Move to Jagran APP

Bihar Politics: 10 सांसदों को लेकर सांसत में NDA-JDU, नाराजगी बढ़ने से लेकर पत्ता कटने का भी सता रहा डर

Lok Sabha Elections 2024 चुनावी घोषणा के बाद टिकट बांटने की प्रक्रिया और तेज हो गई है। एनडीए ने हर क्षेत्र में प्रत्याशियों को लेकर एक सर्वे कराया है। इस हिसाब से राजग को यह जानकारी मिल चुकी है कि किस कैंडिडेट को हार का सामना कर पड़ सकता है। फिर नाराजगी की वजह से टिकट काटने में मुश्किल हो रही है।

By Arun Ashesh Edited By: Mukul Kumar Published: Mon, 18 Mar 2024 01:31 PM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2024 01:31 PM (IST)
बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी

राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar Political News In Hindi नेतृत्व के पास चुनिंदा सांसदों के बारे में पक्की सूचना है कि मैदान में इनकी जीत मुश्किल है। फिर भी नाराजगी के डर से ऐसे सांसदों को बेटिकट करने का निर्णय नहीं हो रहा है। बड़े रूप में यह संकट राजग नेतृत्व (NDA) के समक्ष है।

loksabha election banner

राजग में भी भाजपा और जदयू (JDU) नेतृत्व इस संकट से अधिक जूझ रहा है। इसके दो अन्य घटक-लोजपा रा और रालोजपा का संकट अलग है। इसका नेतृत्व अभी आपस में ही दो-दो हाथ करने पर तुला हुआ है।

भाजपा और जदयू ने अपने सांसदों की जीतने की संभावना का सर्वे कराया है। इसके परिणाम की अनुशंसा यह है कि दोनों दलों के कम से कम दस सांसद बेटिकट किए जाएं।

भाजपा और जदयू के सांसदों की कुल संख्या 33

दलों के सर्वे तीन आधार पर किए गए हैं। एक-पक्की जीत। दो-बॉर्डर लाइन। तीन-पक्की हार। पहली श्रेणी के सांसदों के टिकट पर कोई संकट नहीं है। भाजपा और जदयू के सांसदों की कुल संख्या 33 है। इनमें से 12 पहली श्रेणी के हैं। 11 बॉर्डर लाइन वाले हैं।

यानी पहले की तुलना में कुछ अधिक मेहनत करनी होगी, तब जीत भी हो सकती है। तीसरी श्रेणी के 10 सांसद हैं, जिन्हें मैदान में फिर से भेजना खतरे को आमंत्रण देना है। जाति और क्षेत्र के समीकरण के अलावा दलों के शीर्ष नेतृत्व के प्रति अगाध समर्पण ऐसे सांसदों को टिकट देने से मना करने की सर्वे की अनुशंसा को लागू करने से रोक रहा है।

कारकाट में आएगी ये समस्या

ये सांसद सवर्ण हैं और अति पिछड़े भी। भाजपा और जदयू-दोनों इन सांसदों को साफ-साफ मना नहीं कर पा रहे हैं। अपवाद में सीतामढ़ी है। पिछली बार जदयू के टिकट पर सुनील कुमार पिंटू जीते थे। चुनाव की घोषणा से बहुत पहले जदयू ने विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर को वहां से उम्मीदवार घोषित कर दिया।

पिंटू भाजपा के हैं और अगस्त 2022 में जब जदयू ने राजग से नाता तोड़ लिया था, वह भी व्यावहारिक रूप से जदयू से अलग हो गए थे। काराकाट ऐसी दूसरी सीट हो सकती है, जिसके जदयू सांसद को तालमेल के कारण बेटिकट होना पड़ सकता है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा यहां से चुनाव लड़ेंगे।

ललन सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए छोड़ा पद

बिहार में भले ही राजग लोकसभा की सभी 40 सीटों पर जीत का दावा कर रहा हो, मगर उसके घटक चुनाव को पूरी गंभीरता से ले रहे हैं। गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जदयू के मुंगेर के सांसद राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दिया।

किशनगंज, लोकसभा की वह सीट है, जिसपर 2019 के लोकसभा चुनाव में राजग की हार हुई थी। इस समय किशनगंज भाजपा और जदयू के बीच फुटबाल बना हुआ है।

जदयू को 17 के बदले जिन 16 सीटों पर लड़ने के लिए कहा जा रहा है, उनमें किशनगंज भी है। वहीं, जदयू नेतृत्व का आग्रह है कि किशनगंज को भाजपा अपने खाते में ही रखे।

भाजपा की कठिनाई यह है कि बार-बार हार के कारण किशनगंज के लिए उसके पास कोई साहसी उम्मीदवार नहीं बचा है। यही स्थिति जदयू की भी है।

यह भी पढ़ें-

Tejashwi Yadav: किन सीटों पर रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं तेजस्वी? मिल गया जवाब, कांग्रेस-वाम दल की ये है इच्छा

'अटल बिहारी वाजपेयी कितना...', चुनाव से पहले शत्रुघन सिन्हा का BJP पर हमला; नए बयान से मचेगा सियासी घमासान


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.