राजद के गढ़ में कुशवाहा का इम्तिहान; बाजपट्टी, मधुबनी, उजियारपुर, सासाराम और दिनारा पर होगी कड़ी जंग
एनडीए में सीट बंटवारे के बाद कुशवाहा को मिली सीटें चुनौतीपूर्ण हैं, जहाँ राजद का मजबूत जनाधार है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा 2025 में बाजपट्टी, मधुबनी, उजियारपुर, सासाराम, दिनारा और पारू से चुनाव लड़ेगी। इन सीटों पर राजद की पकड़ मजबूत है और कुशवाहा को जीत के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कुशवाहा को संगठनात्मक ढांचे से भी जूझना होगा।

उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता को चुनाव मैदान में उतारा
सुनील राज, पटना। एनडीए में सीट बंटवारे के बाद नाराज कुशवाहा का गुस्सा भले ही शांत हो गया हो और जो सीटें उन्हें बंटवारे के बाद मिली उससे उन्होंने संतोष कर लिया हो परंतु, कुशवाहा को जिन सीटों पर दांव लगाने का जिम्मा दिया गया है वे सीटें न केवल राजनीतिक रूप से संवेदनशील हैं, बल्कि ज्यादातर सीटों पर राजद का मजबूत जनाधार है।
कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा 2025 में छह सीटों पर किस्मत आजमाने वाली है। ये सीटें हैं बाजपट्टी, मधुबनी, उजियारपुर, सासाराम और दिनारा और पारू। बची हुई एक मात्र सीटें पारू जो इस बार कुशवाहा के खाते में आई है वहां से भाजपा ने पिछली बार जीत दर्ज कराई थी। जाहिर है राजद के गढ़ में जीत के नजदीक पहुंचने के लिए कुशवाहा को पहाड़ चढ़ने जैसी मेहनत करनी होगी।
बिहार की बाजपट्टी सीट पर यादव-मुस्लिम और सवर्ण मतदाताओं का प्रभाव है। 2020 के चुनाव में यहां राजद प्रत्याशी मुकेश यादव ने सहज अंतर से जीत हासिल की थी। कुशवाहा की पार्टी के लिए इस क्षेत्र में संगठन कमजोर है, जबकि राजद के कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर सक्रिय हैं। मधुबनी सीट पर भी राजद और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला रहता आया है। हालांकि पिछली बार इस सीट पर राजद और वीआइपी के बीच मुकाबला हुआ और जीत राजद उम्मीदवार समीर कुमार महासेठ के खाते में आई।
उजियारपुर, जो समस्तीपुर जिले में आती है, एनडीए और राजद दोनों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। यहां कुशवाहा जाति के मतदाता प्रभावशाली हैं, लेकिन यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कहीं अधिक है। ऐसे में यहां भी राजद का पलड़ा भारी नजर आता है। पिछली बार राजद उम्मीदवार आलोक मेहता ने जीत दर्ज कराई थी और भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा था।
बात अगर सासाराम सीट की करें तो इस सीट पर राजद और भाजपा दोनों की गहरी पैठ है। 2020 के चुनाव में सासाराम से राजद उम्मीदवार राजेश कुमार गुप्ता को जीत मिली थी और जदयू के अशोक कुमार ंिसंह का पराजय। इस इलाके में कुशवाहा को अपनी जातीय आधार पर कुछ लाभ मिल सकता है, पर संगठनात्मक कमजोरी उन्हें पीछे रख सकती है।
यहां बता दें कि इस बार सासाराम सीट से उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता को चुनाव मैदान में उतारा है। जिनकी जीत के लिए उन्हें एडी-चोटी एक करना होगा। इसके अलावा दिनारा, जो शाहाबाद क्षेत्र की अहम सीट है, पर भी राजद लंबे समय से मजबूत रहा है। यहां से पिछली बार राजद के उम्मीदवार विजय मंडल को जीत मिली थी और लोजपा उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह को मुंह की खानी पड़ी थी। यह पांच सीटें इस बार कुशवाहा के खाते में हैं।
कुशवाहा की पार्टी का मानना है कि कम सीटों पर बेहतर तैयारी के साथ उतरने से पार्टी को पहचान और विश्वसनीयता दोनों मिलेगी। परंतु बिहार की जातीय राजनीति में कुशवाहा समुदाय का वोट बैंक उतना एकमुश्त नहीं रहा, जितना कभी था। यह समुदाय अब विभिन्न दलों में बंटा हुआ है। राजद और जदयू दोनों ही दलों में इस समुदाय के नेता प्रभावी पदों पर हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उपेंद्र कुशवाहा की चुनौती सिर्फ विरोधियों से नहीं, बल्कि अपनी पार्टी के संगठनात्मक ढांचे से भी है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा अभी भी राज्यव्यापी नेटवर्क खड़ा करने में नाकाम रही है। 2015 और 2020 के चुनाव में भी कुशवाहा का प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर रहा। इस बार वे कम सीटों पर चुनाव लड़कर अपनी साख बचाने की कोशिश में हैं, पर जिन सीटों की जिम्मेदारी उन्हें दी गई है वहां से जीत का समीकरण बेहद कठिन दिखता है।
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