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    लालू ने पूछा- मित्रों, क्या हत्यारोपी CM को पद पर बने रहने का अधिकार है!

    By Ravi RanjanEdited By:
    Updated: Wed, 02 Aug 2017 11:43 PM (IST)

    लालू ने नीतीश पर हमला करते हुए कहा कि इसे आगे करने के लिए मैंने पार्टी के कई पुराने नेताओं से भी संबंध ख़राब कर लिए थे। अब चारों तरफ़ से घिर चुका है तो झूठ का सहारा ले रहा है।

    लालू ने पूछा- मित्रों, क्या हत्यारोपी CM को पद पर बने रहने का अधिकार है!

     पटना [जेएनएन]। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव अब नीतीश कुमार पर पूरी तरह आक्रामक हो चुके हैं। पहले तो लालू यादव ने प्रेस कांफ्रेंस कर नीतीश कुमार पर निशाना साधा। नीतीश कुमार को राजनीति का पलटूमार बताते हुए कहा कि ये सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे। जिस शरद यादव ने नीतीश कुमार को आगे बढ़ाया, आज उनकी भी कद्र नहीं की जा रही है। साथ ही अपने स्वार्थ के लिए मेरे बेटों को बलि देने की कोशिश की।

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    लालू यादव यहीं नहीं रूके। ट्वीट कर पूछा कि मित्रों, क्या हत्या जैसे संगीन जुर्म में आरोपित मुख्यमंत्री को कुर्सी पर बैठने का नैतिक अधिकार है जहाँ केस ही CM Versus State of Bihar हो? 

     नीतीश, तुम मेरे मास बेस से परेशान, हैरान और अतिमहत्वाकांक्षी होने के कारण ही तुम मंडल छोड़ कमंडल पकड़ लिए थे। मास बेस की बात करने वाले नीतीश कुमार ने अपनी अलग राह पकड़ने की शुरुआत ही अपनी जातीय रैली "कुर्मी चेतना रैली" से ही की थी। हिम्मत है तो इसे नकारें, मैंने तो अपने जीवन में मैंने कभी किसी यादव रैली में भाग नहीं लिया।

    इस अवसरवादी व्यक्ति ने मंडल के दौर में भी भाजपाईयो और आरएसएस के इशारे पर अलग राह पकड़कर ओबीसी एकता और विशेषकर बिहार में दलितों और पिछड़ों की गोलबंदी को रोकने का प्रयास किया था। यह उस वक़्त सामाजिक न्याय के रथ को रोकना चाहता था।

    नीतीश कुमार बताओ मंडल कमीशन लागू करवाने में तुम्हारा क्या रोल था? हमने और शरद यादव जी ने इसके लिए संघर्ष किया और मंडल कमीशन लागू करवाने के लिए क्या-क्या किया तुम क्या जानते हो? मुझे कहता है मेरा मास बेस नहीं है, अरे मेरे मास बेस से परेशान और अतिमहत्वाकांक्षी होने के कारण ही तुम मंडल छोड़ कमंडल थाम लिए थे। बात करता है। 

     नीतीश बताओ मंडल कमीशन लागू करवाने मे तुम्हारा क्या रोल था? मैंने व शरदजी ने संघर्ष किया इसे लागू करवाने के लिए क्या-2 किया तुम क्या जानते हो 

    नीतीश ने मंडल और सामाजिक न्याय के दौर में भी भाजपाईयो के इशारे पर अलग राह पकड़कर दलितों और पिछड़ों की गोलबंदी रोकने का प्रयास किया था। 

    नीतीश ने अलग शुरुआत ही "कुर्मी चेतना रैली" से की थी।हिम्मत है तो इसे नकारें, मैंने तो अपने जीवन में कभी किसी यादव रैली में भाग नहीं लिया

    नीतीश को राजनीति में आगे बढ़ाने के लिए मैंने क्या-क्या नहीं किया और यह कहता कि इसने बनाया। ख़ुद ही पढ़िए

    नीतीश कहता है कि उसने मुझे नेता बनाया। ये तो झूठ की सभी मर्यादाएँ और बाँध तोड़ रहा है। मैं 1970 में पटना यूनिवर्सिटी में जनरल सेक्रेटरी था, दो साल में पटना विश्वविधालय का अध्यक्ष बना।।उससे पूर्व में delegates नॉमिनेट कर अध्यक्ष बनाते थे।

    मैंने लड़ाई लड़ी कि पटना विश्वविधालय का अध्यक्ष नॉमिनेट नहीं होना चाहिए बल्कि इसके लिए खुला चुनाव होना चाहिए ताकि वंचित और उपेक्षित वर्गों के छात्र अपना नेता चुने।

    वंचित वर्गों के छात्रों के सहयोग से मैं पटना विश्वविधालय का अध्यक्ष बना। उस वक़्त नीतीश को शायद ही इसकी कक्षा के बाहर कोई जानता हों। इसका कहीं कोई अता-पता नहीं था।

    1974 के छात्र आंदोलन में जयप्रकाश नारायण जी ने मुझे छात्र आंदोलन का संयोजक घोषित किया। उसी दौरान छात्रों की सहमति से हमने जेपी जी को लोकनायक की उपाधि दी और मुझे छात्र आंदोलन का संयोजक बनाने के लिए लोकनायक का धन्यवाद किया।

    1977 में महज़ 29 वर्ष की उम्र में देश का सबसे कम उम्र का सांसद बनकर मैंने जनता पार्टी की सरकार में छपरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1985 में नीतीश पहली बार विधायक बना तब तक मैं एक बार सांसद और विधायक रह चुका था और उससे पहले नीतीश दो चुनाव हार चुका था।

    ये दो-दो चुनाव हारने के बाद गिड़गिड़ाता हुआ मेरे पास आया था और दावा करता है इसने मुझे नेता बनाया। नीतीश अपनी अंतरात्मा से पूछे इसे बाढ़ से सांसद बनाने के लिए मैंने इसके लिए क्या-क्या नहीं किया?

    इसे आगे करने के लिए मैंने पार्टी के कई पुराने नेताओं से भी संबंध ख़राब कर लिए थे। अब चारों तरफ़ से घिर चुका है तो झूठ का सहारा ले रहा है।

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