नीतीश कैबिनेट में बना 'मास्टरप्लान', केंद्र के पाले में डाली आरक्षण की 'गेंद', समझें नौवीं अनुसूची और कोर्ट में चैलेंज का गणित
Bihar Reservation Bill नीतीश कैबिनेट में जबरदस्त मास्टरप्लान बनाया गया है। आरक्षण बिल को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए चर्चा की गई ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, पटना। बिहार में लागू हुए आरक्षण बिल को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजने का प्रस्ताव स्वीकृत किया जा चुका है। नौवीं अनुसूची शामिल होने पर आरक्षण नीति को कोर्ट में चैलेंज नहीं की जा सकेगा।
कैबिनेट ने दो प्रस्ताव स्वीकृत किए हैं। पहले एजेंडा में सीएम नीतीश कुमार को बिहार में एससी/एसटी, ईबीसी और ओबीसी के लोगो को 15 फीसदी आरक्षण बढ़ाने को लेकर धन्यवाद दिया गया है। दूसरे एजेंडा में बिहार को स्पेशल स्टेटस देने का प्रस्ताव भी स्वीकृत किया गया है।
संविधान की नौवीं अनुसूची क्या है?
इसे संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा जोड़ा गया था। संविधान की नौवीं अनुसूची केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची है जिसे न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती है। यही वजह है कि लंबे समय से आरक्षण से जुड़े मुद्दों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठती रहती है।
बिहार में 75 फीसदी आरक्षण लागू
बिहार में सरकार ने आरक्षण की सीमा को 15 फीसदी बढ़ा दिया है। अब 75 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। नीतीश सरकार ने इसे लेकर गजट प्रकाशित कर दिया है। बिल को लागू किया जा चुका है।
कहा जा सकता है कि अब शिक्षण संस्थानों और नौकरी में अनुसूचित जाति/जनजाति, ईबीसी और ओबीसी को 75 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। पहले 60 फीसदी आरक्षण मिलता था।
9 नवंबर को दोनों सदनों में हुआ पारित
इस बिल को विपक्षी पार्टी बीजेपी का भी सपोर्ट मिला है। बिहार सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान आरक्षण संशोधन विधेयक 2023 पेश किया था। 9 नवंबर को इसे दोनों सदन से पास किया गया था। इसके बाद दिल्ली से लौटते ही राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने बिल पर मुहर लगा दी।

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