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    Bihar Assembly Elections: फातुहा विधानसभा सीट में जाति के अलावा इन मुद्दों पर पड़ेगे वोट

    Updated: Mon, 22 Sep 2025 12:01 PM (IST)

    फतुहा विधानसभा क्षेत्र 1957 में बना जो पटना का हिस्सा है। यहां गंगा पुनपुन और कभी गंडक नदी का संगम था। राजद ने यहां सबसे ज़्यादा बार जीत हासिल की है। जातिगत समीकरण महत्वपूर्ण है जहां मुस्लिम यादव कोइरी और कुर्मी मतदाता निर्णायक हैं। रोजगार बाढ़ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ यहां के मुख्य मुद्दे हैं जिनका समाधान ज़रूरी है।

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    फतुहा में जातिगत समीकरण के साथ उद्योग व रोजगार का मुद्दा।

    जागरण संवाददाता, पटना। फतुहा विधानसभा क्षेत्र 1957 में अस्तित्व में आया। यह विस्तृत पटना यानी सेटेलाइट शहर में शामिल है। गंगा और पुनपुन के संगम पर बसे फतुहा को त्रिवेणी भी कहा जाता है। इसका कारण है कि कभी यहां गंडक भी मिलती थी। बाद में नदी ने रास्ता बदल लिया।

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    नदी ने भले रास्ता बदल लिया, लेकिन यहां के मतदाता जल्दी नहीं बदलते। यही कारण है कि जो दल या उम्मीदवार मतदाता के मन में बसते हैं, उन्हें लंबे समय तक आशीर्वाद मिलता रहता है।

    यहां हुए 18 चुनावों में सबसे ज्यादा राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवारों ने पांच बार जीत दर्ज की है। जनता दल यूनाइटेड तीन, कांग्रेस व जनसंघ (अब बीजेपी) के अलावा जनता पार्टी व जनता दल ने दो-दो बार तथा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी एवं लोक दल को एक-एक बार जीत मिली है। इसे फतुहां और फतुवा के नाम से भी जाना जाता है।

    यहां औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो रहा है। यह सर्वधर्म का केंद्र भी है। पौराणिक मान्यता यह भी है यहां भगवान राम, कृष्ण व बुद्ध भी पहुंचे थे। पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र में आनेवाले इस विधानसभा सीट पर राजद और जदयू के बीच टक्कर होती रही है।

    जाति फैक्टर अहम 

    मुस्लिम, यादव, कोइरी और कुर्मी के अलावा ब्राह्मण और पासवान वोटरों की संख्या भी अच्छी-खासी है। वैसे तो यह सामान्य सीट है, लेकिन 18 प्रतिशत से ज्यादा अनुसूचित जाति के मतों ने कई बार निर्णायक भूमिका निभाई है।

    भले यह औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित है, लेकिन यहां जातिगत फैक्टर अहम होता है। वर्ष 2005 के बाद से जदयू और राजद ने बारी-बारी से लगातार तीन बार जीत दर्ज की।

    बिहार सरकार में मंत्री रहे डॉ. रामानंद यादव पिछले तीन विधानसभा चुनावों से जीत हासिल करते आ रहे हैं। अंतिम बार 2010 में जदयू को यहां जीत मिली थी। सत्येंद्र कुमार सिंह ने 2015 में लोजपा और 2020 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों चुनावों में उन्हें हार मिली।

    बीते लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस काे मिले वोटों ने भाजपा की नींद उड़ा दी थी। पटना साहिब से भाजपा के रविशंकर प्रसाद जीते, लेकिन फतुहा क्षेत्र से कांग्रेस ने 16 हजार से अधिक मतों से बढ़त बना ली थी।

    फतुहा का राजनीतिक समीकरण मुख्य रूप से ग्रामीण मतदाताओं पर आधारित है। किसान, मजदूर और पिछड़े वर्ग यहां की राजनीति की दिशा तय करते हैं।

    युवा मतदाता रोजगार और शिक्षा की बात करता है, तो बुजुर्ग मतदाता अब भी परंपरागत आधार पर वोट डालते हैं। यही कारण है कि उम्मीदवारों को सामाजिक न्याय और विकास दोनों का संतुलन साधना पड़ता है।

    उद्योग और रोजगार बड़ा मुद्दा

    हाल के वर्षों में फतुहा की राजनीति में उद्योग और रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। यहां का औद्योगिक क्षेत्र काफी समृद्ध हुआ करता था। कई फैक्ट्रियां थीं, लेकिन इन इकाइयों के शिथिल पड़ने से लोगों में रोजगार को लेकर असंतोष है। युवाओं के सामने पलायन की मजबूरी है।

    बाढ़ और जलभराव भी हर चुनाव में गूंजते रहे हैं। गंगा और पुनपुन के बीच बसे इस इलाके में हर साल बाढ़ से तबाही होती है। जनता चाहती है कि नेता इस समस्या का स्थायी समाधान निकालें, लेकिन अब तक यह चुनावी वादे तक ही सीमित है।

    यहां की जमीन तो उपजाऊ है, लेकिन सिंचाई और कृषि के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने की शिकायत किसानों की है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी यहां के लोगों की मांग है। सरकारी अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्र संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।

    लोगों को राजधानी का रुख करना पड़ता है। वैसे तो यह क्षेत्र राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलमार्ग से जुड़ा है, लेकिन सड़क जाम और खराब सड़कों की समस्या गंभीर है।

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