Bihar Politics: बिहार में महागठबंधन की कमान किसके हाथ? एक फोटो से हो गया साफ; राहुल ने भी दे दी हरी झंडी
राहुल गांधी सासाराम में तेजस्वी यादव के साथ दिखे। तेजस्वी ने जीप चलाकर समर्थकों में उत्साह भरा। मुकेश सहनी ने तेजस्वी को भावी मुख्यमंत्री बताया जिसपर राहुल मुस्कुराए। महागठबंधन ने मतदाता-सूची पुनरीक्षण के बाद एकजुटता दिखाई लेकिन नेतृत्व पर संदेह बना रहा जिसे राहुल ने तेजस्वी को स्टीयरिंग सौंपकर दूर करने का प्रयास किया।

विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। समय भले ही गुजर जाए, लेकिन इतिहास अपने को दोहराता है। इस वास्तविकता के उल्लेख से पहले फ्लैश बैक होते हैं। वह तारीख पिछले वर्ष की 15-16 फरवरी थी। 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' पर राहुल गांधी सासाराम पहुंचे थे।
तब उनकी लाल रंग की जीप को ड्राइव करते हुए तेजस्वी यादव निकले तो महागठबंधन समर्थकों का उत्साह आसमान छूने लगा था। उस उत्साह का संज्ञान लेते हुए राहुल ने तेजस्वी की पीठ भी थपथपाई थी।
तब लगभग एक किलोमीटर की उस ड्राइविंग से तय हो गया था कि बिहार में लोकसभा के चुनाव में महागठबंधन के नेता तेजस्वी ही रहेंगे।
मुस्कुराते दिखे तेजस्वी
उसी सासाराम में रविवार को कुछ वैसा ही दृश्य रहा। इस बार तेजस्वी द्वारा ड्राइव की जा रही जीप पर राहुल के साथ मुकेश सहनी भी थे, जिन्होंने तेजस्वी का उत्साह भावी मुख्यमंत्री के संबोधन से बढ़ाया।
राहुल मुस्कुराते रहे, जैसे कि सहनी के संबोधन पर अपनी मुहर लगा रहे हों और बता रहे हों कि विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ही महागठबंधन के नेता होंगे।
मतदाता-सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) ने महागठबंधन के लिए एकजुट आंदोलन का माहौल बना दिया है। अन्यथा उससे पहले तक घटक दलों की रणनीति बिखरी हुई थी। नेतृत्व के मुद्दे पर तो कभी एकसुर हुए ही नहीं।
राजद इसे पर्याप्त संख्या में पसंदीदा सीटों का दबाव मानता रहा। इसीलिए उसने भी सीटों की गुत्थी को उलझाने रखने की रणनीति अपना ली, जब तक कि नेतृत्व पर सभी सार्वजनिक रूप से एकसुर नहीं होते।
अपने ब्लू-प्रिंट में दर्ज वादों को तेजस्वी सार्वजनिक करने लगे तो कांग्रेस माई-बहिन मान योजना का फॉर्म लेकर उतर गई। एक समय तो अंतर्द्वंद्व इतना बढ़ा कि एकला चलो की आशंका तक जताई जाने लगी।
हालांकि, इसी बीच तेजस्वी को महागठबंधन की समन्वय समिति की कमान सौंप दी गई। इसे नेतृत्व के मुद्दे पर कांग्रेस के नरम रुख के बतौर माना गया।
संशय पर विराम लगाने का प्रयास
बावजूद बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रभारी कन्हैया कुमार की प्रतिक्रियाएं महागठबंधन में नेतृत्व के मुद्दे पर संशय बनाए हुए थीं। तेजस्वी को स्टीयरिंग सौंपकर राहुल ने संभवत: इस संशय पर विराम लगाने का प्रयास ही किया है।
अब इसे कांग्रेस की विवशता कहें या राजद की रणनीति, वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में एकजुट रहे बिना दोनों की चुनावी संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव तय है। दोनों की राजनीति लगभग एक जैसे ही सामाजिक समीकरण पर आगे बढ़ रही। विशेषकर मुसलमान, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के संदर्भ में।
इस लिहाज से यह स्टीयरिंग जनाधार को एकजुट रखने का उपक्रम भी है। पिछड़ा, अति-पिछड़ा वर्ग की हिमायत में अतिशय मुखर हो चुके राहुल उस सवर्ण वर्ग को कहीं-न-कहीं अप्रसन्न कर रहे, जो कांग्रेस के जनाधार का अंश रहा है। इसी जात-जमात के बूते राजद की राजनीति भी है।
अनुसूचित जातियों के बीच वामदलों की भी अच्छी पैठ है। महागठबंधन में बिखराव या नेतृत्व पर संशय से जनाधार में भ्रम की आशंका थी। इस स्टीयिरंग से संभवत: इस भ्रम का भी निवारण किया गया है।
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