधित न्यायिक अधिकारी को न तो जमानत से संबंधित अध्यायों की जानकारी है, न ही पुलिस विवेचना या आरोपी की हिरासत से जुड़े प्रावधानों की समझ।

    इस आधार पर हाईकोर्ट ने न केवल आदेश को रद्द किया, बल्कि संबंधित न्यायिक अधिकारी से न्यायिक कार्यक्षमता तत्काल प्रभाव से वापस लेने का निर्देश दिया और उन्हें बिहार न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण लेने को भी कहा। इसके साथ ही कोर्ट ने केस के अनुसंधानकर्ता को आरोपी को पुनः विशेष न्यायाधीश (एससी एसटी एक्ट) के समक्ष पेश करने का आदेश दिया और निर्देश दिया कि कानून की प्रक्रिया का कड़ाई से पालन किया जाए।