उन्मादी हिंसा: बिहार में बढ़ा 'तालिबानी न्याय', अब सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से जगी उम्मीद
बिहार में बीते एक सप्ताह के दौरान उन्मादी भीड़ की हिंसा के कई बर्बर उदाहरण देखने को मिले हैं। ऐसी घटनाओं के पीछे कानून-व्यवस्था के प्रति अविश्वास बड़ा कारण है।
पटना [अमित आलोक]। मवेशी चोरी के आरोप में तीन कथित चोरों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई तो चोरी के आरोप में एक महिला को निर्वस्त्र कर पीटा गया। चोरी के आरोप में एक युवक की न केवल पिटाई की गई, बल्कि उसके गुप्तांग पर पेट्रोल डालकर भी यातना दी गई। युवती की हत्या कर भाग रहे युवक को पकड़कर उसकी भी हत्या कर दी गई। एक महिला को डायन बताकर लाठी-डंडे से पीटकर मौत दे दी गई।
भीड़ की हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
बिहार में बीते एक सप्ताह के दौरान हुई भीड़ की उन्मादी हिंसा के ये कुछ उदाहरण मात्र हैं। ऐसे में अश्चर्य नहीं कि देश में जगह-जगह हिंसा के ऐसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जिन आठ राज्यों को नोटिस जारी किया है, उनमें बिहार भी शामिल है। बिहार की बात करें तो यहां भीड़ के कानून हाथ में लेकर खुद 'तालिबानी न्याय' करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। ऐसी कई घटनाओं ने कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े किए हैं। सवाल यह है कि क्यों बढ़ रहीं हैं ऐसी घटनाएं और आखिर क्या है निदान? ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिशानिर्देश जारी किए थे। लेकिन उन्हें प्रभावी ढ़ंग से लागू नहीं किया जा सका है।
#MobLynching की घटनाएँ रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के 2018 के दिशानिर्देश प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और विभिन्न राज्यों को नोटिस जारी किया। राज्यों मे यूपी,जम्मूकश्मीर,आंध्रप्रदेश,राजस्थान,मध्यप्रदेश,गुजरात,बिहार,झारखंड,असम,दिल्ली हैं।@JagranNews
— Mala Dixit (@mdixitjagran) July 26, 2019
एक सप्ताह के दौरान चर्चा में रहीं ये घटनाएं
- रोहतास के दावथ थाना क्षेत्र स्थित मलियाबाग में गुरुवार की शाम बच्चा चोरी के आरोप में दो महिलाओं को पकड कर हजारों की बेकाबू भीड ने बुरी तरह पीटा। सूचना पर पहुंची पुलिस ने जब दोनों को किसी तरह छुड़ाकर इलाज के लिए अस्पताल भेजा तो भीड़ का गुस्सा पुलिस पर भी टूट पड़ा। इस दौरान दो पुलिस अधिकारी जख्मी हो गए। लोगों ने पुलिस वाहन भी क्षतिग्रस्त कर दिया।
- भोजपुर जिले के बिहियां थाना क्षेत्र अंतर्गत बगही गांव में गुरुवार को चार युवकों को भीड़ ने बच्चा व किडनी चोर होने के संदेह में पीटा। इस दौरान कुछ लोगों के हस्तक्षेप से उनकी जान बची। सभी को पुलिस के हवाले कर दिया गया।
- नवादा में मंगलवार को डायन बताकर एक महिला की लाठी-डंडे से पीटकर हत्या कर दी गई। उसे चाकू से भी गोदा गया। गांव के ही कुछ लोगों ने इस नृशंस वारदात को अंजाम दिया। वारदात को अंजाम देने वाले दबंग महिला को ढ़ाई साल की एक बच्ची की मौत के लिए जिम्मेदार मान रहे थे। वे बच्ची को जिंदा करने का दबाव डाल रहे थे। ऐसा नहीं कर पाने पर दबंगों ने महिला को सरेआम पीट-पीटकर मार डाला।
- पटना के फुलवारीशरीफ में प्रेम-प्रसंग में इंटर के एक छात्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। हत्या कर फेंका गया उसक शव पटना के परसा बाजार थाना क्षेत्र में न्यू एतवारपुर के पास रेलवे ट्रैक के किनारे सोमवार की सुबह मिलने के बाद सनसनी फैल गई।
- सुपौल में रविवार को एक युवती की हत्या से उग्र ग्रामीणों ने हत्या कर भाग रहे युवक को पकड़कर उसकी भी पीट-पीटकर हत्या कर दी। रविवार को ही पटना में एक युवक की हत्या के बाद आरोपित के घर पर भीड़ ने हमला किया।
- भभुआ में शनिवार को चोरी के आरोप में युवक की पिटाई की गई। दरिंदों ने उसे न केवल पीटा, बल्कि गुप्तांग पर पेट्रोल डाल यातना भी दी।
- एक सप्ताह पहले बीते गुरुवार को छपरा में तो तब हद हो गई, जब मवेशी चोरी के आरोप में तीन कथित चोरों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। उसी दिन वैशाली में भी ऐसी दो घटनाएं सामने आईं। वहां बैंक लूट के आरोप में एक युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। साथ ही मंदिर में चोरी के आरोप में एक महिला को निर्वस्त्र कर पीटा गया।
क्या है भीड़ की हिंसा, जानिए
सवाल यह है कि क्या है भीड़ की यह उन्मादी हिंसा (Mob Lynching) और क्या हैं इसके कारण? समान्य भाषा में कहें तो जब भीड़ नियंत्रण से बाहर जाकर एक या अधिक व्यक्तियों पर किसी अपराध के संदेह में हमला करती है तो उसे मॉब लिंचिंग कहते हैं। ऐसे मामलों में भीड़ पीट-पीटकर हत्या भी कर देती है। सामान्यत: ये घटनाएं बिना परिणाम सोचे-समझे किसी अपराध के बाद या अफवाह के कारण होतीं हैं। लोग किसी को भी अपराधी समझ लेते हैं और फिर कानून हाथ में ले लेते हैं।
कानून व्यवस्था के प्रति अविश्वास बड़ा कारण
बड़ा सवाल यह है कि आखिर लोग कानून अपने हाथों में क्यों लेते हैं? मामला कहीं न कहीं कानून व्यवस्था व पुलिस के प्रति अविश्वास से जुड़ा है। प्रख्यात पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि चोरी की घटना और पकड़े गए चोर की पीट-पीटकर हत्या के समय भीड़ के दिमाग में पुलिस की निष्क्रियता और घटना को लेकर आक्रोश हावी रहता है।
सजा का भय हो तो थम सकतीं घटनाएं
क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट डॉ. बिंदा सिंह कहतीं हैं कि भीड़ का न कोई चेहरा होता है, न उसे पकड़े जाने का डर होता है। कभी भी जिम्मेदार व अच्छे लोग ऐसी घटनाओं में शामिल नहीं होते। ऐसी घटनाओं के पीछे कानून का समाप्त होता डर भी है। अगर भीड़ की हिंसा में शामिल लोगों में यह भय व्याप्त हो जाए कि इस अपराध के कारण वे सजा से बच नहीं सकते तो ऐसा करने से पहले वे जरूर सोचेंगे। डॉ. बिंदा सिंह कहतीं हैं कि शराबबंदी कानून में सख्ती हुई तो लोग खुलेआम तो नहीं पी रहे। हिंसक भीड़ के मामले में भी ऐसा ही भय जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए थे ये दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीड़ हिंसा को लेकर दिए 2018 के फैसले को लागू करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने साल 2018 में भीड़ की हिंसा रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। तब कोर्ट ने राज्य सरकारों को जिम्मेदारी देते हुए कहा था कि वे कानून-व्यवस्था बनाए रखें। कोर्ट ने संसद से भी भीड़ की हिंसा के खिलाफ सख्त कानून बनाने को कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर हुई हत्याओं के सिलसिले में निवारक, दंडनीय व उपचारात्मक दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा था कि संसद को इसके लिए कानून बनाना चाहिए। उस कानून में भीड़ द्वारा हत्या के लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि भीड़ की हिंसा को एक अलग अपराध की श्रेणी में रखा जाए।
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