Bihar News: बिहार का गौरव बनी गोल्डी, हाथ कटा तो डेग-डेग मापती रही, अब राष्ट्रपति से पुरस्कार लेकर बढ़ाया मान
बिहार की गोल्डी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार प्राप्त कर पूरे बिहार को गौरवान्वित कर दिया है। महज 10 महीने की उम्र में ट्रेन हादसे में अपने हाथ खोने वाली गोल्डी ने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी और महज 15 साल की उम्र में ये पुरस्कार प्राप्त किया। गोल्डी ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में आधा दर्जन से ज्यादा पदक जीते हैं।

आरके शर्मा, बख्तियारपुर। Rashtriya Bal Puraskar 2024: दादा दूरी मापने के बाद कहते चार डेग (कदम)। बच्ची के चेहरे पर चमक आ जाती। कुछ दिनों बाद, हां...आज आठ डेग...। उसका चेहरा खिल उठता। डेग-डेग बढ़ती उसी गोल्डी ने 26 दिसंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार प्राप्त कर पूरे बिहार को गौरवान्वित कर दिया।
2009 में खोया हाथ
दैनिक जागरण ने 26 अक्टूबर को उसके संघर्ष और उत्साह की कहानी प्रकाशित की थी। गोल्डी करीब साल भर की ही थी, जब 2009 में एक दुर्घटना में उसका एक हाथ कट गया। उम्र के साथ समझ विकसित होती गई तो अपने जैसे बच्चों को खेल मैदान में देख उसका भी मन दौड़ने को मचल उठता।
आधा दर्जन से ज्यादा पदक जीते
- गोल्डी ने हिम्मत की और फिर जब दौड़ना शुरू किया तो मेडल उसके गले की शोभा बढ़ाने लगे।
- राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 15 वर्ष की गोल्डी गोल्ड मेडल समेत आधा दर्जन पदक अपने नाम कर चुकी हैं।
- गोल्डी के दादा राम केश्वर प्रसाद ने बताया कि जब वो महज 10 महीने की थी, तभी उसकी मां का निधन हो गया।
- गोल्डी की मां ट्रेन से गिर गई थी, इस दौरान वो भी गोद में थी। इस हादसे में उसका एक हाथ कट गया।
गोल्डी बड़ी हुई तो मिसी गांव के स्कूल में उसका नामांकन कराया गया। उसने बच्चों को दौड़ते देख दौड़ना शुरू कर दिया। स्कूल से लौटते समय ईंट-पत्थर को लंबी दूरी तक फेंकती रहती। थोड़ी बड़ी हुई तो गोले फेंकने लगी।
दादा फेंके गए गोले की दूरी माप कर बताते। नालंदा के हरनौत में एक स्कूल में उसका नामांकन कराया। कक्षा आठ बजे से शुरू होती, पर गोल्डी सुबह पांच बजे से ही मैदान में जाकर अभ्यास करती। उसकी दादी मणि देवी ने बताया कि मां के निधन के बाद वह कभी अपनी ननिहाल खुसरूपुर ननिहाल में तो कभी यहां रहती थी।
बेटी के सम्मान से पिता गदगद
गोल्डी के पिता संतोष कुमार बेटी को मिले सम्मान से अभिभूत हैं। उसकी हर कामयाबी में अभिभावक की तरह साथ रहने वाले चाचा विनय कुमार बताते हैं कि उसकी प्रतिभा पर सबसे पहले कोच कुंदन पांडे की नजर पड़ी। यहीं से उसकी सफलता की कहानी आगे बढ़ी।
उसने 15से 17 जुलाई तक बेंगलुरु में आयोजित 13वीं जूनियर एवं सब जूनियर पैरा एथलेटिक में डिस्कस थ्रो में स्वर्ण समेत तीन पदक अपने नाम किया। थाईलैंड में वर्ल्ड एबिलिटी स्पोर्ट यूथ गेम्स में शार्ट पुट में गोल्ड मेडल जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आई। गोल्डी ने बताया कि उसे सबसे बड़ी खुशी है कि उसके गांव, परिवार और प्रदेश का नाम रौशन हुआ।
कई प्रतियोगिताओं में 15 वर्ष की गोल्डी गोल्ड मेडल समेत आधा दर्जन पदक जीत चुकी है। 13वीं जूनियर एवं सब जूनियर पैरा एथलेटिक में डिस्कस थ्रो में गोल्डी ने 03 पदक जीते हैं।
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