Bihar Election 2025: दशकों बाद भी मलिन बस्तियों का विकास अधूरा, मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे लोग
पटना सिटी की मलिन बस्तियों में दशकों बाद भी विकास अधूरा है। नेता चुनाव के समय वादे तो करते हैं, पर जीतने के बाद लौटकर नहीं आते। इन बस्तियों में रहने वाले लोग रोटी, कपड़ा, मकान जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। राशन कार्ड न होने से आयुष्मान कार्ड भी नहीं बन पाया है, और उज्ज्वला योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा। इस बार मलिन बस्तियों के वोटर उपेक्षा को मतदान का मुद्दा बनाने की तैयारी कर रहे हैं।

दशकों बाद भी मलिन बस्तियों का विकास अधूरा
अहमद रजा हाशमी, पटना सिटी। एक-एक वोट का महत्व राजनीतिक दलों के नेताओं को भली-भांति ज्ञात है। चुनाव के समय सभी नेता वोटरों तक पहुंचने और वादों के साथ-साथ हर संभव प्रयास कर वोट प्राप्त करने में जुट जाते हैं। इस दौरान जाति, धर्म, समुदाय या क्षेत्र का कोई भेदभाव नहीं होता।
चुनावी प्रचार के दौरान नेता जब माननीय बन जाते हैं, तो मलिन बस्तियों के पास से गुजरते समय उनकी नजरें झुक जाती हैं। यही कारण है कि शहर की मलिन बस्तियों को दशकों बाद भी विकास का लाभ नहीं मिल सका है। इन बस्तियों में रहने वाले लोगों की स्थिति को समझने के लिए यदि कुछ समय बिताया जाए, तो हर दिल की धड़कन आह से भरी होती है।
पटना साहिब विधान सभा क्षेत्र में दो दर्जन से अधिक स्लम बस्तियों में रहने वाले लोग बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं। रोटी, कपड़ा, मकान, इलाज, शिक्षा, स्वच्छता जैसी आवश्यकताएं इनसे दूर हैं। मौजूदा विधान सभा चुनाव में मलिन बस्तियों के वोटर इस उपेक्षा को मतदान का मुद्दा बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
मूलभूत चीजों का अभाव
बस्तियों में रहने वाले कुछ पुरुष और महिलाएं मतदाता पहचान पत्र रखते हैं और मतदान करते हैं, लेकिन हर बार उन्हें यह अनुभव होता है कि वोट मांगने वाले नेता फिर कभी नहीं आते। यहां के निवासियों के पास शहरी होने का प्रमाण पत्र और आधार कार्ड है, लेकिन राशन कार्ड नहीं है।
राशन कार्ड के अभाव में आयुष्मान कार्ड भी नहीं बन पाया है, जिससे वे सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। उज्ज्वला योजना का लाभ भी उन्हें नहीं मिल पाया है। लकड़ियां और खरपतवार इकट्ठा कर खाना बनाना उनकी मजबूरी है।
विधवा, वृद्धा और दिव्यांग पेंशन का लाभ कुछ ही लोगों को मिल रहा है। बैंक या डाकघर में खाता न होने के कारण वे अपनी जरूरतों के लिए पैसे जमा नहीं कर सकते। बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित हो रही है, और कुपोषण के कारण उनका शारीरिक और मानसिक विकास बाधित हो रहा है।
नियमित टीकाकरण अभियान भी इन बस्तियों में नहीं चलाया गया है। आवास योजना, पुनर्वास या पुनर्विकास योजनाओं का लाभ भी इन बस्तियों तक नहीं पहुंचा है। पटना साहिब के इन मलिन बस्तियों के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जैसे कि मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, शौचालय, शुद्ध पेयजल, जलनिकासी व्यवस्था और स्वस्थ वातावरण।

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