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चारा घोटाला: लालू की सजा पर खुश होते हैं घोटाले को उजागर करने वाले अधिकारी

चारा घोटाले के आरोपियों को सजा मिलती है, तो राजनीतिक विरोधियों के अलावा वैसे भी कई लोग खुश होते हैं, जो उस दौर में भ्रष्टाचार का खुला खेल देख चुके हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 25 Jan 2018 04:11 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jan 2018 08:00 PM (IST)
चारा घोटाला: लालू की सजा पर खुश होते हैं घोटाले को उजागर करने वाले अधिकारी
चारा घोटाला: लालू की सजा पर खुश होते हैं घोटाले को उजागर करने वाले अधिकारी

पटना [सुमिता जायसवाल]। चारा घोटाले के आरोपियों को सजा मिलती है, तो राजनीतिक विरोधियों के अलावा वैसे भी कई लोग खुश होते हैं, जो उस दौर में भ्रष्टाचार का खुला खेल देख चुके हैं और अपने स्तर पर उसके खिलाफ लड़ते रहे।

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पिछली बार जब राजद प्रमुख लालू यादव को रांची सीबीआइ कोर्ट ने चारा घोटाला के देवघर कोषागार से 89.27 लाख के अवैध निकासी के मामले में दोषी करार दिया, तब दिल्ली में इनकम टैक्स के अवकाशप्राप्त कमिश्नर एक 83 वर्ष की उम्र में जिंदगी के अंतिम दौर से गुजर रहे थे।

उन्होंने 1991 में अखबार में छपी एक छोटी सी रिपोर्ट के आधार पर जांच कराकर चारा घोटाले से कमाए गए 30 करोड़ रुपये का कालाधन पकड़ा था। लालू को सजा मिली तो वह बहुत खुश थे। 28 दिसंबर 2017 को उनका निधन दिल्ली में हुआ। उनके परिवार के लोग कहते हैं कि आखिरी समय में उन्हें संतुष्टि थी कि दोषियों को सजा हो रही। 

उस समय आयकर के मुख्य आयुक्त थे तिवारी

मुरारी नंद तिवारी तब पटना में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में चीफ कमिश्नर थे। वे 1959 बैच के आइआरएस ऑफिसर थे। 1991 में चारा घोटाले से संबंधित ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट से संबंधित अखबार में छपी एक छोटी सी खबर के आधार पर छापेमारी करवाकर 30 करोड़ रुपये का काला धन जब्त किया था। उन्होंने अपनी अप्रकाशित पुस्तक 'ट्रैवेल्स ऑफ सिविल सर्वेंट्स' में लिखा है कि 1992 में पशुपालन घोटाला के पर्दाफाश में उनके विभाग यानी आयकर की भी भूमिका रही।

स्कूटर पर मवेशी ढोने के बिल से बटोरा गया था काला धन

अपनी किताब में उन्होंने लिखा है कि 1991 में बिहार में अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने अखबार में प्रकाशित ऑडिटर जनरल की एक छोटी सी रिपोर्ट देखी । रिपोर्ट में बिहार के आदिवासी इलाकों में कई कंपनियों द्वारा चारा की बोगस सप्लाई के बदले बड़े पैमाने पर गलत बिल बनाकर कोषागार से रुपयों की निकासी की बात कही गई थी। इसमें मवेशियों के ट्रक से लाने के भी फर्जी बिल के बदले सरकारी कोष से रुपये की निकासी की गई थी।

रिपोर्ट के अंंत में कहा गया था कि दोषी इतने दु:साहसी है कि उन्होंने ट्रक के नंबर की जगह स्कूटर और मोपेड का नम्बर फर्जी बिल में डाले थे। रिपोर्ट देखकर तिवारी ने अपने डिपार्टमेंट के अधिकारी आर मोहन को बुलाया और कहा कि ट्रक के नंबर यदि फर्जी हैं, तो इसे आसानी से क्रॉस चेक किया जा सकता है। अखबार के रिपोर्ट में मुझे सच्चाई लग रही है। यदि वास्तव में मवेशियों के लाने के लिए इस्तेमाल वाहनों के नंबर स्कूटर और मोपेड आदि के हैं, तो यह एक बड़ा रैकेट है।

एक सप्ताह के बाद आर मोहन ने कंफर्म कर दिया कि सभी ट्रकों के नंबर फर्जी हैं। विभाग के अन्य अधिकारी डॉ पीपी लक्कड़ और रांची में पदस्थ अधिकारी तारकेश्वर सिंह के परामर्श और सहयोग से बिहार में छह जगहों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की गई। छापेमारी में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने 30 करोड़ रुपये नकद बरामद किए थे।


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