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    बिहार की पहचान है सिलाव का खाजा, 52 परतों वाली इस मिठाई का 200 साल पुराना है इतिहास

    Bihar News सिलाव का खाजा पूरे देश में दिलाता है बिहार को पहचान 200 साल पुराना है इस अनोखी मिठाई का इतिहास तीन पीढिय़ों ने काली साह को खाजा का पर्याय बना डाला राष्‍ट्रपति से लेकर मुख्‍यमंत्री तक चख चुके हैं इसका स्‍वाद

    By Shubh Narayan PathakEdited By: Updated: Tue, 15 Mar 2022 05:21 PM (IST)
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    सिलाव का खाजा है पूरे देश में मशहूर। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

    शिवशंकर प्रसाद, सिलाव (नालंदा)। नालंदा जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित सिलाव। यहां के खाजे की मिठास से पूरी दुनिया वाकिफ है। ऐसे में राजगीर-नालंदा का भ्रमण करने वाले पर्यटक खाजे का जायका लेना कभी नहीं भूलते। 52 परत वाले खाजे की शुरुआत यहां के ही बाशिेंदे काली साह ने करीब 200 साल पहले की थी। पहले इसे खजूरी कहा जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इसका नाम खाजा पड़ा। 200 साल बीत गए, लेकिन खाजा के स्वाद में कोई फर्क नहीं आया है। आम आदमी से लेकर खास तक को यह व्यंजन बहुत लुभाता है। आज इनकी चौथी पीढ़ी इस व्यवसाय से जुड़ी है।

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    काली साह की सिलाव में छह दुकानें

    काली साह के नाम से सिलाव में छह दुकानें है। उनकी पीढ़ी के कुल 31 लोग जीवित हैं। सबसे खास बात कि काली शाह के खानदान में कोई भी बाहर नहीं गया, लेकिन सिलाव के खाजा को जरूर बाहर तक पहुंचाया। परपोते संदीप की बहाली दरोगा में हुई, लेकिन उन्होंने अपने परदादा के व्यवसाय को ही चुना। करीब 30 लोगों का परिवार इस व्यवसाय से जुड़ा है।

    200 साल पहले हुई थी शुरुआत

    काली साह के परपोते संदीप लाल ने बताया कि करीब दो सौ साल पहले उनके परदादा काली शाह ने उनकी शुरुआत की थी। उनके तीन पुत्र थे किशुन साह, शरण साह व पन्नालाल। उस वक्त भी खाजा शुद्ध घी में बनाया जाता था। इनकी पुरानी दुकान सिलाव के खारी कुआं मोहल्ले में था । वर्तमान में वायपास रोड उस वक्त नही था। पहले बाजार वाली रोड ही मेन रोड था । उसी रोड से सभी गाडिय़ां चलती थी। बाईपास रोड से छोटी रेल गाड़ी का लाइन बिछी थी, जिसपर रेलगाडिय़ां चलती थीं।

    एक पैसे सेर बिकता था खाजा

    संदीप लाल ने बताया कि दिवंगत काली साह का मिठाई बनाने का पुश्तैनी धंधा था। दो सौ साल पहले जो खाजा बनता था उसे खजूरी कहा जाता था। उस वक्त घर मे हीं गेंहू पीस कर मैदा तैयार किया जाता था। शुद्ध घी में खाजा बनता था। उस समय एक पैसे सेर खाजा बेचा जाता था।

    सात समंदर पार पहुंचा सिलाव का खाजा

    संदीप लाल ने बताया कि यह दुकान ही उनके आजीविका का साधन है । उन्होने बताया कि आज हम टेक्नोलाजी के माध्यम से विश्व के कई देशों तक खाजा को पहुंचा रहे हैं। बता दें कि काली शाह के वंशजों द्वारा निर्मित खाजा आज आनलाइन अमेरिका, लंदन, दुबई, पाकिस्तान, स्पेन, सिंगापुर तक पहुंचाई जा रही है।

    प्राचार्य शीलभद्र ने भगवान बुद्ध को भेंट किया था खाजा

    एक किवदंती के अनुसार तत्कालीन नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचार्य शीलभद्र ने इस स्थल को खाजा नगरी के रूप मे विकसित किया था। इस स्थल पर ही भगवान बुद्ध, महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन और प्राचार्य शीलभद्र की प्रथम भेंट हुई थी। उस समय शीलभद्र ने भगवान बुद्ध का स्वागत खाजा खिलाकर किया था। तब भगवान बुद्ध ने पुछा था यह क्या है ? इसके जबाव में शीलभद्र ने कहा था कि खा-जा भगवान बुद्ध ने खाने के बाद काफी प्रशंसा की। उसी समय से इस मिठाई का नाम खाजा प्रचलित हो गया।

    देश के अलावे विदेशों में भी हुआ था खाजे का प्रदर्शन

    सिलाव मे बनाये गये खाजा का प्रदर्शन सबसे पहले वर्ष 1986 में अपना महोत्सव नई दिल्ली में हुआ था। कालीसाह के वंशज संजय कुमार को वर्ष 1987 मे मारीशस जाने का मौका मिला। मारीशस मे आयोजित सांग महोत्सव में मिठाई मे खाजा को सर्वश्रेष्ठ मिठाई का दर्जा मिला। 1990 में दूरदर्शन के लोकप्रिय सांस्कृतिक सीरियल सुरभि, वर्ष 2002 में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन व व्यापार मेला नई दिल्ली के अलावे अन्य कई मौके पर खाजे ने धूम मचाई।

    पूर्व राष्ट्रपति से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति तक ने चखा खाजे का स्वाद

    पूर्व राष्ट्रपति रचना पाटिल, एपीजे अब्दुल कलाम, वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, सीएम नीतीश कुमार, बाबा रामदेव, हेमा मालिनी, देवा आनंद, अनुराधा पॉडवाल, शारदा सिन्हा, पंकज उदास, अनुप जलोटा, मुकेश खन्ना, प्रिती साकिया, देवी, शत्रुघन सिन्हा और गोविंदा ने स्वाद चखा।

    12 पारंपरिक व्यंजन में शामिल होगा खाजा

    संदीप लाल ने बताया कि भारत सरकार दवारा मेक इंडिया के तहत भारत के 12 पारंपरिक व्यजंन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश किए जाने की योजना है। सिलाव का खाजा भी शामिल है।