Bihar Politics: बाहुबलियों के साये में बिहार की सियासत, क्या जाति से ऊपर उठकर अपराध को नकारेगा वोटर?
बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का प्रभाव हमेशा से रहा है। सवाल यह है कि क्या बिहार का मतदाता जाति से ऊपर उठकर अपराध को नकार पाएगा? अतीत में, कई राजनेताओं ने आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों का समर्थन लिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बिहार का मतदाता इस बार जाति और अपराध के गठजोड़ को तोड़ पाएगा।
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बाहुबलियों के साये में बिहार की सियासत। (जागरण)
डिजिटल डेस्क, पटना। मोकामा हत्याकांड के बाद बिहार विधानसभा चुनावों में एक बार फिर अपराध और अपराधियों को टिकट दिए जाने का मुद्दा गरमा गया है। पटना से किशनगंज तक विभिन्न दलों ने अपराधियों व उसके परिजनों को जम कर टिकट बांटे हैं।
वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह का दीपावली पर दिया गया एक बयान, जिसमें उन्होंने बिहार की जनता से जात-पात से ऊपर उठकर अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट करने की अपील की थी, अब मोकामा हत्याकांड के बाद और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
आरके सिंह ने अपनी अपील में कहा था कि मेरा निवेदन है कि किसी भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अथवा भ्रष्ट व्यक्ति को वोट न दें, भले ही वह आपकी जाति का ही क्यों न हो। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि सभी प्रत्याशी भ्रष्ट या आपराधिक प्रकृति के हैं, तो नोटा (NOTA) का उपयोग करें, क्योंकि इन लोगों को वोट करने से बेहतर होगा चुल्लू भर पानी में डूब मरना।
आरके सिंह ने गिनाए बाहुबली प्रत्याशी
आरके सिंह ने NDA और RJD दोनों गठबंधनों के कई प्रत्याशियों पर गंभीर आरोप लगाए, जो बिहार की राजनीति में बाहुबल के गहरे पैठ को दर्शाते हैं।
मोकामा: NDA के अनंत सिंह और RJD के सूरजभान सिंह की पत्नी। सिंह ने अनंत सिंह को 1985 के दिनों का उपद्रवी बताया, जबकि सूरजभान सिंह को बिहार का 'नंबर 1 डॉन' कहा, जिसे गृह सचिव रहते हुए उन्होंने गिरफ्तार करने का आदेश दिया था।
नवादा: NDA प्रत्याशी राजबल्लभ यादव की पत्नी (बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए POCSO एक्ट के आरोपी)।
रघुनाथपुर: RJD प्रत्याशी शाहबुद्दीन के बेटे ओसामा।
तारापुर (NDA), जगदीशपुर (NDA), और सन्देश (NDA व RJD): यहां भी प्रत्याशियों पर हत्या, नरसंहार, बालू माफिया होने और POCSO एक्ट जैसे गंभीर आरोप लगाए गए।
मोकामा हत्याकांड ने बढ़ाई चिंता
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक पुष्यमित्र के अनुसार, "इस मुद्दाविहीन चुनाव में कहीं अंदरखाने में अपराध और दबंगई दहक ही रही थी।" उनका मानना है कि हाल ही में हुई मोकामा की घटना ने इस मुद्दे को और भी गंभीर बना दिया है।
राजनीतिक दलों का दोहरा रवैया
पुष्यमित्र ने राजनीतिक दलों की आलोचना करते हुए कहा कि वे अपराध के खिलाफ 'वेद वचन' कहते हैं, लेकिन टिकट देने में अपराधियों से परहेज नहीं किया और संकोच तक नहीं किया। उन्होंने कहा कि किसी को अपराधियों से परहेज नहीं है। इसलिए सलेक्टिव विरोध का भी कोई मतलब नहीं है।
पुलिस-प्रशासन पर सवाल
मोकामा हत्याकांड ने पुलिस-प्रशासन और चुनाव आयोग पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं कि बाहुबलियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में हिंसा रहित चुनाव कैसे सुनिश्चित किए जाएंगे।
सोशल मीडिया पर लोग आरके सिंह के बयान को साझा कर रहे हैं और गुस्से में हैं। यह चुनाव आयोग के लिए हिंसा रहित और निष्पक्ष चुनाव कराने की एक बड़ी चुनौती भी है।
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद मुकेश कहते हैं कि बिहार में चुनावी इतिहास पहले भी रक्त रंजित रहा है। बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बार बिहार का वोटर जात-पात के बंधन को तोड़कर, अपने और अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपराध और भ्रष्टाचार से मुक्त सरकार के लिए वोट करेगा?

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