Bihar Politics: राजनीति में बिना आधार टिकाऊ नहीं खाकी वर्दी की हनक, कौन हुआ पास और कौन हुआ फेल?
बिहार की राजनीति में पुलिस अधिकारियों का राजनीतिक करियर ज़्यादा सफल नहीं रहा है। कुछ पूर्व पुलिस अधिकारी जैसे सोमप्रकाश सिंह और रवि ज्योति कुमार चुनाव जीते ज़रूर लेकिन वे दोबारा जनता का विश्वास जीतने में नाकाम रहे। वहीं ललित विजय और निखिल कुमार जैसे अधिकारियों ने राजनीति में सफलता हासिल की। गुप्तेश्वर पांडेय और आशीष रंजन जैसे कुछ अधिकारियों को हार का सामना करना पड़ा।

सनोज पांडेय, औरंगाबाद। बिहार की राजनीति में खाकी वर्दी की हनक टिकाऊ नहीं रही है। टिके वही, जिनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि रही या जिताऊ गठबंधन से टिकट पाने में सफल रहे। अधिकतर एक बार विश्वास जीतने के बाद दोबारा चुनावी मैदान में टिक नहीं पाते हैं। या यूं कहें कि अपराध के अनुसंधान में दक्षता के बावजूद राजनीति के दांव-पेच में उलझ जाते हैं।
उदाहरण, दो पुलिस पदाधिकारी हैं, जिन्होंने खाकी छोड़ अपनी-अपनी कर्मभूमि में खादी पहनी, जनता का एक बार आशीर्वाद भी मिला, परंतु दोबारा बहुमत की नजरों से उतर गए। वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में ओबरा के थानाध्यक्ष रहे सोमप्रकाश सिंह एवं 2015 में राजगीर मलमास मेला के प्रभारी रहे इंस्पेक्टर रवि ज्योति कुमार नौकरी से इस्तीफा देकर चुनाव लड़े थे।
सोमप्रकाश ने ओबरा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव जीते। 2010 में सोमप्रकाश को 36,816 मत मिले थे, उन्होंने जदयू के प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को 802 मतों से पराजित किया था। वह रोहतास के मूल निवासी हैं, कर्मभूमि पर खाकी की हनक दिखाकर लोकप्रिय हुए थे।
पांच वर्षों में खादी से जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे तो वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में मात्र 10,114 मत मिले और चौथे स्थान पर खिसक गए। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में स्वराज पार्टी का गठन कर ओबरा से मैदान में उतरे तो मात्र चार प्रतिशत मत (7,035) पर सिमट गए।
2015 में जदयू से बने विधायक, 2020 में हुए पराजित
नालंदा के राजगीर मलमास मेला के प्रभारी, बिहार व लहेरी थानाध्यक्ष रहे पुलिस इंस्पेक्टर रवि ज्योति कुमार नौकरी से इस्तीफा देकर 2015 में जदयू के टिकट पर विधानसभा पहुंच गए। सुरक्षित राजगीर विधानसभा क्षेत्र में हुए मतदान का 41.75 प्रतिशत हासिल किया।
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव के पहले राजनीति समझ नहीं सके। जदयू ने महागठबंधन से निकलकर पुन: भाजपा से गठजोड़ किया तो सीट परंपरागत तौर पर भाजपा के खाते में चली गई। स्वयं के चुनाव लड़ने की संभावना खत्म होते देख कांग्रेस का दामन थाम लिया।
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस ने सिटिंग विधायक देख टिकट भी दे दिया, परंतु जनता ने नकार दिया। कुल मतदान का मात्र 32.41 प्रतिशत ही बटोर सके। 16,048 मतों के बड़े अंतर से जदयू के कौशल किशोर से पराजित हो गए।
यह रहे सफल:
- ललित विजय : पूर्व आईजी ललित विजय ने राजनीति में सफलता पाई और मंत्री भी बने।
- निखिल कुमार : दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे निखिल कुमार को राजनीति विरासत में मिली है। अनुग्रह नारायण सिंह के पोते व पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा के पुत्र हैं। वह सांसद व राज्यपाल तक बने।
- सुनील कुमार : सुनील कुमार बिहार पुलिस ने डीजी स्तर के पदाधिकारी रहे। पिता व भाई का राजनीतिक विरासत है। वह विधायक और मंत्री बने।
कम मिला जनता का आशीर्वाद
- डीपी ओझा : पूर्व डीजीपी डीपी ओझा ने बेगूसराय से चुनाव लड़ा, लेकिन बुरी तरह हार गए।
- गुप्तेश्वर पांडेय : पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने वीआरएस लेकर चुनाव लड़ने की तैयारी की, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला।
- आशीष रंजन : पूर्व डीजीपी आशीष रंजन कांग्रेस के टिकट पर नालंदा से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।
- नुरुल होदा : पूर्व आईपीएस अधिकारी नुरुल होदा वीआइपी पार्टी में शामिल हुए हैं, अभी राजनीति में परख बाकी है।
इनकी पारी का है इंतजार:
- शिवदीप लांडे : आईपीएस शिवदीप लांडे ने ‘हिंद सेना’ नामक पार्टी बनाई। उनकी राजनीतिक पारी अभी शुरू ही हुई है।
- करुणा सागर : तमिलनाडु कैडर के आईपीएस गत वर्ष राजद में शामिल हुए। अभी चर्चा से दूर हैं।
- आनंद मिश्रा : आपीएस आनंद मिश्रा पिछले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय बक्सर से मैदान में उतरे और चाैथे नंबर पर रहे। चुनाव के बाद जनसुराज के लिए काम कर रहे थे, अब भाजपा की सदस्या ग्रहण कर बक्सर की किसी सीट से ताल ठोकने की तैयारी में हैं।
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