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    Bihar News: नहीं काम आया राजनीतिक रसूख, हाई कोर्ट ने JDU नेता की FIR को कर दिया निरस्त; ये है पूरा मामला

    By Jagran NewsEdited By: Mukul Kumar
    Updated: Tue, 08 Apr 2025 06:17 PM (IST)

    Bihar Politics In Hindi पटना हाई कोर्ट ने मसूम खान के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्राथमिकी दुर्भावना से प्रेरित है और आरोप ...और पढ़ें

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट ने एक अहम निर्णय में मसूम खान के विरुद्ध दर्ज आपराधिक मुकदमे को दुर्भावना से प्रेरित करार देते हुए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को निरस्त कर दिया।

    न्यायाधीश चंद्रशेखर झा की एकलपीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया आरोपी के विरुद्ध कोई ठोस साक्ष्य नहीं है और निचली अदालत ने यंत्रवत तरीके से डिस्चार्ज याचिका को खारिज किया।

    क्या था मामला?

    पूर्व नगर पार्षद एवं जनता दल यूनाइटेड की जिला अध्यक्ष डॉ. कुमकुम सिन्हा ने 6 मार्च 2021 को मोतिहारी के बनजरिया थाना में प्राथमिकी दर्ज करा कर आरोप लगाया था कि 5 मार्च की शाम 7:45 बजे जब वे अपने क्लिनिक से घर लौट रही थीं, तो दो बिना नंबर प्लेट की बाइक पर सवार चार अज्ञात लोगों ने उनकी गाड़ी को रोककर 50 लाख की रंगदारी की मांग की।

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    उन्होंने दावा किया कि यह मांग “मसूम भाई” के फरमान पर की गई थी और भुगतान न करने पर उनके क्लिनिक में बम विस्फोट और बच्चों के अपहरण की धमकी दी गई।

    याचिकाकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव ने मसूम खान की ओर से तर्क दिया कि एफआईआर केवल संदेह के आधार पर दर्ज की गई थी।

    उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता उस घटनास्थल पर उपस्थित नहीं थे और उनके खिलाफ लगाए गए डिजिटल माध्यम से उत्पीड़न के आरोप 2017 और 2020 की पुरानी घटनाओं पर आधारित हैं, जिनके प्रमाण भी संदेहास्पद हैं और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी के तहत प्रमाणिक नहीं हैं।

    क्या बोले दूसरे पक्ष के वकील?

    दूसरी ओर, विपक्षी पक्ष की ओर से अधिवक्ता अंसुल ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने सभी पहलुओं पर विचार करते हुए ट्रायल योग्य मामला मानते हुए डिस्चार्ज याचिका खारिज की।

    अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एफआईआर राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित प्रतीत होती है और दर्ज घटना में याचिकाकर्ता की भूमिका केवल “शंका” पर आधारित है, जिसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

    मजिस्ट्रेट ने बिना उचित परीक्षण के डिस्चार्ज याचिका खारिज की, जो कि प्रक्रियात्मक न्याय के विरुद्ध है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल प्राथमिकी और पुलिस रिपोर्ट के आधार पर किसी निर्दोष व्यक्ति को ट्रायल में घसीटना न्यायसंगत नहीं है।

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