'आम है खास' तभी तो गालिब ने कहा था - गधे हैं वे जो आम नहीं खाते, जानिए क्यों?
आम एक एेसा फल है, जो सभी को संभवत : पसंद आता ही है। उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब को आम बहुत पसंद था। उनका मानना था कि शायद ही कोई एेसा व्यक्ति हो जिसे आम पसंद ना हो।
पटना [काजल]। उर्दू के महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के दोस्त और साथी शायर आम के प्रति उनके झुकाव के बारे में नहीं जानते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि एक गधा आम के ढेर तक गया और उसे सूंघ कर वापस लौट आया। यह देखकर मिर्जा गालिब के एक शायर दोस्त ने कहा, "देखा, गधे भी आम नहीं खाते।" ग़ालिब ने जब यह सुना तो उन्होंने हंसते हुए इसका जवाब दिया, "बिल्कुल, केवल गधे ही आम नहीं खाते।"
सूफ़ी कवि अमीर ख़ुसरो ने फ़ारसी काव्य में आम की खूब तारीफ़ की थी और इसे फ़क्र-ए-गुलशन नाम दिया था।
और जानकारियों के आधार पर पता चलता है कि 632 से 645 ईस्वी में भारत की यात्रा पर आए ह्वेनसांग पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के बाहर के लोगों से आम का परिचय कराया था।
आम का पेड़ और भागलपुर का धरहरा
बिहार के भागलपुर ज़िले के धरहरा गांव में 200 सालों से एक परम्परा चली आ रही है, जिसके अनुसार, लड़की पैदा होने पर उस परिवार को 10 आम के पेड़ लगाने होते हैं। एेसा इसलिए कि यहां दहेज के कारण लड़की के जन्म लेने पर उसकी हत्या कर दी जाती थी। आम का पेड़ लगाने का यह विचार एक मिसाल है जो बच्ची की सुरक्षा और उसके भविष्य की चिंताओं को कम करती है।
गौतम बुद्ध को आम का बगीचा बहुत पसंद था, इसीलिए बौद्ध कलाकृतियों में इसकी भरमार है। एक शताब्दी ईसा पूर्व के सांची स्तूप के द्वार पर एक कलाकृति है जिसमें एक यक्षी फलों से लदी एक डाल से लिपटी हुई है।
मुगल बादशाहों का पसंदीदा फल
आम सभी मुग़ल बादशाहों का पसंदीदा था। उनके दरबार में जगह-जगह से किस्म-किस्म के आम लोग लेकर आते थे। अपने आम पसंदी के कारण उन्होंने आम की फसल को विकसित करने की कोशिशें की थीं और भारत में आम की अधिकांश विकसित क़िस्मों का श्रेय उन्हीं को जाता रहा है।
अकबर महान (1556-1605 ईस्वी) को आम इतना पसंद था कि उन्होंने बिहार के दरभंगा जिले में एक लाख आम के पेड़ों का बग़ीचा लगवाया था। उनके आईने-अकबरी (1509 ईस्वी) में भी आम की क़िस्मों और उनकी ख़ासियतों के बारे में काफ़ी कुछ लिखा मिलता है।
मुगल बादशाहों में बहादुर शाह ज़फ़र के पास भी लाल क़िले में आम का एक बड़ा बग़ीचा था, जिसका नाम था हयात बख़्श, जिसमें कुछ मशहूर किस्म के आम उगाए जाते थे। बादशाह को आम से खासा लगाव था।
आम के फायदे और उसकी विशेषताएंआम में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटैशियम और विटामिन ए तथा सी पाया जाता है। पोषक तत्वों से भरपूर आम का धनी यह जब फल बाज़ार में आता है, तो अपनी तमाम क़िस्मों और स्वादों से जी को ललचाने लगता है। इसका शाही पीलापन बाकी सभी फलों को फीका कर देता है। आम अपनी बेहतरीन मिठास के साथ स्वादिष्ट, गूदेदार और रसदार फल है।
प्राकृतिक दृष्टि से कच्चा आम ठंडा व शुष्क होता है जबकि पक्का आम गर्म एवं शुष्क होता है। पका आम खाने से गुर्दा मज़बूत होता है और यौन शक्ति में वृद्धि करता है, आम खाने से त्वचा कोमल होती है।
आम का प्रयोग सांस, खांसी, बवासीर और दस्त की समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। पका आम खाने से रक्त का संचार सही और मज़बूत होता है। आम खाने से छींक का आना कम हो जाता है।
आम के पत्तों के काढ़े या जोशान्दे का प्रयोग बोखार और ज़ुकाम के उपचार के लिए किया जाता है। आम खाली पेट में नहीं खाना चाहिए।
ताज़ा और खट्टा आम खाने से पित्ताशय की समस्या के उपचार में सहायता मिलती है और इससे भूख भी बढ़ती है। दमे के उपचार में आम की गुठली का प्रयोग किया जाता है।
4000 साल से इसे उगाया जाता रहा है
सस्कृत साहित्य में इसका ज़िक्र आम्र के नाम से होता है और 4000 साल से इसे उगाया जाता रहा है। अंग्रेज़ी भाषा का मैंगो तमिल शब्द मंगाई से आया है। असल में पुर्तगालियों ने तमिल से लेकर इसे मंगा के रूप में स्वीकार किया, जहां से अंग्रेज़ी का शब्द मैंगो आया।
धार्मिक और सांसकृतिक रिवाज में आम
भारत ऐसी लोककथाओं का धनी देश है, जिनमें अक्सर सांस्कृतिक रिवाज़ और धार्मिक रस्में गुथीं होती हैं.
आम और आम के पेड़ के मिथक से जुड़ी कई सारी कहानियां हैं। भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत में आम के ज़िक्र आते हैं।
आम के पेड़ का कई जगह कल्पवृक्ष, हर इच्छा पूरी करने वाले के रूप में वर्णन मिलता है। इस पेड़ की छाया के अलावा इससे कई धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं जैसे, राधा कृष्ण का पौराणिक नृत्य, शिव और पार्वती का विवाह आदि।
प्राचीन संस्कृति साहित्य में आम के पेड़ के प्रति लगाव
सूर्य की बेटी सूर्या बाई एक बुरी आत्मा के अत्याचार से बचने के लिए स्वर्णिम कमल में बदल जाती है। लेकिन जब उस देश के राजा को उस कमल से प्यार हो जाता है तो इस बात से बुरी आत्मा क्रोधित हो जाती है और वो उस फूल को जला डालती है।
अच्छाई पर बुराई की तब जीत होती है जब फूल की राख से एक विशाल आम का पेड़ निकल आता है और पेड़ से गिरे एक पके आम से सूर्या बाई निकल आती है। राजा उसे देखते ही पहचान जाता है और दोनों का मिलन हो जाता है।
संस्कृत साहित्य में आम का ज़िक्र आता है
आम को अलौकिक प्रेम का प्रतीक बताया गया है - गणेश और भगवान शिव से जुड़ा एक और दिलचस्प वाक़या है। शिव और पार्वती को ब्रह्मा के बेटे नारद ने एक स्वर्णिम फल दिया था और कहा था कि इसे केवल एक व्यक्ति ही खाए। अब दोनों बेटों में किसे यह फल दिया जाए, इसे लेकर शिव और पार्वती शर्त रखते हैं कि जो सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड के तीन चक्कर लगाकर आएगा उसे ये फल दिया जाएगा।
स्मार्ट गणेश ने अपने मां बाप के तीन चक्कर लगाए और ये कहते हुए अपने भाई कार्तिक से पहले पहुंच गए कि, "मेरे लिए मेरे मां बाप ही ब्रह्मांड हैं।" एक और कहानी है, हनुमान से जुड़ी हुई, जो रावण के बग़ीचे से गुठली ले आए थे। इसलिए भारत में आम प्रेम का प्रतीक हो बन गया है।
लोक मान्यता
शादियों में आम के पत्ते लटकाए जाते हैं। इस रस्म से माना जाता है कि जोड़े को अधिक बच्चे होंगे। गांवों में यह मान्यता है कि जब जब आम की डाली में नए पत्ते आते हैं, तब तब लड़का पैदा होता है। पड़ोसियों को जन्म की सूचना देने के लिए दरवाज़ों को आम के पत्तों से सजाया जाता है।भारतीय डिज़ाइनों में कैरी और आम्बी नमूने आम से ही प्रेरित हैं। आम्बी नमूना स्थापत्य कला, वस्त्र, आभूषण और बहुत सारी चीजों में इस्तेमाल किया जाता है।
माना जाता है कि पूरी दुनिया में आमों की 1500 से ज़्यादा क़िस्में हैं, जिनमें 1000 क़िस्में भारत में उगाई जाती हैं। भारत में उगाई जाने वाली कुछ लोकप्रिय क़िस्में हैं जैसे, हापुस (जिसे अल्फ़ांसो के नाम से भी जाना जाता है), मालदा, राजापुरी, पैरी, सफेदा, फ़ज़ली, दशहरी, तोतापरी और लंगड़ा।
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