Bihar Politics: राहुल गांधी की बिहार वापसी से सभी दलों में हलचल, तो फिर महागठबंधन में कलह क्यों?
लगभग दो महीने के बाद, राहुल गांधी बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में शामिल हुए। मुजफ्फरपुर और दरभंगा में तेजस्वी यादव के साथ रैलियों में दिखे। कांग्रेस का कहना है कि यह एक रणनीति थी। राहुल गांधी ने पहले इंटरनेट मीडिया पर सरकार पर हमला किया था। उनकी वापसी से महागठबंधन में उत्साह है, लेकिन कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि सीटों को लेकर कोई विवाद नहीं था, सिर्फ जीतने वाली सीटों पर ध्यान था।
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लगभग दो महीने के बाद, राहुल गांधी बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में शामिल हुए।
सुनील राज, पटना। लगभग 59 दिनों के लंबे अंतराल के बाद, कांग्रेस नेता राहुल गांधी आखिरकार विधानसभा चुनाव प्रचार में औपचारिक रूप से उतर आए। 1 सितंबर को पटना में "वोट चोरी यात्रा" के समापन के बाद, राहुल गांधी बुधवार को मुजफ्फरपुर और दरभंगा में चुनावी रैलियों में तेजस्वी यादव के साथ नज़र आए।
राहुल गांधी के प्रचार में उतरने से कांग्रेस और महागठबंधन में उत्साह तो है, लेकिन कई सवाल भी खड़े हो गए हैं। हालाँकि, पार्टी का दावा है कि राहुल गांधी का चुनाव प्रचार में देर से उतरना पार्टी और महागठबंधन की रणनीति के कारण है।
दरअसल, अक्टूबर की शुरुआत में, जब महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर विवाद चरम पर था, और राज्य कांग्रेस के भीतर, पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक टिकट कटने को लेकर हंगामा कर रहे थे, राहुल गांधी ने इन मुद्दों से दूरी बनाए रखी।
हालाँकि टिकट कटने से नाराज़ कुछ नेता राहुल गांधी से मिलने दिल्ली भी गए, लेकिन राहुल गांधी ने इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और न ही सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी की। उन दिनों राहुल गांधी की सक्रिय उपस्थिति इंटरनेट मीडिया पर ही थी। अपने इंटरनेट मीडिया अकाउंट्स के ज़रिए वह राज्य की एनडीए सरकार पर बेरोज़गारी, शिक्षा व्यवस्था, शराबबंदी और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर हमला बोलते रहे हैं।
हालांकि, अब जबकि चुनाव प्रचार अपने निर्णायक दौर में है, राहुल गांधी की वापसी को महागठबंधन के लिए एक बड़ा बढ़ावा माना जा रहा है। राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ उनकी संयुक्त रैलियाँ न केवल गठबंधन की एकजुटता का संदेश देंगी, बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी जोश भर देंगी।
इससे प्रचार अभियान में नई धार आएगी और पार्टी की उपस्थिति और प्रभावी होगी। हालाँकि, कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। बिहार के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि तेजस्वी यादव को महागठबंधन की पूरी ज़िम्मेदारी देकर कांग्रेस महज़ चुनाव की औपचारिकता निभाने की कोशिश कर रही है।
हालांकि, पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया समन्वयक अभय दुबे कहते हैं कि जो लोग कहानियाँ गढ़ते हैं, वे कहानियाँ गढ़ते ही रहेंगे। हकीकत यह है कि राहुल गांधी को एक खास रणनीति के तहत देर से मैदान में उतारा गया। जहाँ तक सीटों के विवाद या पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह की बात है, तो सीटों को लेकर कोई विवाद नहीं था।
बस मुद्दा सिर्फ़ उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ना था जहाँ जीत संभव हो। दुबे ने कहा कि कांग्रेस ने सभी 243 सीटों के लिए उम्मीदवारों से आवेदन मांगे हैं। ज़ाहिर है, सबकी आकांक्षाएँ पूरी नहीं की जा सकतीं। कांग्रेस के संविधान के दायरे में रहकर अपनी राय रखने वाले कार्यकर्ताओं को मनाया जाएगा और उनसे संवाद किया जाएगा।
हालाँकि, महागठबंधन के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, राहुल गांधी की मौजूदगी से एक सकारात्मक संदेश ज़रूर जाएगा, लेकिन यह तभी फ़ायदेमंद होगा जब वह प्रचार करते रहें और गठबंधन के साझा एजेंडे के बारे में जनता से संवाद करते रहें।

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