बिहार में राजस्व की कमी को पूरा करने के लिए नीतीश सरकार ने अहम कदम उठाया है। नीतीश सरकार ने कम आय वाले लोगों को सुदृढ़ बनाने लिए यह कदम उठाया है। वहीं वित्त आयोग से बिहार की तीन बड़ी अपेक्षाएं हैं और कर बंटवारे के निर्धारित तीन मानकों में परिवर्तन का आग्रह भी। वेटेज में परिर्वतन के साथ बिहार उन मानकों के स्थानापन्न नए पहलुओं को प्रासंगिक मान रहा।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। Bihar News: अपनी बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बिहार को अधिकाधिक राजस्व चाहिए। इसके लिए दोतरफा प्रयास हो रहा। पहला, आंतरिक स्तर पर राजस्व के नए स्रोत चिह्नित किए जा रहे। दूसरा, केंद्रीय करों में अपेक्षाकृत अधिक हिस्सेदारी की मांग हो रही। इसके लिए पूर्व निर्धारित कर बंटवारे के मानकों के बदलाव की अपेक्षा है। बिहार ने अपनी इस अपेक्षा से अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता वाले 16वें वित्त आयोग को अवगत भी करा दिया है।
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वित्त आयोग से बिहार की तीन बड़ी अपेक्षाएं हैं और कर बंटवारे के निर्धारित तीन मानकों में परिवर्तन का आग्रह भी। वेटेज में परिर्वतन के साथ बिहार उन मानकों के स्थानापन्न नए पहलुओं को प्रासंगिक मान रहा। जैसे कि जनसंख्या के बजाय जनसंख्या घनत्व। पनगढ़िया को बताया गया है कि बिहार के विकास में जनसंख्या का अत्यधिक दबाव बड़ी बाधा है।
उल्लेखनीय है कि 14वें वित्त आयोग तक 1971 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या के लिए महत्व दिया जाता था, लेकिन 15वें वित्त आयोग में उसे समाप्त कर दिया गया। राज्यों द्वारा अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए किए गए प्रयासों को पुरस्कृत करने के लिए जनसांख्यिकीय प्रदर्शन मानदंड की शुरुआत हुई।
कम प्रजनन अनुपात वाले राज्यों को इस मानदंड पर उच्च अंक मिल रहे। उच्च कर संग्रह दक्षता वाले राज्यों को पुरस्कृत करने के लिए मानदंड के रूप में कर प्रयास का उपयोग किया गया है।
कम आय वालों को मजबूत करने की कोशिश
आय में असमानता पर बिहार का इसीलिए विशेष जोर है। राज्यों के बीच समानता बनाए रखने के लिए कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों को अधिक हिस्सा मिल रहा। कुछ इसी दृष्टिकोण से बहुआयामी गरीबी सूचकांक को मानक बनाने की अनुशंसा हुई है। गरीबी उन्मूलन में बिहार ने अच्छी उपलब्धि दर्ज कराई है और इसके लिए नीति आयोग सराहना भी कर चुका है।
बहरहाल, केंद्र और राज्यों के बीच साझा किए जाने वाले करों में निगम कर, आयकर, आइजीएसटी हैं। इनका विभाजन वित्त आयोग की अनुशंसा पर होता है। राज्यों को केंद्रीय करों में हिस्सा के अलावा सहायता अनुदान भी मिलता है। 15वें वित्त आयोग की समय-सीमा 2025-26 के साथ समाप्त हो जानी है। उसके बाद अगले पांच वित्तीय वर्ष के लिए 16वें वित्त आयोग की अनुशंसाएं प्रभावी होंगी।
15वें वित्त आयोग की अनुशंसा पर विभाज्य पूल (ऊर्ध्वाधर हस्तांतरण) में राज्यों का हिस्सा 41 प्रतिशत है। राज्यों के बीच वितरण (क्षैतिज हस्तांतरण) विभिन्न मानदंडों पर आधारित है। क्षैतिज हस्तांतरण में बिहार सहित हिंदी भाषी राज्यों को दक्षिणी-पश्चिमी राज्यों की तुलना में अधिक लाभ है। अगर विभाज्य पूल की हिस्सेदारी बढ़ जाती है तो यह राशि पर्याप्त हो जाएगी। बिहार का यही मानना है।
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