Bihar: विधानसभा चुनाव से पहले BJP-RJD के सामने खड़ी हुई एक नई समस्या! अगर ऐसा हुआ तो तेजस्वी कैसे बनेंगे CM?
बिहार के प्रमुख राजनीतिक दल चुनावी उपलब्धि के हिसाब से अपने छोटे सहयोगियों की बड़ी मांगों से परेशान हैं। कांग्रेस विकासशील इंसान पार्टी और वाम दल अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं जिससे राजद और भाजपा जैसे बड़े दलों की सीटें कम हो सकती हैं। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही गठबंधनों में छोटे दलों के दबाव से जूझ रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार के सभी बड़े राजनीतिक दल चुनावी उपलब्धि के हिसाब से अपने छोटे भाइयों की बड़ी मांग से परेशान हैं।
अगर छोटे की मांग मान ली गई तो अपनी हैसियत कमजोर होगी। मांग नहीं मानी तो छोटा भाई बिदक कर विरोधी खेमे में घुस जाएगा। यह परेशानी एनडीए और महागठबंधन में एक जैसी है।
खबर में चर्चा होगी कि किस तरह दोनों गठबंधन के छोटे फरीक बड़े दल पर विधानसभा चुनाव में बड़ी हिस्सेदारी के लिए दबाव बना रहे हैं।
सबसे अधिक चर्चा कांग्रेस में
- सबसे अधिक चर्चा कांग्रेस में है। यह राष्ट्रीय पार्टी बिहार में राजद की सहयोगी है। बिहार कांग्रेस में नया सुर छिड़ा है। यह कि मुख्यमंत्री का चयन विधायक दल की बैठक में होगा।
- यह राजद के स्थायी सुर से अलग है-मुख्यमंत्री तो तेजस्वी ही होंगे। कांग्रेसी सुर में एक और ध्वनि है-हमें चुनाव लड़ने के लिए अधिक सीट चाहिए।
- कांग्रेस को डर है कि गठबंधन में विकासशील इंसान पार्टी के शामिल होने से उसकी सीटों की संख्या 70 से कम हो सकती है। यही संख्या उसे पिछली बार मिली थी।
- राजद की दूसरी सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी कह रही है कि उसके संस्थापक मुकेश सहनी उप मुख्यमंत्री होंगे। उनकी पार्टी सरकार की नीतियों को नियंत्रित करेगी।
- यह सब तब होगा, जब उसे 40 के आसपास सीटें मिले। कांग्रेस और वीआइपी की मांगें मान ली जाए तो एक सौ 10 सीटें निकल जाएंगी। बच गईं एक सौ 33 सीटें। इसमें राजद के अलावा तीन दल वाम दल भी हैं।
पिछली बार ऐसी रही स्थिति
पिछली बार भाकपा माले को 19, भाकपा को छह और माकपा को चार सीटें मिली थीं। भाकपा माले 19 पर लड़ कर 12 सीटें जीती थी। बेहतर स्ट्राइक रेट के नाम पर इस बार उसकी मांग अधिक सीटों की है।
वाम दलों को पहले की तरह 29 सीटें दी जाएं और कांग्रेस एवं वीआइपी की मांगें मान ली जाए, उस हालत में राजद के पास अपने लिए एक सौ तीन सीटें मिलेंगी। यह 2020 की तुलना में 41 सीटें कम हैं।
भाजपा, जदयू और राजद जैसे दल सहयोगी दलों की मांग पर मंथन कर रहे हैं। कुछ ऐसी ही परेशानी एनडीए में भी है।
लोजपा (रा) और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा की ओर से 50 से अधिक सीटाें पर तैयारी चल रही है। लोजपा 2020 में अकेले लड़ी थी। लेकिन, उसने एनडीए को मुश्किल में डाल दिया था।
एनडीए का शीर्ष नेतृत्व इस बार पिछले चुनाव की पुनरावृति नहीं चाह रहा है। इसी तरह मोर्चा पिछली बार सात सीटों पर संतुष्ट हो गया था। इसबार 20 से अधिक सीटों पर दावा कर रहा है।
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