एसआइआर से गर्माया चुनावी रण, महंगाई, नौकरी पर टकरा रहे पक्ष-विपक्ष
बीते 20 वर्षो से सत्ता से दूर महागठबंधन अपनी चुनाव नाकामियों से सबक लेकर इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले महंगाई और बेरोजगारी को सरकार की सबसे बड़ी विफलता बता रहे हैं। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि बेरोजगारी दर में वृद्धि हो रही बावजूद नौकरियों-रोजगार के लेकर सत्ता पक्ष की ओर से झूठे वादे किए जा रहे हैं।
सुनील राज, जागरण, पटना। बिहार में इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढऩी शुरू हो गई है। सत्तारूढ़ एनडीए तो दूसरी ओर विरोधियों के महागठबंधन के बीच मुद्दों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप शुरू है। विपक्ष जहां एसआइआर (मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण) के साथ ही महंगाई, रोजगार, विधि-व्यवस्था पर पक्ष को घेरने में जुटा है तो दूसरी ओर सत्ता पक्ष घटक दल राज्य में विकास के कामकाज, आधारभूत संरचना ढांचे की उपलब्धियों और जन कल्याण के लिए शुरू किए गए कार्यक्रम घोषणाओं को सामने रखकर विरोधियों को उसी के अंदाज में जवाब भी दे रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण ने सियासी टकराव को और तेज कर दिया है।
बीते 20 वर्षो से सत्ता से दूर महागठबंधन अपनी चुनाव नाकामियों से सबक लेकर इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले महंगाई और बेरोजगारी को सरकार की सबसे बड़ी विफलता बता रहे हैं। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि बेरोजगारी दर में वृद्धि हो रही बावजूद नौकरियों-रोजगार के लेकर सत्ता पक्ष की ओर से झूठे वादे किए जा रहे हैं। सरकारी महकमों में लाखों पद खाली हैं परंतु सरकार भर्ती प्रक्रिया के नाम पर खानापूर्ति और कुछ नहीं हो रही। विधि-व्यवस्था का हाल बुरा है मगर सरकारी महकमा मौन है। एसआइआर को लेकर इनके आरोप हैं कि सरकार योजनाबद्ध तरीके से गरीब और अल्पसंख्यक समुदाय के नाम मतदाता सूची से हटा रही है।
दूसरी ओर भाजपा-जदयू जैसे राजनीतिक दलों की ओर से लगातार ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज किया जाता रहा है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट का हवाला देकर पक्ष के दल दावा करते हैं कि भारत की बेरोजगारी दर जुलाई 2025 में घटकर 5.2 प्रतिशत हो गई, जो पिछले महीने 5.6 प्रतिशत थी। बिहार में भी रोजगार के फ्रंट पर सरकार लगातार काम कर रही है और सरकार ने अगले पांच वर्ष में एक करोड़ नौकरी और रोजगार देने की आधिकारिक घोषणा तक कर दी है। महंगाई दर में लगातार गिरावट हो रही है और आम आदमी सरकार के कार्यो से संतुष्ट है। पक्ष एसआइआर को निर्वाचन आयोग की नियमित प्रक्रिया बताकर सरकार की किसी भी प्रकार की भूमिका से सीधे पल्ला झाड़ लेता है।
यही नहीं पक्ष सरकार के कार्यो का विस्तृत लेखा जोखा भी रखता है और दावा करता है कि 2020 से अब तक राज्य में हजारों किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया। करीब दर्जन भर नए मेडिकल कालेजों की घोषणा हुई है। राज्य में पुल-पुलियों का जाल बिछाया गया। जनकल्याण के अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इसके बाद एक बार फिर नए सिरे से दोनों गठबंधनों के बीच महागठबंधन की सरकार मे किए गए कार्यों का हवाला देकर बहस का रुख मोड़ दिया जाता है।
ऐसे तमाम दावों और आरोप-प्रत्यारोप के बीच बिहार चुनाव में इस बार महंगाई और रोजगार जैसे परंपरागत मुद्दों के साथ-साथ मतदाता सूची की पारदर्शिता बड़े सवाल बन गए हैं। विपक्ष इन मुद्दों को जनता की नाराजगी से जोड़ रहा है, जबकि सत्ता पक्ष उपलब्धियों का हवाला दे रहा है। ऐसे में चुनावी रण में जनता किस मुद्दे को प्राथमिकता देती है, यही तय करेगा कि महंगाई-नौकरी का वार भारी पड़ेगा या विकास और एसआइआर पर सफाई।
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