नकली माल के निर्माण का हब बना पटना, कारीगरी ऐसी कि असली भी फेल, जानिए
राजधानी पटना का पटना सिटी क्षेत्र नकली सामान के गोरखधंधा चरम पर है। यहां नकली सामान इस कदर बनाया जाता है कि असली और नकली का फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
पटना [अनिल कुमार]। नकली सामान का गोरखधंधा पटना सिटी को बदनाम कर रहा है। सिटी में डी (डुप्लीकेट) कारोबार धड़ल्ले से जारी है। पटना सिटी की मंडियों से नकली सामानों की आपूर्ति बिहार के अलावा दूसरे राज्यों में भी होती है। नक्कालों की बाजीगरी ऐसी है कि असली भी फेल। ब्रांडेड कंपनियों से मिलता-जुलता नामवाला माल तैयार कर सूबे की मंडियों में धड़ल्ले से बेचा जाता है। उपभोक्ता अनजाने में तेल-मसाले के साथ जहरीला पदार्थ खा कर सेहत बिगाड़ रहे हैं।
धनिया में गंधक का प्रयोग
गंधक को बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाता है। यह जहरीला और विस्फोटक भी है। यही गंधक मसाले के जरिये पेट तक पहुंचता है। धनिया (खड़ा) जब पुराना हो जाता है तब इसमें कीड़े लग जाते हैं। फिर गंधक और कलर देकर इसे सड़े धनिया को ताजा बना दिया जाता है, लेकिन वह जहर बन जाता है। मजेदार बात यह है कि मारूफगंज मंडी के ही दुकानदार अपने ही बनाए मसालों को खाने से परहेज करते है।
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काली मिर्च में जला मोबिल
पहले काली मिर्च में मिलावट के नाम पर पपीते के बीज का प्रयोग किया जाता था। अब तरीका बदल गया है। पानी, तेल और जले मोबिल का प्रयोग कर इसका वजन बढ़ाया जाता है। अभी भी बुकनी मसाले में पपीते के बीज का प्रयोग होता है।
गुजरात से आता सोवा जीरा
गुजरात में पैदा होने वाला सोवा जीरा के नाम पर धड़ल्ले से बिकता है। कीमत में आधे से अधिक का अंतर होता है।
पत्थर बिकता चावल के मोल
राजस्थान और झारखंड से संगमरमर का बुरादा आता है और चावल में मिलाया जाता है। यही पाउडर डालकर मशीन से चावल की पॉलिश की जाती है। बताते हैं कि सोनम अरवा चावल की मशीन के जरिये कङ्क्षटग कर उसे बासमती का रूप दिया जाता है। महक के लिये एसेंस का प्रयोग करते हैं।
दाल
मसूर, मूंग, उरद और अरहर की दाल भी मिलावट से अछूती नहीं है। जहां मूंग की जगह मोट दाल और खेसारी अरहर के साथ मिलकर यह तीन गुने का फायदा दिलाती है। मंडी में डालडा के नाम से प्रचलित खेसारी दाल की कङ्क्षटग की जाती है और पॉलिश के दौरान अरहर के साथ मिलावट की जाती है। मोट दाल मूंग की तरह ही दिखती है और स्वाद भी वैसा ही पर दाम में दस से पंद्रह रुपये का अंतर होता है। थोक में खेसारी दाल जहां 32 रुपये प्रति किलो है, वहीं अरहर दाल 70 रुपये, चना दाल 45 रुपये मूंग दाल 90 से 100 रुपये में बिक जाती है।
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एक दर्जन चक्की मशीनों से होती बाजीगरी
मंडियों के अंदर एक दर्जन से अधिक चक्की मशीन है। थोक दुकानदार अपने ही दुकानों के मसालों को पीस कर बेचते है। गोदाम में पैङ्क्षकग मशीन भी है, जो बड़े ही अच्छे ढंग से पैङ्क्षकग कर ब्रांडेड कंपनी के नाम पर बाजार में बिकता है। ब्रांडेड कंपनियों में जहां पांच से दस फीसदी की कमाई होती है। डी माल में 25 से 30 प्रतिशत की कमाई होने से बेचने वाले भी खुशहाल रहते हैं। भले ही उपभोक्ता की ङ्क्षजदगी दांव पर लग जाए।
पाम ऑयल में रंग और एसेंस मिला बनाते सरसों तेल
महाराजगंज में छापेमारी के दौरान कारोबारी ने पुलिस को बताया कि वे दक्षिण भारत से टैंकर से पॉम ऑयल मंगाते हैं। यहां उसमें केमिकल, एसेंस और रंग डालकर नकली सरसों तेल व रिफाइंड बनाया जाता है। इस घंधे में कारोबारी को पता रहता है कि माल डी है। धंधेबाज के साथ-साथ कारोबारी की भी पूरी कमाई होती है। ग्राहक को पता नहीं होता कि वो जहर खा रहे हैं।
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