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    Bihar Politics: तीसरे दांव में भी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी चित, फिर भी पराजय धमकदार

    Updated: Wed, 02 Apr 2025 08:53 PM (IST)

    प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जसुपा) ने पिछले कुछ चुनावों में हार का सामना किया है जिनमें विधानसभा उपचुनाव विधान परिषद उपचुनाव और छात्र संघ चुनाव शामिल हैं। इन हारों से पार्टी को यह सीख मिली कि प्रत्याशी चयन में सूझबूझ जरूरी है। हालांकि चुनावों में मिले वोट यह दर्शाते हैं कि जसुपा की राजनीतिक उपस्थिति कमजोर नहीं है और उसे युवाओं का अच्छा समर्थन प्राप्त है।

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    तीसरे दांव में भी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी चित, फिर भी पराजय धमकदार (फाइल फोटो- पीटीआई)

    विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) तो बिहार में काफी पहले से सक्रिय थे, जबकि पिछले वर्ष दो अक्टूबर से उनकी जन सुराज पार्टी (Jan Suraaj Party) भी अस्तित्व में आ गई। उससे पहले पीके का आंदोलन पदयात्रा और संवाद तक सीमित था, फिर भी उसका राजनीतिक रंग उभर ही आता था।

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    अलबत्ता जसुपा के साथ पीके की चुनावी यात्रा की शुरुआत हुई, जो अभी तक कांटों से  ही रही है। आगे विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2025) है, जिसके लिए जीत का हौसला बनाए रखने की चुनौती तीन अलग-अलग चुनावों में मिली हार के बाद बढ़ गई है।

    पहली हार विधानसभा के उपचुनाव में हुई थी और दूसरी विधान परिषद के लिए तिरहुत (स्नातक) क्षेत्र के उपचुनाव में। तीसरी हार पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में हुई है, जो ताजातरीन है। नि:संदेह इन तीनों चुनावों में जसुपा की पराजय हुई, लेकिन मिलने वाले वोट बता रहे कि मैदान में उसकी उपस्थिति कमजोर भी नहीं कही जा सकती।

    तीनों चुनाव क्यों हारी जसुपा?

    इन तीनों चुनावों से जसुपा को एक सीख समान रूप से मिल रही। वह प्रत्याशियों के चयन में सूझबूझ है। हड़बड़ी के कारण या पूर्व तैयारी नहीं होने से वह तीनों चुनावों में इस मोर्चे पर गच्चा खा चुकी है। दिसंबर, 2024 मेंं हुए विधानसभा उपचुनाव में उसे कुल चार में से अपने दो प्रत्याशी बदलने पड़े थे। फिर भी उसे 10 प्रतिशत से कुछ अधिक मत मिले थे।

    इतना वोट कम नहीं होता, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव मेंं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से मात्र 0.3 प्रतिशत कम मत पाकर महागठबंधन सत्ता से वंचित रह गया था। तब दोनों गठबंधनों के बीच 15 सीटों का अंतर रहा था। लगभग तीन दर्जन सीटों पर जदयू की संभावना मात्र 5.66 प्रतिशत मत पाने वाली लोजपा के कारण प्रभावित हुई थी।

    विधान परिषद उपचुनाव में क्या हुआ?

    विधान परिषद के उपचुनाव में निर्दलीय वंशीधर बृजवासी विजयी हुए थे। वे जसुपा के अघोषित प्रत्याशी थे, लेकिन खर्च आदि के मुद्दे पर बात नहीं बनी। अंतत: जसुपा विनायक गौतम को ले आई। बृजवासी को मिले 23003 मतों की तुलना में 10195 मत लेकर विनायक दूसरे स्थान पर रहे। राजद और जदयू को क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा था।

    छात्र संघ चुनाव

    छात्र संघ के चुनाव में तो जदयू मैदान में ही नहीं था, जबकि राजद समर्थित सभी प्रत्याशियों की करारी हार हुई। जसुपा ने लगभग सभी सीटों पर विरोधियों को करारी टक्कर दी। हालांकि, उसका एक भी प्रत्याशी विजयी नहीं रहा, लेकिन युवाओं का उसे अच्छा समर्थन मिला है। कोषाध्यक्ष पद पर उसके प्रत्याशी ब्रजेश 1528 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे, जबकि एनएसयूआइ 901 मतों के अंतर से विजयी रहा था।

    महासचिव के पद पर उसकी प्रत्याशी ऋतंभरा राय 753 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहीं। इस चुनाव में जसुपा की सर्वोत्तम उपलब्धि अनु कुमारी के नाम संयुक्त सचिव के पद पर रही। यहां जीत-हार का निर्णय मात्र 182 वोटों से हुआ, जबकि अनु 2091 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहीं।

    हालांकि, प्रत्याशियों के चयन की सीख यहां भी मिली। दिवेश दीनू अध्यक्ष पद के प्रत्याशी थे। विद्यार्थी परिषद से मिलीभगत के कारण उनसे हाथ पीछे खींच जसुपा को एनएसयूआइ को समर्थन देना पड़ा था।

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