Bihar Chunav: क्या कांग्रेस को मिलेंगी मनचाही सीटें? सीट बंटवारे की मेज पर कहां फंस रहा मामला
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महागठबंधन में सीट बंटवारे पर मंथन जारी है। कांग्रेस ने समन्वय समिति को अपनी पसंदीदा सीटों की सूची सौंपी है लेकिन पिछली बार के प्रदर्शन को देखते हुए इस बार कांग्रेस के लिए अपनी बात मनवाना आसान नहीं होगा। कांग्रेस गठबंधन में 70-90 सीटें हासिल करने की कोशिश में है।

सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है। इसके साथ ही महागठबंधन में सीट बंटवारे पर भी मंथन शुरू हो गया है। सभी दलों ने अपनी पसंदीदा सीटों की सूची समन्वय समिति को सौंप दी है। कांग्रेस ने भी अपनी संभावित सीटों का ब्योरा महागठबंधन को सौंप दिया है। इसके साथ ही यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि इस बार सीट बंटवारे की मेज पर कांग्रेस के लिए अपनी बात मनवाना आसान नहीं होगा।
सभी पार्टियों ने की सीटों की सूची तैयार
इस बार पार्टी ने अपनी पसंदीदा सीटों को तीन श्रेणियों में बांटकर अपनी सूची तैयार की थी। जिसे समन्वय समिति को सौंप दिया गया है। पहली श्रेणी की सीटों में वे सीटें शामिल हैं जिन पर कांग्रेस ने 2015 और 2020 में जीत हासिल की थी। दूसरी श्रेणी में वे सीटें शामिल हैं जिनके बारे में पार्टी को भरोसा है कि वहां उसका जनाधार उसके सहयोगियों से ज्यादा मजबूत है।
महागठबंधन में इस बात का संशय
पार्टी ने भले ही अपनी पसंदीदा सीटें चुन ली हों, लेकिन उसे इस बात का भी एहसास है कि पिछले चुनावों में उसका प्रदर्शन उसकी राह का कांटा बन सकता है। पिछले चुनावों की बात करें तो 2015 में कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उस समय जेडीयू भी महागठबंधन का हिस्सा थी। राजद-जदयू ने 101-101 सीटों पर और कांग्रेस ने 41 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे इनमें से सिर्फ़ 27 सीटों पर ही जीत मिली थी।
इससे पहले 1995 में, जब बिहार-झारखंड का बंटवारा नहीं हुआ था, कांग्रेस ने अकेले 324 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। तब उसे 29 सीटें मिली थीं। 1995 के बाद, यानी लगभग 20 साल बाद, 2015 में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। 2015 में कांग्रेस के प्रदर्शन के आधार पर, राजद ने 2020 के विधानसभा चुनाव में अनिच्छा के बीच उसे 70 सीटें दीं।
कांग्रेस 2015 के मुकाबले 29 सीटें ज़्यादा छीनने में कामयाब रही, लेकिन ये वो सीटें थीं जहां एनडीए का प्रभाव ज़्यादा था। ज़ाहिर है, जब नतीजे आए, तो कांग्रेस खलनायक बन चुकी थी। महागठबंधन की सरकार न बनने का ठीकरा कांग्रेस पर फूटा। ऐसे में राजद की कोशिश होगी कि कांग्रेस को कम से कम सीटें दी जाएँ।
कांग्रेस का इतने सीटों पर दावा
वह कांग्रेस के स्ट्राइक रेट का भी हवाला देंगे। इसके बावजूद, कांग्रेस अपनी सक्रियता बरकरार रखते हुए महागठबंधन में कम से कम 70-90 सीटें हासिल करने की कोशिश में जुटी है। उसकी सक्रियता और चुनावी तैयारियाँ इस बात का भी संकेत हैं कि वह इस बार झुकने को तैयार नहीं होगी।
पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व और उसके बड़े नेता, यहां तक कि राहुल गांधी भी, कांग्रेस को ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा पहुँचाने की कोशिश में लगे हैं। नतीजे चाहे जो भी हों, यह तय है कि कांग्रेस के लिए सीट बंटवारे पर अपने सहयोगियों को मनाना आसान नहीं होने वाला है।

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