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    बिस्मिल्लाह खां जयंतीः डुमराव की 'चाभ' से धुन निकालते थे उस्ताद, बोलते थे-इससे होता है कला का एहसास

    By Akshay PandeyEdited By:
    Updated: Sun, 21 Mar 2021 10:33 AM (IST)

    उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म बिहार के बक्सर में हुआ था। भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां शहनाई की चाभ (शहनाई का अग्रभाग जो होंठ से सटता है) वे डुमरांव में उपजे बांस से ही बनवाते थे। कहते थे कि इससे अपने भीतर असीम कला की गहराइयों का अहसास होता है।

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    भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां। जागरण आर्काइव। -

    अरुण विक्रांत, डुमरांव(बक्सर) : शहनाई की मीठी धुन से दुनिया में अमिट छाप छोड़ने वाले भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को अपने जन्मस्थान डुमरांव से गहरा लगाव था। यही वजह थी कि अपने शहनाई की चाभ (शहनाई का अग्रभाग जो होंठ से सटता है) वे डुमरांव में उपजे बांस से ही बनवाते थे। इसके लिए बांस के छोटे पेड़ मंगवाते थे। पूछने पर कहते थे कि डुमरांव के बांस का चाभ जब उनके होठों से लगता है, तो उन्हें अपने भीतर असीम कला की गहराइयों का अहसास होता है।

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    21 मार्च को बक्सर के डुमरांव में हुआ था जन्म

    डुमरांव के बंधन पटवा रोड के बचई मियां के घर में 21 मार्च 1916 को बिस्मिल्लाह खां का जन्म हुआ था। बचपन में यहीं बिहारी जी मंदिर में अपने पिता के साथ सुबह की आरती में वे शहनाई बजाते थे। आठ साल के उम्र में वाराणसी मामा के यहां चले गए तो फिर वहीं के होकर रह गए। उनके परिवार के लोग अब यहां नहीं रहते। बाद की पीढ़ी ने पुश्तैनी मकान को बेच यहां से नाता तोड़ लिया, लेकिन उस्ताह की यादें आज भी डुमरांव के कोने-कोने में बसती हैं। डुमरांव में कभी उस्ताद के करीबी रहे सत्यनारायण प्रसाद और अधिवक्ता सह कलाकार शंभू शरण नवीन बताते हैं कि बिस्मिल्लाह खां भले ही डुमरांव से चले गए, लेकिन यहां की यादें हमेशा उनके साथ रहीं। जब तक वो जीवित रहे, उनके शहनाई की चाभ बनाने के लिए उस्ताद के रिश्तेदार यहां से बांस ले जाने आते रहे। 1990 में एक बार उस्ताद जब डुमरांव आए तो उनसे यहां के लोगों ने डुमरांव के बांस की चाभ की विशेषता के बारे में पूछा, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था कि इसमें अपने जन्मस्थान की मिट्टी की खुशबू आती है और शहनाई से मीठा सुर निकलता है। 21 अगस्त 2006 को 90 वर्ष की अवस्था में वाराणसी में उस्ताद ने अंतिम सांस ली थी।

    हसरतें रह गईं अधूरी 

    यूं तो उस्ताद ने पूरी दुनिया में ख्याति हासिल की, लेकिन अपने ही जन्मस्थान में उनके सपने पूरे नहीं हुए। उस्ताद ने मृत्यु से पहले सरकार से डुमरांव में संगीत विद्यालय खुलवाने की इच्छा व्यक्त की थी। उस्ताद पर किताब लिखने वाले साहित्यकार मुरली श्रीवास्तव कहते हैं कि उनकी इच्छा की पूर्ति करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने पुराना थाना के पास टाउन हॉल के निर्माण के लिए शिलान्यास तक कर दिया था। नींव की खोदाई के बाद ही उस पर काली छाया पड़ गई और गृह विभाग की जमीन रहने के कारण निर्माण कार्य को एनओसी नहीं मिल सकी। बाद में कला संस्कृति विभाग ने उस्ताद के नाम पर डुमरांव में प्रेक्षागृह सह कला दीर्घा बनाने के लिए प्रशासन से जमीन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। जिसपर, अंचल कार्यालय ने ई-किसान भवन के पास मौजूद 0.13 एकड़ को भूमि को इसके लिए चिह्ति करते हुए विभाग को प्रस्ताव भेजा है।