सीएम नीतीश का मास्टर स्ट्रोक साबित हुई शराबबंदी, जानिए
बिहार में शराबबंदी के एक साल पूरे हो गए हैं। इसकी सफलता व सामाजिक बदलाव के नजरिए से यह नीतीश का मास्टर स्ट्रोक साबित हो रहा है। ...और पढ़ें

पटना [सद्गुरु शरण]। इत्तेफाक है कि जिस वक्त बिहार में पूर्ण शराबबंदी की पहली वर्षगांठ मनाई जा रही, ठीक उसी वक्त दो बड़े राज्यों यूपी और मध्यप्रदेश में लोग बिहार के तर्ज पर पूर्ण शराबबंदी लागू किए जाने की मांग लेकर सड़क पर उतर रहे हैं। पड़ोसी राज्य झारखंड में पहले ही यह मांग उठ चुकी है।
'नैतिक एजेंडा' की मुखर पक्षधर भाजपा के लिए अपनी शासन परिधि में इस मांग से नजर फेरना आसान नहीं है। जाहिर है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह फैसला बड़े सामाजिक बदलाव के साथ राजनीतिक नजरिए से भी उनका 'मास्टर स्ट्रोक' साबित हो रहा है।
भाजपा के संदर्भ में देखें तो उसके लिए शराबबंदी के सवाल पर यूपी सबसे बड़ा धर्मसंकट है, जहां विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व जनादेश हासिल करके पार्टी ने प्रतिष्ठित गोरक्ष पीठ के भगवा वस्त्रधारी महंत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया है। योगी के एंटी रोमियो स्क्वॉड तथा बूचड़खानों पर प्रतिबंध के फैसले हर तरफ सराहे जा रहे हैं, यद्यपि शराबबंदी अपेक्षाकृत बड़ा व कड़ा विषय है। ये देखने की बात होगी कि योगी इस मोर्चे पर किस तरह निपटते हैं।
यूपी विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले नीतीश कुमार ने लखनऊ में शराबबंदी समर्थकों की सभा को संबोधित किया था। यूपी में जदयू कार्यकर्ता सम्मेलनों में भी वह इस मुद्दे को उठाते रहे हैं।
बिहार सरकार का दावा है कि राज्य में कानून एवं शांति व्यवस्था से लेकर आम आदमी की खुशहाली तक शराबबंदी का व्यापक प्रभाव पड़ा है। खास बात यह है कि नीतीश कुमार के इस ऐतिहासिक कदम को सर्वोच्च न्यायालय और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का परोक्ष-अपरोक्ष समर्थन मिला। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके खिलाफ याचिकाओं पर दो टूक टिप्पणी की कि शराब का कारोबार किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है।
इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में सार्वजनिक सभा में कह चुके हैं कि शराबबंदी नीतीश कुमार का साहसिक फैसला है। इसके अलावा बिहार में शराब कारोबारियों को छोड़कर बाकी सभी वर्ग, खासकर हर श्रेणी की महिलाएं और बच्चे इस फैसले के मुरीद हैं। झारखंड सरकार घोषणा कर चुकी है कि वहां चरणबद्ध ढंग से शराबबंदी लागू की जाएगी।
तय है कि जदयू अगले लोकसभा चुनाव में शराबबंदी को मुद्दा बनाने की हर संभव कोशिश करेगा। यह मुद्दा महिलाओं को खासतौर पर आकृष्ट कर रहा है क्योंकि परिवार के मुखिया या अन्य सदस्यों की शराबखोरी का सर्वाधिक खामियाजा महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है। बिहार में महिलाओं की मांग पर ही पूर्ण शराबबंदी लागू की गई थी।
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यह भी माना जाता है कि बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के शराबबंदी संबंधी आश्वासन ने सभी वर्गों की महिलाओं को उनका समर्थक बना दिया था। इस पृष्ठभूमि में अगले लोकसभा चुनाव से पहले सभी दलों, खासकर भाजपा को आकलन करना होगा कि शराबबंदी का मुद्दा मतदाताओं को किस हद तक प्रभावित कर सकता है।
बिहार में पांच अप्रैल को शराबबंदी का एक साल पूरा हो रहा है। इससे पहले ही नीतीश कुमार ने पूर्ण नशामुक्ति की मुहिम छेड़ दी है। उनकी यह मांग, कि यदि केंद्र सरकार महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के प्रति सचमुच गंभीर है तो पूरे देश में शराबबंदी लागू करे, उनकी भावी रणनीति का साफ संकेत है।

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