Bihar Politics: बिहार की सियासत में आने वाला है नया मोड़! PK की नई रणनीति से राजद में मच सकती है खलबली
बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आने वाला है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जसुपा) तेजस्वी यादव के गढ़ राघोपुर में उन्हें चुनौती देने की तैयारी में है। हालांकि राजद इस रणनीति से सजग है और तेजस्वी को कोई चुनौती नहीं दिख रही है। लेकिन अगर तेजस्वी अपने ही विधानसभा क्षेत्र में घिर जाते हैं तो विरोधी दलों के लिए बिहार में राजद से लड़ाई आसान हो जाएगी।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। इस बार जन सुराज पार्टी (जसुपा) के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) को आगे कर तेजस्वी यादव को उस राघोपुर में ही घेरे रखने की रणनीति बनाई जा रही, जहां से विधानसभा के पिछले दो चुनाव वे जीत चुके हैं।
जसुपा की यह रणनीति अभी प्रारंभिक चरण मेंं है, फिर भी राजद सजग हो गया है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) इसकी परिकल्पना मात्र से ही प्रफुल्लित हो रहा।
महागठबंधन में नेतृत्व को लेकर सर्व-सम्मति बन गई है, यह कहना जल्दबाजी होगी। अलबत्ता राजद में तेजस्वी को कोई चुनौती नहीं।
अब तो पार्टी के नाम-निशान पर भी उनका अधिकार सुप्रीमो लालू प्रसाद के बराबर हो गया है। मुख्यमंत्री पद के लिए वे राजद से एकमात्र चेहरा हैं।
पिछले चुनावों में पार्टी का प्रचार अभियान भी उन्हीं के बूते रहा है। ऐसे में तेजस्वी अगर अपने ही विधानसभा क्षेत्र में घिर जाते हैं तो विरोधी दलों के लिए शेष बिहार में राजद से लड़ाई और सहज हो जाएगी।
राजनीतिक गलियारे मेंं आकलन है कि इसी रणनीति के अंतर्गत पीके को राघोपुर के मैदान में उतारने का प्रयास है।
विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक अभ्यर्थियों से जसुपा अभी आवेदन ले रही। पीके स्वयं बता चुके हैं कि किसी कार्यकर्ता ने राघोपुर से उनके नाम का प्रस्ताव किया है।
पार्टी प्रवक्ता विवेक कुमार का कहना है कि जाति-संप्रदाय के दलदल मेंं धकेल दी गई बिहार की राजनीति मेंं पीके एक स्वच्छ विकल्प हैं।
उनकी उपस्थिति मात्र से ही पार्टियां बेकल हैं। वे जिस मैदान में होंगे, वहां से बाजी मारेंगे। हालांकि, अभी यह तय नहीं कि पीके चुनाव लड़ेंगे या नहीं और लड़ेंगे भी तो राघोपुर या किसी दूसरे क्षेत्र से!
राघोपुर का सामाजिक समीकरण इस दियारे में राजद को अपनी संभावना के लिए आश्वस्त करता है। हालांकि, 2010 में जदयू के सतीश कुमार यहां पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को मात दे चुके हैं।
उस चुनाव परिणाम से जसुपा व राजग का आकलन है कि राजद का यह यदुवंशी किला भी अभेद्य नहीं। लगभग 30 प्रतिशत यादव और 21 प्रतिशत राजपूत के साथ यहां अनुसूचित जाति में 12 प्रतिशत पासवान और आठ प्रतिशत रविदास मतदाता हैं।
इस भरोसे तेजस्वी यहां स्वयं को सुरक्षित पाते हैं। हालांकि, राजपूत और अनुसूचित जाति के मतोंं मेंं विभाजन की गुंजाइश के साथ अति-पिछड़ा वर्ग के भरोसे विरोधी खेमा भी उत्साहित है।
विधानसभा के पिछले चुनाव में लोजपा को मिले 24947 वोट इस उत्साह को कुछ और बढ़ा देते हैं। फिर भी राजद का भरोसा कायम है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी ही है।
वे कहते हैं कि पीके भी जानते हैं कि राघोपुर में क्या हश्र होना है। वहां से चुनाव लड़ने की चर्चा सुर्खियों में बने रहने का उनका एक इवेंट है।
राघोपुर में तेजस्वी के वोटों में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है, जबकि निकटतम प्रतिद्वंद्वी के वोट घटे हैं। रही बात लोजपा की, तो उसे जितने वोट मिले, उससे अधिक मतों (38174) के अंतर से तेजस्वी पिछली बार विजयी रहे हैं।
ऐसा है राघोपुर का समीकरण
- 30 प्रतिशत यादव, 21 प्रतिशत राजपूत और 20 प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाता
- 06 दशक से यादव समाज से विधायक, इनमें दो बार लालू और एक बार राबड़ी भी
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