Patna News: 50 हजार की रिश्वत लेते दो दारोगा रंगे हाथों गिरफ्तार, निगरानी की छापामारी के बाद मचा हड़कंप
पटना के रूपसपुर थाने के दो दारोगा को निगरानी ने 50 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया है। दारोगा द्वारा तुषार पांडेय नामक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज शिकायत को मैनेज करने के लिए पैसों की मांग की गई थी। जिसके बाद तुषार ने इस मामले की शिकायत निगरानी से कर दी। निगरानी ने दोनों दारोगा को रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।

राज्य ब्यूरो, पटना। निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने गुरुवार को बड़ी कार्रवाई करते हुए 50 हजार रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में रूपसपुर थाने में तैनात दो दरोगा को अपनी गिरफ्त में लिया है। निगरानी ब्यूरो से मिली जानकारी के अनुसार तुषार पांडेय नामक व्यक्ति ने बुधवार को यह लिखित शिकायत दी थी।
शिकायतकर्ता के अनुसार, रूपसपुर थाने में राहुल कुमार नामक एक व्यक्ति ने उसके खिलाफ रुपये लेने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई है। इस शिकायत को मैनेज करने के लिए पुलिस ने पैसों की मांग की।
निगरानी ब्यूरो ने की कार्रवाई
- शिकायत को मैनेज करने के लिए थानेदार और अवर पुलिस निरीक्षक फिरदौस आलम एवं अवर पुलिस निरीक्षक रंजीत कुमार 50 हजार रुपये की रिश्वत की मांग कर रहे हैं।
- यह शिकायत मिलने के बाद निगरानी ब्यूरो के डीएसपी अरुणोदय पांडेय को मामले की जांच और कार्रवाई करने की जिम्मेदारी दी गई।
निगरानी की विशेष अदालत में पेश किए जाएंगे दोनों दारोगा
डीएसपी पांडेय ने पूरे मामले की सत्यता की जांच की और शिकायत को सही पाया। इसके बाद उन्होंने एक धावा दल का गठन किया और गुरुवार की रात जब ये दोनों दारोगा शास्त्री नगर स्थित लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के पास अंधेरे में तुषार पांडेय से रिश्वत की रकम ले रहे थे।
उसी वक्त उन्हें रंगेहाथ गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों दरोगा से पूछताछ की जा रही है। शुक्रवार को दोनों को निगरानी की विशेष अदालत में पेश किया जाएगा।
कानून नहीं, लोक-लाज याद रखिए
यह दुखद है कि सरकार के छोटे बड़े अधिकारी नाजायज कमाई करते हुए रंगे हाथ धर लिए जा रहे हैं। निगरानी विभाग ने दो दरोगा को पचास हजार रुपये की रिश्वत लेते पकड़ लिया।
दोनों दरोगा ने अपने स्तर से काफी होशियारी की थी, कार्यस्थल से दूर की जगह को रिश्वत लेने के लिए चुना था। दोनों कानून रक्षक की अपनी भूमिका को भूल कर आराम से रिश्वत ले रहे थे।
यह नहीं कहा जा सकता है कि इनके साथ जो कुछ हुआ, उसे देखकर दूसरे पुलिसकर्मी रिश्वत लेना बंद कर देंगे, क्योंकि निगरानी की ऐसी कार्रवाई पहली बार नहीं हुई है। ऐसी कार्रवाई सैकड़ो बार हुई है। असल में यह विषय सिर्फ कानून का नहीं है। लोकलाज का है, नैतिकता का है। इसे कानून के दम पर नहीं रोका जा सकता है।
तस्वीर में नजर आ रहा है कि रिश्वत लेते पकड़े गए दोनों दारोगा किसी अपराधी की तरह पुलिस की गाड़ी में बैठे हुए हैं। यह तस्वीर उनके स्वजन और सगे-सबंधी, मित्र, उनके बाल-बच्चों के सहपाठी देख रहे होंगे। उन्हें कितनी पीड़ा हो रही होगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
कभी उनके स्वजन खुश हुए होंगे कि कोई अपना दारोगा बन गया है। अपने यहां स्वजनों के पद और प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की प्रवृति रही है। वही स्वजन अब किस मुंह से इनके बारे में बताएंगे।
उनके बच्चे अपने सहपाठियों से क्या कहेंगे। अगर सिर्फ इसी परिणति के बारे में कोई आदमी सोच ले तो वह रिश्वत की बड़ी से बड़ी लेने से परहेज करेगा। मतलब इस मामले में लोकलाज कानून से भी अधिक कारगर प्रमाणित हो सकता है।
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