Bihar Politics: दिल्ली में लहराया भगवा, अब बिहार पर टिकी भाजपा की नजर; 225 सीटों का टारगेट सेट
भाजपा ने बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाए हैं। पहली बार 50% से अधिक संगठनात्मक जिलों में पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के कार्यकर्ताओं को जिलाध्यक्ष बनाया है। भाजपा का लक्ष्य 2025 के विधानसभा चुनाव में 225 सीटें जीतना है। पार्टी जाति आधार गणना के आंकड़ों के आधार पर अति-पिछड़ा वर्ग के 36% और अनुसूचित जाति के लगभग 20% मतदाताओं को साधने की रणनीति बना रही है।

रमण शुक्ला, पटना। दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Vidhan Sabha Chunav) में परचम लहराने के बाद अब भाजपा की नजर बिहार पर टिक गई है। पार्टी के शीर्ष रणनीतिकार बिहार में सूक्ष्म प्रबंधन के साथ बिहार को साधने की जुगत में जुट गए हैं। संगठन को सुदृढ़ करके बिहार में सत्ता प्राप्त करने के लिए भाजपा आने वाले दिनों में कई नवाचार करने की तैयारी में है।
इसकी शुरुआत पहली बार 50 प्रतिशत से अधिक संगठनात्मक जिलों में जिलाध्यक्ष का दायित्व पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के कार्यकर्ताओं को नेतृत्व देकर कर दी है। भाजपा के 52 संगठनात्मक जिलों में से 46 जिलों में अध्यक्ष का निर्वाचन पूरा कर लिया गया है। इसमें 25 से अधिक जिलों में भाजपा ने पहली बार पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के कार्यकर्ताओं को जिलाध्यक्ष बनाया है।
225 सीटों का टारगेट
पार्टी की आगे की रणनीति भी पिछड़ी जातियों की सोशल इंजीनियरिंग को आगे करके 2025 के विधानसभा चुनाव में 225 सीटों पर विजय का मार्ग प्रशस्त करने की है। इसी तरह का समीकण पार्टी ने बूथ से लेकर मंडल एवं जिला संगठन के अन्य पदों पर वंचित समाज के कार्यकर्ताओं को आगे करने की तैयार की है।
वहीं, संभव है कि अब गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ भी भाजपा नेतृत्व बढ़े हुए मनोबल के साथ सीटों के बंटवारे पर मोलभाव करेगी।
दरअसल, पार्टी स्थापना के 45 वर्ष में भाजपा हिंदी पट्टी की सभी राज्यों में अपने दमपर सत्ता प्राप्त कर चुकी, लेकिन एक मात्र बिहार ही ऐसा राज्य हैं जहां अभी तक कांग्रेस छोड दूसरे कई दलों को कंधे पर बैठाकर मुख्यमंत्री बनाती रही। इस लंबे कालखंड में भाजपा ने लालू यादव एवं नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के लिए समर्थन दिया। अगर 1980 से पहले के दशक की बात करें तो जनसंघ (वर्तमान में भाजपा) काल में लोकनायक कर्पूरी ठाकुर एवं राम सुंदर दास को समर्थन देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया।
मोदी-शाह युग स्वर्णिम
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में पिछले एक दशक की बात करें तो बिहार के सत्ता में हनक और हस्सेदारी जरूरी बढ़ी है। विधानसभा अध्यक्ष एवं विधान परिषद सभापति की कुर्सी के साथ दो दो उपमुख्यमंत्री बनाने में भाजपा सफल रही। हालांकि इस दौरान कई प्रयोग एवं उतार चढ़ाव से भाजपा नेतृत्व जूझना पड़ा।
अब भाजपा के लिए अरसे बाद अनुकूल स्थिति बनती दिख रही है। दिल्ली की जीत में बिहार के मतदाताओं की भूमिका अहम मानी जा रही है। इससे बिहार भाजपा के पक्ष में माहौल बनने की संभवना भी प्रबल हो गई है। इससे पहले केंद्रीय बजट में भी मोदी सरकार ने सर्वोच्च प्राथमिकता में बिहार को रखा है। अब 24 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार के सर्वाधिक संख्या वाले मतदाता वर्ग को किसानों को उपहार देने स्वयं आ रहे हैं।
इससे पहले भाजपा 12 फरवरी को संत रविदास जयंती पर पटना में बड़ा आयोजन करने जा रही है। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि वृहद स्तर मनाने की तैयारी है। लक्ष्य जाति आधार गणना के आंकड़ों को आधार बनाकर अति-पिछड़ा वर्ग के 36 प्रतिशत एवं अनुसूचित जाति के लगभग 20 प्रतिशत एक मुश्त मतदाताओं को साधने की है।
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