बिहार में खरमास बाद तेज होगा दलबदल का खेल, दही-चूड़े के भोज से चमकेगी नेताओं की किस्मत!
बिहार में इस समय कई नेताओं को खरमास बीतने और मकरसंक्रांति के आने का बेसब्री से इंतजार है। दही-चूड़े के भोज के साथ कई राजनीतिक समीकरण बदलने के आसार दिख रहे हैं। खासकर वो नेता जो इस वक्त किसी पार्टी का हिस्सा नहीं उन्हें खरमास खत्म होने का इंतजार है।

राज्य ब्यूरो, पटना: बिहार की राजनीति के लिए संक्रांति पर चूड़ा-दही भोज खास रहेगा। पाला बदलने को बेताब कई नेताओं को खरमास खत्म होने और शुभ मुहूर्त के आने का बेसब्री से इंतजार है। इस बीच सत्तारूढ़ दल की ओर से एक ही दिन दो भोज के आयोजन की घोषणा को लेकर कई मायने निकाले जा रहे हैं। पहला भोज राजद सुप्रीमो लालू यादव और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर होगा। वहीं, दूसरा चूड़ा-दही का न्यौता जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा दे रहे हैं। ऐसे में पुरानी नाव छोड़ चुके नेताओं के दिन काटे नहीं कट रहे हैं।
बिहार में खरमास खत्म होने के बाद दल बदलने की परंपरा भी रही है। इसी को दोहराने की तैयारी चल रही है। वर्तमान में घोषित तौर पर दो नेताओं को शुभ मुहूर्त का बेसब्री से इंतजार है। दोनों नेता के दिन काटे नहीं कट रहे हैं। दोनों दलों के नेता अपने-अपने दल के लिए मीडिया मैनेजर के रूप में शुमार रहे हैं। अब दोनों नया ठौर तलाश रहे हैं। इस बीच चर्चा है कि कई सांसद भी भविष्य की राजनीति अंधकार मय देखकर नया ठिकाना तलाशने में जुट गए हैं। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन ने पार्टी छोड़ दी है। इसी तरह लोजपा प्रमुख व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने श्रवण को पार्टी से निकाल दिया है। दोनों के दोनों वर्तमान में किसी भी दल में नहीं है।
चूड़ा-दही के बाद की रही है परंपरा
बिहार में वर्ष 2018 के चूड़ा-दही भोज के बाद कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने पाला बदल लिया था, तब जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की ओर से भोज का आयोजन हुआ था। डेढ़ महीने बाद अशोक चौधरी जदयू में शामिल हो गए थे। अब चर्चा है कि कई दलों के संगठन से जुड़े प्रदेश पदाधिकारी भी प्रदेश नेतृत्व से असंतुष्ट होकर दल और दिल बदलने की तैयारी कर रहे हैं।
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