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    बिहार में अनुसूचित जातियों की बड़ी आबादी सरकारी नौकरी और राजनीति में पीछे, आंकड़े बता रहे सच्चाई

    Updated: Thu, 22 Aug 2024 08:16 AM (IST)

    Lateral Entry Controversy Bihar News लैटरल एंट्री विवाद ने देश में आरक्षण के मुद्दे को हवा दे दी है। इससे बिहार भी अछूता नहीं रहा है। प्रदेश में जाति की राजनीति चमकाने वाले नेता इसे जोर-शोर से भुनाने में जुटे हुए हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि बिहार में अनुसूचित जातियों की बड़ी आबादी को सरकारी नौकरियों और राजनीति में संख्या के अनुपात में कितनी जगह मिली है?

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    Bihar News: बड़ी आबादी वाली अनुसूचित जातियां भी सरकारी नौकरियों में हैं पीछे।

    अरुण अशेष, पटना। Bihar News: सरकारी नौकरी में लेटरल एंट्री को लेकर उठे विवाद से पूरे देश ही नहीं बिहार की सियासत भी गरमा गई है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) अनुसूचित जातियों के उप वर्गीकरण के लिए आंदोलन के मूड में आ गए हैं। वह अनुसूचित जातियों की 22 में से 18 जातियों की रैली करेंगे।

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    राज्य सरकार पर उप वर्गीकरण के लिए दबाव बनाएंगे। उनके अनुसार आरक्षण का बड़ा लाभ सिर्फ चार अनुसूचित जातियों (पासवान, रविदास, धोबी और पासी) को मिल रहा है।

    दूसरी तरफ अनुसूचित जातियों का बड़ा हिस्सा उप वर्गीकरण के विरोध में है। सड़क पर उतर आया है। बिहार का सच यह है कि अनुसूचित जातियों की बड़ी आबादी सरकारी नौकरियों में संख्या के अनुपात में जगह नहीं पा सकी हैं।

    सच यह भी है कि मांझी जिन 18 जातियों की बात कर रहे हैं, उनमें एक मुसहर को छोड़कर बाकी 17 जातियां सरकारी नौकरियों में अपवाद की तरह ही हैं।

    क्या कहता है जाति आधारित गणना का विश्लेषण?

    बिहार में जाति आधारित गणना (Caste Based Survey) का विश्लेषण बताता है कि पासवानों की संख्या कुल आबादी में 5.31 प्रतिशत है। सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी 1.44 प्रतिशत है। 5.31 प्रतिशत के साथ रविदास दूसरे नंबर पर हैं।

    सरकारी नौकरियों में इनकी भागीदारी 1. 20 प्रतिशत है। एक प्रतिशत से कम आबादी वाली दो जातियां धोबी (0.83) और पासी (0.98) सरकारी नौकरियों में क्रमश: 3.14 और 2.00 प्रतिशत है। इन चारों की संख्या कुल आबादी में 12.37 प्रतिशत है।

    सरकारी नौकरियों में 7.78 प्रतिशत की भागीदारी है। लेकिन, इन चार को छोड़कर 18 अनुसूचित जातियों की स्थिति भी अच्छी नहीं कही जा सकती है। जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के अनुसार पासवान और रविदास के बाद मुसहर तीसरे नंबर पर हैं।

    इनकी आबादी 3.8 प्रतिशत है। सरकारी नौकरियों में भागीदारी 0.26 प्रतिशत है। अन्य अनुसूचित जातियां, जिनकी आबादी 3.48 प्रतिशत बताई गई है, सरकारी नौकरियों में नजर नहीं आती हैं।

    ये हैं- बांतर, बौरी, भुइयां, चौपाल, दबगर, डोम, घासिया, हलालखोर, हेला/ मेहतर, कंजर, कोरियार, लालबेगी, नट, पानी, रजवार, तुरी और तुन। सरकारी नौकरियों में पिछड़ी अनुसूचित जातियां राजनीति में भी पिछड़ी हैं।

    राजनीति में भी यही हाल

    बिहार में लोकसभा की 40 में से छह सीटें आरक्षित हैं। पासवान, रविदास, मुसहर और पासी जाति के सांसद हैं। विधानसभा में भी इन्हीं जातियों के प्रतिनिधि हैं। सरकारी नौकरियों में आगे धोबी जाति को राजनीति में अधिक अवसर नहीं मिला।

    नौकरियों में पिछड़े पासवान और रविदास राजनीति में आगे हैं। राजनीतिक रूप से सचेत इन जातियों को सभी दलों में प्रश्रय मिलता है। नौकरी में पीछे मुसहर भी राजनीति में कम नहीं हैं। जीतन राम मांझी अभी केंद्र में मंत्री हैं। उनके पुत्र संतोष कुमार बिहार में मंत्री हैं।

    लैटरल एंट्री विवाद के बारे में जानने के लिए पढ़ें ये खबरें

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